Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सर्वफलप्रदायक माघ मास व्रत

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(माघ मास : 13 जनवरी से 12 फरवरी)
पुण्यदायी स्नान सुधारे स्वभाव
माघ मास में प्रातःस्नान (ब्राह्ममुहूर्त में स्नान) सब कुछ देता है । आयुष्य लम्बा करता है, अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य व सदाचरण देता है । जो बच्चे सदाचरण के मार्ग से हट गये हैं उनको भी पुचकार के, इनाम देकर भी प्रातःस्नान कराओ तो उन्हें समझाने से, मारने-पीटने से या और कुछ करने से वे उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास में सुबह का स्नान करने से वे सुधरेंगे ।
तो माघ स्नान से सदाचरण, संतानवृद्धि, सत्संग, सत्य और उदारभाव आदि का प्राकट्य होता है । व्यक्ति की सुरता माने समझ उत्तम गुणों से सम्पन्न हो जाती है । उसकी दरिद्रता और पाप दूर हो जाते हैं । दुर्भाग्य का कीचड़ सूख जाता है । माघ मास में सत्संग-प्रातःस्नान जिसने किया, उसके लिए नरक का डर सदा के लिए खत्म हो जाता है । मरने के बाद वह नरक में नहीं जायेगा । माघ मास के प्रातःस्नान से वृत्तियाँ निर्मल होती हैं, विचार ऊँचे होते हैं । समस्त पापों से मुक्ति होती है । ईश्वरप्राप्ति नहीं करनी हो तब भी माघ मास का सत्संग और पुण्यस्नान स्वर्गलोक तो सहज में ही तुम्हारा पक्का करा देता है । माघ मास का पुण्यस्नान यत्नपूर्वक करना चाहिए ।
यत्नपूर्वक माघ मास के प्रातःस्नान से विद्या निर्मल होती है । मलिन विद्या क्या है ? पढ़-लिख के दूसरों को ठगो, दारू पियो, क्लबों में जाओ, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड करो - यह मलिन विद्या है । लेकिन निर्मल विद्या होगी तो इस पापाचरण में रुचि नहीं होगी । माघ के प्रातःस्नान से निर्मल विद्या व कीर्ति मिलती है । ‘अक्षय धन’ की प्राप्ति होती है । रुपये-पैसे तो छोड़ के मरना पड़ता है । दूसरा होता है ‘अक्षय धन’, जो धन कभी नष्ट न हो उसकी भी प्राप्ति होती है । समस्त पापों से मुक्ति और इन्द्रलोक अर्थात् स्वर्गलोक की प्राप्ति सहज में हो जाती है ।
‘पद्म पुराण’ में भगवान राम के गुरुदेव वसिष्ठजी कहते हैं कि ‘वैशाख में जलदान, अन्नदान उत्तम माना जाता है और कार्तिक में तपस्या, पूजा लेकिन माघ में जप, होम और दान उत्तम माना गया है ।’
प्रिय वस्तु का आकर्षण छोड़कर उसको दान में दे दें और नियम-पालन करें जप-तप से तो आपके मन की गलत आदत मिटाने की शक्ति बढ़ जाती है । इस मास में सकामभाव से, स्वार्थ से भी अगर स्नान करते हैं तब भी मनोवांछित फल प्राप्त होता है लेकिन कोई स्वार्थ नहीं हो और भगवान की प्रीति के लिए, भगवान की प्राप्ति के लिए व्रत-स्नानादि करते हैं, सत्संग सुनते हैं तो निष्काम मोक्षपद की प्राप्ति हो जाती है । सामर्थ्यपूर्वक प्रतिदिन हवन आदि करें तो अच्छा, नहीं तो जप तो जरूर करना चाहिए । माघ मास में अगर कल्पवास करने को मिले अर्थात् एक समय भोजन, ब्रह्मचर्यव्रत-पालन, भूमि पर शयन आदि तो चाहे जितना भी असमर्थ हो फिर भी उसमें सामर्थ्य - मानसिक सामर्थ्य, बौद्धिक सामर्थ्य, आर्थिक सामर्थ्य उभरने लगता है । माघ मास में तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्नान, तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और भोजन में तिल का प्रयोग - ये कष्टनिवारक, पापनिवारक माने गये हैं ।
इस मास में पति-पत्नी के सम्पर्क से दूर रहनेवाला व्यक्ति दीर्घायु होता है और सम्पर्क करनेवाले के आयुष्य का नाश होता है । भूमि पर शयन अथवा गद्दा हटाकर पलंग पर सादे बिस्तर पर शयन करें ।
धन में, विद्या में कोई कितना भी कमजोर हो, असमर्थ हो उसको उतने ही बलपूर्वक माघ स्नान कर लेना चाहिए । इससे उसे धन में, बल में, विद्या में वृद्धि प्राप्त होगी । माघ मास का प्रातःस्नान असमर्थ को सामर्थ्य देता है, निर्धन को धन, बीमार को आरोग्य, पापी को पुण्य व निर्बल को बल देता है Ÿ।
माघ मास में विशेष करणीय
जो माघ मास में गुरुदेव का पूजन करते हैं उनको पूरा मास स्नान करने का फल प्राप्त होता है - ऐसा ‘ब्रह्म पुराण’ में लिखा है । इस मास में पुण्यस्नान, दान, तप, होम और उपवास भयंकर पापों का नाश कर देते हैं और जीव को उत्तम गति प्रदान करते हैं ।
माघ मास के महत्त्वपूर्ण 3 दिन
माघ मास का इतना प्रभाव है कि इसकी हर तिथि पुण्यमय होती है और इसमें सब जल गंगाजल तुल्य हो जाते हैं । सतयुग में तपस्या से जो उत्तम फल होता था, त्रेता में ज्ञान के द्वारा, द्वापर में भगवान की पूजा के द्वारा और कलियुग में दान-स्नान के द्वारा तथा द्वापर, त्रेता, सतयुग में पुष्कर, कुरुक्षेत्र, काशी, प्रयाग में 10 वर्ष शुद्धि, संतोष आदि नियमों का पालन करने से जो फल मिलता है, वह कलियुग में माघ मास में, जो सभी में श्रेष्ठ है, अंतिम 3 दिन (त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा) प्रातःस्नान करने से मिल जाता है ।           

REF:RP-ISSUE353-JANUARY-2014