Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

वर्षभर का हिसाब कर आगे बढ़ने का संकल्प लेने का दिवस : गुरुपूर्णिमा

The day to take account of the past year and resolve to move forward: Guru Purnima
गुरुपूर्णिमा (Guru Purnima) मनुष्य-जीवन को सुव्यवस्थित करनेवाली, लघु को ऊँचा बनानेवाली पूर्णिमा है । लघु वस्तुओं की आसक्ति और प्रीति जीव को तुच्छ बनाती है और परमात्मा की प्रीति व ज्ञान जीव को महान बना देते हैं । ‘गुरु’ माने बड़ा । श्रुति, युक्ति, अनुभूति से जीवन का बड़े-में-बड़ा रहस्य, बड़े-में-बड़ा काम, बड़े-में-बड़ी उपलब्धि जो समझा दें उन्हें ‘गुरु’ कहा जाता है । अगर मानव-जीवन में से यह गुरुपूर्णिमा निकल जाय तो मनुष्य का जीवन कीट-पतंग, मक्खी और मच्छर से भी ज्यादा नीचा हो जाय ।
गुरुपूर्णिमा(Guru Purnima)  के पावन पर्व के निमित्त हम यह पावन प्रार्थना, पावन जिज्ञासा, इच्छा करते हैं कि ‘वे दिन कब आयेंगे कि हमें यह संसार सपने जैसा लगेगा ? वे दिन कब आयेंगे कि सुख के समय हृदय में हर्ष न होगा, दुःख के समय शोक न होगा, सुख-दुःख के हम साक्षी हो जायेंगे ? वे दिन कब आयेंगे कि जो ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों का अनुभव है वह हमारा हो जायेगा ?...’ 
शुभ संकल्प करने का शुभ अवसर (An auspicious occasion to make a good resolve)
गुरुपूर्णिमा(Guru Purnima)  के दिन हर्ष-शोक, विषाद से पार निर्भय, निरंजन, सच्चिदानंदघन स्वभाव अपने-आपमें जागृत होने का संकल्प करें । गुरुपूर्णिमा के दिन भगवान वेदव्यासजी ने ब्रह्मसूत्र लिखने का प्रारम्भ किया था । इस दिन से संन्यासी, त्यागी, संत, जती, जोगी 4 महीने के लिए चतुर्मास करते हैं, एकांत में स्वाध्याय अर्थात् ‘स्व’ का अध्ययन करते हैं, शास्त्र-अध्ययन करते हैं, तत्त्वज्ञान और उपनिषद् का विचार करके कल्पित संसार के आकर्षणों को दूर हटा फेंकते हैं । तुम भी इस महापर्व के शुभ आगमन पर दृढ़ता के साथ शुभ संकल्प करो कि ‘दृढ़ता से ध्यान करूँगा, जप करूँगा, मंत्र का अनुष्ठान करूँगा । चित्त को आकर्षित करनेवाले विषय-विकारों को कुचलकर उस परमात्मनिधि के अखूट भंडार तक पहुँचूँगा ।’ 
ज्यों ही तुमने यह दृढ़ संकल्प किया त्यों प्रकृति में जो अखूट ज्ञाननिधि भरी है, तुम्हारे चैतन्यस्वरूप में जो अद्भुत रस, प्रेम भरा है तुम्हारा हृदय उस अमर आनंद से, ज्ञान-प्रसाद से, प्रेम-प्रसाद से, आत्मरस से परितृप्त होने लगेगा और उसमें अमरता के गीत गूँजेंगे ।
पावन संदेश(Sacred Message)
गुरुपूनम(Guru Poonam)  का संदेश है कि ‘लघु जीवन से ऊपर उठो । खाना-पीना, सुखी-दुःखी होना यह तो कुत्ता भी जानता है । दुःख आये तो दुःखहारी हरि की शरण जाओ । दुःखी व्यक्ति का दुःख तब तक जिंदा रहता है जब तक वह संसार के सुख से दुःख को दबाना चाहता है अथवा छल-कपट करके सुखी होना चाहता है । जब दुःखहारी भगवान की शरण जाय, ब्रह्मवेत्ता संत की आज्ञा के अनुसार सत्संग सुने, सच्चाई से व्यवहार करे तो उसका दुःख सदा के लिए मिट जाता है ।’ ऐसा गुरु का ज्ञान लोगों को हजम हो इसलिए जैसे हर वर्ष 5वीं कक्षावाला छठी में, छठीवाला 7वीं में... इस प्रकार विद्यार्थी आगे बढ़ते हैं और जैसे व्यापारी दिवाली के दिनों में बहीखाता देखता है कि ‘किस चीज से व्यापार में फायदा हुआ और कौन-सी चीज पड़ी रही ?’ ऐसे ही साधकों के लिए बीते वर्ष की आध्यात्मिक उन्नति का हिसाब करने व नूतन वर्ष में और भी उन्नत होने का संकल्प करने का दिवस गुरुपूनम महापर्व होता है । इस अवसर पर गुरु पुराने साधकों को कुछ नयी ऊँची साधना बता देते हैं ।
गुरुपूनम पर नूतन साधना-प्रयोग (New SÍdhanÍ-method on Guru Poonam)
