Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सभी कार्यों में विजय दिलानेवाला व्रत: विजया एकादशी

युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : ‘‘प्रभु ! फाल्गुन मास (अमावस्यांत माघ मास) के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और उसके व्रत की विधि क्या है ?’’
श्रीकृष्ण बोले : ‘‘जिसको किसी काम में, बड़े काम में विजयी होना है उसको इस एकादशी का व्रत सफलता दिलाता है । इसलिए इसका नाम है ‘विजया एकादशी’ । एक बार नारदजी ने यही प्रश्न ब्रह्माजी से किया था ।
ब्रह्माजी ने कहा : ‘‘नारद ! जो विजया एकादशी का व्रत करेगा उसकी दीनता-हीनता और कार्य में कठिनता आदि सब दूर करने का मनोबल, बुद्धिबल बढ़ेगा और प्रकृति भी उसकी सहायता करेगी ।
पूर्वकाल की बात है । श्रीरामजी को जब पता चला कि रावण सीताजी का अपहरण करके ले गया है और वह समुद्र-पार है तो वे लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे । विचार किया कि ‘इतने विशाल उदधि को लाँघना, बंदरों की सेना का वहाँ के बड़े-बड़े विकराल राक्षसों से भिड़ना... मैं किस विधि से उन पर विजय पाऊँगा ?’
सोच-विचार करते हुए रामजी ने लक्ष्मणजी से पूछा : ‘‘भाई ! बताओ हमको लंका पहुँचने के लिए क्या करना चाहिए ? इतना बड़ा समुद्र, जिसमें बड़े-बड़े भयंकर जल-जंतु हैं, इसको सुगमता से पार करने का मुझे कोई उपाय नहीं दिखाई देता । बुद्धिमान व्यक्ति कोई भी काम करता है तो पूर्व में विचार करता है और उसकी योजना बनाता है । बिना योजना के कोई बड़ा काम ठीक से नहीं होता ।’’
लक्ष्मणजी बोले : ‘‘प्रभु ! आप तो आदिनारायण हैं, आपसे क्या छिपा है ! यहाँ से आधा योजन (मतलब 4 मील) की दूरी पर द्वीप में बकदाल्भ्य मुनि रहते हैं । वे त्रिकालज्ञानी, उच्च कोटि के महापुरुष हैं । आप उन्हींसे विचार-विमर्श करने की कृपा करें ।’’
रामजी और लक्ष्मणजी बकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में गये और उनको प्रणाम किया । मुनि बड़े प्रसन्न हुए और रामजी से आने का कारण पूछा ।
रामजी बोले : ‘‘प्रभु ! आप हमें रावण पर विजय पाने का और समुद्र पार करने का उपाय बताइये ।’’
मुनि बोले : ‘‘रामचन्द्रजी ! कैसा भी व्यक्ति हो, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का व्रत करे और जो भी उसका प्रयोजन है उसका आयोजन करे तो उसकी विजय होगी । अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये ।
दशमी को कम खाना और रात को सोते समय भगवान से प्रार्थना करना कि ‘मुझे अमुक कार्य में विजय चाहिए इसलिए मैं आपके ध्यान में शांतात्मा होता हूँ ।’ रोज ध्यान के द्वारा आत्मा-परमात्मा के साथ संबंध जोड़ने से अर्थात् परमात्मा के साथ अपना स्वतःसिद्ध एकत्व है ऐसा स्मरण करके शांत होने से शक्ति का संचय होता है । फिर उस भगवत्शांति में अगले दिन एकादशी करने का संकल्प करके सो जाय ।
एकादशी को प्रातःकाल उठे तो थोड़ी देर शांत हो जाय । श्वास अंदर आता है तो ‘ॐ’ या ‘शांति’, बाहर जाता है तो गिने । 54 या 108 तक की गिनती के बाद संकल्प करे कि ‘आज मैं एकादशी का व्रत करूँगा ।’ फिर स्नान आदि करके यदि धनवान है तो सोने, चाँदी, ताँबे का कलश, नहीं तो मिट्टी के घड़े में पानी भरकर उसे पूजा के स्थान पर ईशान कोण में स्थापित करे । गंध, धूप, दीप, नैवेद्य, माला, फल, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा भगवान नारायण का पूजन करे । सारा दिन भगवान की कथा-वार्ता, सुमिरन करते हुए व्यतीत करे । रात को धूप-दीप से भगवान की आरती करे । कम बोले, क्रोध न करे । ब्रह्मचर्य का पालन करे । उपवास व रात्रि-जागरण (रात्रि 12 बजे तक) करे । (बहुत भूख लगे तो थोड़ी किशमिश या अंगूर खाये । बाजारू फलाहार, आलू चिप्स, शरबत... आदि खाने-पीने से एकादशी खंडित हो जाती है ।)
दूसरे दिन कलश का विधिवत् पूजन करे । वेदवेत्ता ब्राह्मण अथवा पवित्रात्मा संत को उस कलश के साथ खूब दान दे और भोजन करा के संतुष्ट करे ।’’
अब आप कलश धारण करो, सुवर्ण का दान करो यह मैं नहीं कहता हूँ परंतु कम-से-कम अपनी चिंता, अहं का दान करके ध्यान-भजन करना और एकादशी का व्रत करना ।
ब्रह्माजी कहते हैं : ‘‘नारद ! यह सुनकर श्रीरामजी ने मुनि के कथनानुसार विजया एकादशी का व्रत किया । उससे वे सुगमता से सेनासहित समुद्र पार कर गये और विजयी हुए । उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया । वत्स ! इस प्रकार एकादशी का व्रत, भगवद्-ध्यान व जप करने से व्यक्ति हर क्षेत्र में सफल होता है और उसका परलोक भी अक्षय बना रहता है ।’’
भगवान श्रीकृष्ण आगे कहते हैं : ‘‘इस कथा को ध्यान से पढ़ने व सुनने से वाजपेय यज्ञ करने का फल होता है ।’’        
REF: ISSUE386-FEBRUARY-2025