भारतीय संस्कृति का सुमधुर पर्व दीपावली हमें अंधकाररूपी निराशा को प्रकाशरूपी आशा में बदलने का पावन संदेश देता है । दीपावली का शास्त्रीय महत्त्व समझते हैं पूज्य बापूजी की अमृतवाणी से :
पर्व और उत्सव आध्यात्मिक विकास के लिए बहुत जरूरी हैं । सामाजिक रीति-रिवाज तो अपने को ढाँचे में ढालते हैं लेकिन पर्व-उत्सव व्यक्ति को मुक्तता, मधुरता, ईश्वर व ईश्वरप्राप्त महापुरुषों के साथ आत्मीयता का राजमार्ग बता देते हैं । अगर पर्व-उत्सव नहीं होते तो हम इतनी ऊँचाई पर नहीं जा सकते थे । ॐ ॐ ॐ...
धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, बलि प्रतिपदा, भाईदूज - इन पंचपर्वों का झुमका है दीपावली पर्व । पंच-इन्द्रियों में, पंचविकारों में भटकनेवाला जीव पंचामृत का (अमृतसदृश इन पाँच दिनों का) उपयोग करके पंचविकारों को नियंत्रित करके, पंचकर्मेन्द्रिय, पंचज्ञानेन्द्रिय, पंच प्राणों का संयम करके महापुरुष बन सकता है । ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिस आत्म-माधुर्य में हैं उसीमें मनुष्य पहुँच सकता है । कितनी ऊँची उपलब्धि मिलती है पर्व-उत्सवों द्वारा !
धनतेरस : धनतेरस को लक्ष्मीजी का पूजन अर्थात् धन के दोषों को दूर करने के लिए धन का सदुपयोग करने का संकल्प करना । धन से विषय-विकारों में फँसना यह धन का दुरुपयोग है और धन से परमात्मा के रास्ते जाना, दान-पुण्य करना यह धन का सदुपयोग है ।
अकाल मृत्यु टालने के लिए, दरिद्रता मिटाने के लिए यमराज को 2 दीपक दान करने चाहिए, तुलसी के आगे एक दीपक रखना चाहिए ।
नरक चतुर्दशी : नरक चतुर्दशी (30 अक्टूबर) की रात्रि को मंत्रजप करने से मंत्र की सिद्धि होती है । अगर इस समय मंत्रों का जप नहीं करते हैं तो वे मलिनता को प्राप्त होते हैं, उनका प्रभाव कम हो जाता है ।
यह दिन आनंद-मस्ती बढ़ाने का है । जो भी साधन-भजन करेंगे उसमें विशेष लाभ होगा । इस दिन (31 अक्टूबर को) तिल के तेल की मालिश करके उबटन लगा के सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए । सूर्योदय के बाद जो स्नान करता है उसके पुण्यों का क्षय माना गया है ।
इस दिन सरसों के तेल अथवा घी का दीया जलाकर उससे काजल उतार के रखो । वह काजल लगानेवाले व्यक्ति को नजर नहीं लगती और भूतबाधा भाग जाती है ऐसा कहा जाता है । शाम की संध्या के समय चौमुखी दीयों को जलाकर चौराहे पर चारों तरफ रखना शुभ माना जाता है । इससे यमराज की प्रसन्नता मिलती है ।
दीपावली : इस दिन गणेश-पूजन, लक्ष्मी-पूजन, सरस्वती-पूजन, गुरु-पूजन और कुल देवता का पूजन करने का रिवाज है ।
इस दिन नारियल और थोड़ी-सी खीर लेकर घर के सभी कमरों में घूमें और फिर मुख्य द्वार पर खीर रख दें । ऐसी जगह रखें कि गाय अथवा अन्य कोई जीव खा जाय, पैरों तले या गटर आदि में न जाय । नारियल फोड़ के घर के लोगों तथा आसपास में बाँट दें । इससे घर में धन-धान्य की बरकत में मदद होती है ।
दिवाली की रात का ध्यान, जप, सुमिरन सफल होता है । इस दिन रात्रि-जागरण व जप आदि का अनंत गुना फल होता है । सब काम छोड़कर साधन-भजन का लाभ लेना । आरोग्यप्राप्ति का मंत्र जपना, ब्रह्मचर्य की रक्षा का, भगवत्प्राप्ति का मंत्र जपना और घर में सुख-शांति, बरकत आये ऐसी जिनकी चाह हो वे लक्ष्मीप्राप्ति का मंत्र जपना, वह भी सफल हो जाता है । मंत्र है :
ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे ।
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।
भगवत्प्राप्ति की इच्छावाले संकल्प करना : ‘ॐकार मन्त्रः, गायत्री छन्दः, परमात्मा ऋषिः/भगवान नारायण ऋषिः, अन्तर्यामी परमात्मा देवता, अन्तर्यामी प्रीत्यर्थे, परमात्मप्राप्ति अर्थे जपे विनियोगः ।’
ऐसा विनियोग करके लम्बा श्वास लिया और होंठों से ‘ॐ ॐ ॐ ॐ...’ जप करते गये । 2-3 मिनट होंठों से, 2-3 मिनट कंठ से फिर 2-3 मिनट हृदय से प्रभु के नाम ‘ॐकार’ का जप करना ।
श्रद्धा, तत्परता, एकाग्रता और संयम - ये 4 चीजें जापक में जितनी अधिक उतना लाभ अधिक ।
दिवाली की शाम को शुद्ध हवामान में दोनों नथुनों से गहरा श्वास लिया, रोका, मन में ‘ॐ आनंद, ॐ शांति...’ जप किया फिर फूँक मार के श्वास बाहर निकाल दिया । श्वास बाहर निकालते समय मन में सोचो कि ‘चिंता, दुःख, बीमारी, बेवकूफी और अशांति गयी ।’ ऐसी 10-12 फूँकें मारो । फिर देखो कहाँ रहती है निगुरी चिंता, तनाव, अशांति, उच्च रक्तचाप आदि की बीमारी !
बलि प्रतिपदा, नूतन वर्ष : इस दिन नया संवत् प्रारम्भ होता है, गोवर्धन पूजा होती है । यह पवित्र पर्व हमें संदेश देता है कि इस दिन तुम अगर उत्साही रहोगे, हर्षित रहोगे, उन्नत विचारों में रहोगे, आनंदित रहोगे तो वर्षभर ये विचार तुम्हारी रक्षा करेंगे । और फिर प्रतिदिन इन विचारों को पोसते रहना ।
भाईदूज : यह भाई-बहन के हृदय में एक-दूसरे के प्रति दिव्य भाव प्रकटाने का पर्व है । किसीकी बहन को देखकर यदि मन में दुर्भाव आया हो तो भाईदूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन माने और बहन भी ‘पति के सिवाय सब पुरुष मेरे भाई हैं’ यह भावना विकसित करे और भाई का कल्याण हो ऐसा संकल्प करे ।
इस दिन जो भाई अपनी बहन के हाथ का भोजन करता है उसको यमदंड से मुक्ति मिल जाती है । सगी बहन न हो तो कुटुम्ब की बहन, जाति की बहन, पड़ोस की बहन के यहाँ भोजन करे । वह भी न हो तो नदी या लताओं को बहन मानकर वहाँ जा के भोजन करे और यह भावना करे कि ‘अब मैं वर्षभर शत्रुओं के भय से विनिर्मुक्त हो गया । यमराज की मुझ पर कृपा, आशीर्वाद रहेगा ।’