बिना क्रिया के, बिना संग्रह के आपका जीवन स्वस्थ, सुखी, सम्मानित करने में बहुत-बहुत मदद करेगा यह प्रयोग । बड़ा सरल व बड़ा सामर्थ्यदायी साधन है और आप सभी लोग कर सकते हैं । ‘इसके बिना नहीं रह सकता हूँ... चाय, पान-मसाले या दारू के बिना नहीं रह सकता हूँ...’ - ये सारी कमजोरियाँ दूर हो जायेंगी । 
सुबह नींद में से उठो तब कुछ देर शांत बैठो फिर केवल 5 मिनट का यह साधना-प्रयोग करो (When you wake up from sleep in the morning, sit quietly for some time, then practice this sÍdhanÍ for only five minutes:) : 
गुरुमंत्र जपो फिर चुप हो के बैठो और नासाग्र दृष्टि रखो अथवा भगवान या सद्गुरु के श्रीचित्र को एकटक देखते-देखते फिर आँखें बंद करके नासाग्र दृष्टि करो । नाक के अग्रभाग को नासाग्र नहीं कहते हैं, नाक के मूल अर्थात् दोनों नेत्रों के मध्य में (भ्रूमध्य में) जहाँ तिलक किया जाता है उसको नासाग्र कहते हैं । (Do japa of  the Guru-mantra, then sit in silence and focus both eyes on the space between the eyebrows (NÍsÍgra Drishti) or look with fixed gaze at the holy picture of God or photo of SatGuru, then close your eyes and do NÍsÍgra Drishti.) वहाँ देखो, आँखों पर दबाव न पड़े । बाहर से तो वहाँ नहीं दिखेगा परंतु वहाँ देखने के भाव से आपकी दृष्टि, आपके मन की वृत्ति या सुरता वहाँ आयेगी । अगर मन इधर-उधर जाय तो ‘ॐ शांति, ॐ आरोग्य, ॐ श्री परमात्मने नमः...’ ऐसा चिंतन करते हुए चुप हो गये । 
थोड़े दिन के अभ्यास से सुबह नींद से उठोगे तो गुरुमंत्रसहित यह साधन शुरू हो जायेगा और आपको दिनभर बिना संग्रह के, बिना हेराफेरी के, बिना कपट-बेईमानी के, बिना गुलामी, शिकायत अथवा शोषण के आनंद-आनंद रहेगा जैसे बापूजी  को (मुझे) रहता है । आपकी क्रियाशक्ति में सत्त्वगुण रहेगा । अगर तमोगुण आता है तो बड़ा अनर्थ पैदा करता है और सत्त्वगुण आता है तो सार्थक जीवन हो जाता है । जो इसको साधना के रूप में मानते हैं उन साधकों की क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति, आनंददायिनी शक्ति का विकास होता है । 
यह 5 मिनट कर लेने के बाद अपने शारीरिक क्लेशों के बारे में - ‘तबीयत कैसी है ? क्या खाने से ऐसा हुआ ? क्या करने से ठीक होगा ?...’ थोड़ा सोच लिया । कुटुम्ब-क्लेशों के बारे में, आर्थिक क्लेशों के बारे में जरा सिंहावलोकन कर लिया और उनकी निवृत्ति के बारे में तनिक सोच लिया । फिर मन-ही-मन आज्ञाचक्र में चले गये, शांत हुए । गुरुमंत्र जपा फिर भगवान या सद्गुरु पर छोड़ दिया, अपने-आप अंदर से प्रेरणा आयेगी कि ‘यह कर्तव्य, यह भोक्तव्य, यह त्यक्तव्य है । यह करो, यह न करो, यह भोगो, यह त्यागो...’ इसके अनुसार बहुत सारी मुसीबतों से आप बच जाओगे । ‘भगवान आनंदस्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं... उस भगवदीय ज्ञान और आनंद में मेरे गुरुदेव रमण करते हैं । मैं उनका, वे मेरे... ॐ ॐ ॐ आनंद... ॐ शांति...’ ऐसा चिंतन किया फिर चुप । ‘ॐ शांति... ॐ गुरु... ॐ आनंद... ॐ माधुर्य...’ फिर चुप । फिर अपना गुरुमंत्र जपो, फिर बीच में चुप्पी । 10-20 सेकंड जप, 10-20 सेकंड चुप्पी, 10-15 सेकंड भावना... ।(Thus chant for 10-20 seconds, be silent for 10-20 seconds, assert and affirm for 10-15 seconds….)  फिर मन इधर-उधर जायेगा तो ‘हरि ओऽऽऽ... म्...’ ऐसा गुंजन करो और ॐकार को भ्रूमध्य में देखो । ऐसा 5 से 7 मिनट किया तो बहुत हो गया । फिर आगे बढ़ाओ तो ठीक है परंतु आरम्भ में 5 मिनट भी अच्छा काम करेगा । ज्यादा करो तो ज्यादा लाभ है ।
हरि ओऽऽऽ... म्... ऐसा दीर्घ उच्चारण किया फिर शांत, चुप, निर्विचार... जहाँ पहुँचना है उसकी भावना अभी से करो । जल्दी पहुँच जाओगे ।
REF: RISHI PRASAD – ISSUE-354-JUNE-2022