10 नवम्बर को पूज्य बापूजी के सद्गुरु ब्रह्मलीन भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का महानिर्वाण दिवस है । सम्पूर्ण जीवन लोकहित हेतु समर्पित करनेवाले तथा जन-जन तक ब्रह्मज्ञान का अमृत-प्रसाद पहुँचानेवाले इन महान संत की स्मृति में इस दिन जगह-जगह विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं । भक्तगण महाराजश्री के मधुर जीवन-प्रसंगों व दैवी सद्गुणों का संस्मरण कर अपना हृदय पावन करते हैं । अहमदाबाद आश्रम में हर वर्ष विशेष कार्यक्रम किया जाता है तथा कीर्तन यात्रा भी निकाली जाती है ।
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के कृपापात्र सत्शिष्य संत श्री आशारामजी बापू की अमृतवाणी से उनकी कुछ मधुर यादें :
...और लड़का जिंदा हो गया
पंचमहाभूतों में परमात्मा व्यापे हुए हैं । अग्निदेव, जलदेव, वायुदेव, आकाशदेव और पृथ्वी देवी - इनमें से परमात्मा कभी कोई भी लीला करके उभर सकते हैं । कुत्ते के द्वारा, हंस के द्वारा भी भगवान मानुषी भाषा बुलवा लेते हैं । अरे, किसी संत-महापुरुष के संकल्प के द्वारा मुर्दे को भी जिंदा करवा देते हैं !
मेरे गुरुदेव जिस इलाके में रहते थे वहाँ किसी माई का बेटा मर गया । माई ने देखा कि एकांत में समर्थ योगी रहते हैं तो वहाँ की पगडंडी पर अपने मृत बेटे को रख दिया । गुरुजी घूमने जा रहे थे । देखा कि बच्चा पड़ा है, बोले : ‘‘बेटा ! कौन हो ? कैसे हो ?’’
देखा कि यह तो ऐसे ही सोया है । जरा मार दी लात : ‘‘अरे उठ !’’
और वह बच्चा रोने लगा । माई छुप के देख रही थी, उसने जाकर पैर पकड़े ।
गुरुदेव बोले : ‘‘माई ! मेरे को क्या पता था कि तू ऐसा करेगी, करामात का खर्च करायेगी । अच्छा जा, चुप रहना, किसीको बोलना नहीं ।’’
फिर गुरुदेव उस इलाके में नहीं रहे ।
ऐसी तो कई घटनाएँ गुरुदेव के जीवन में देखने को मिलती हैं । एक बार संकल्प किया तो चलती रेलगाड़ी रुक गयी । सिंध में एक जगह को लेकर विवाद था । वहाँ खड़े नीम के पेड़ को स्थान बदलने का आदेश दिया तो वह सही जगह पर पहुँच गया और विवाद खत्म हो गया । कैसा दृढ़ संकल्प है !
‘हमारे में भगवान हैं
तो फिर मिलते क्यों नहीं ?’
एक बार गुरुजी से एक भक्त ने पूछा : ‘‘स्वामीजी ! आप कहते हैं कि सबमें भगवान हैं । हमारे में भगवान हैं तो फिर मिलते क्यों नहीं हैं ?’’
गुरुजी ने कहा : ‘‘तेरे पास इतनी भैंसें-गायें हैं, तू दूध-वूध तो पिलाता नहीं है, केवल बोलता है कि भगवान मिलें । मुफ्त में दिलाऊँगा भगवान ? जरा सेवा कर ।’’
वह कटोरा भर के दूध ले आया । गुरुजी ने दूध में उँगली घुमायी, बोले : ‘‘दूध में तो घी होता है, मक्खन होता है ।’’
‘‘हाँ गुरुजी ! होता है ।’’
‘‘इसमें दिखता तो है नहीं !’’
‘‘गुरुजी ! पहले इसको गरम करो फिर जमाओ, बिलोओ तब मक्खन निकलेगा । फिर उसको तपाओ तब घी होता है । दूध में घी तो है परंतु ऐसे हाथ में नहीं आयेगा ।’’
गुरुजी बोले : ‘‘इसी तरह हृदय में भगवान तो हैं परंतु ऐसे ही हाथ में नहीं आयेंगे । पहले साधन-भजन करके थोड़ी तपस्या करो फिर थोड़ा ध्यान करके मन को जमाओ । फिर वेदांत का सत्संग सुन के आनंदरूपी मक्खन निकालो और उसके बाद सत्संग के मनन-निदिध्यासन के ताप से तपाकर ब्रह्मानुभूतिरूपी घी निकालो ।
ज्यों तिलों में तेल छुपा, अरु चकमक में आग ।
तेरा प्रभु तुझमें है, जाग सके तो जाग ।।’’
REF: RP-ISSUE382-OCTOBER-2024