- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
इस पर्व के दिन सूर्यनारायण मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसको मकर संक्रांति कहते हैं । हर महीने संक्रांति होती है परंतु यह संक्रांति सम्यक् क्रांति का संदेश देती है; लड़-झगड़ के क्रांति नहीं, विधिवत् सबके उत्थान और मंगल की दिशा में ले जानेवाले जो विचार हैं, उन विचारों की प्रेरणा देनेवाली संक्रांति । इस दिन से सूर्य की गति उत्तर की तरफ हो जाती है, अंधकार कम होता चला जाता है, प्रकाश बढ़ता जाता है । भारतीय संस्कृति ने हमेशा ज्ञान-प्रकाश की, आत्मसुख की आराधना-उपासना की है ।
तप, त्याग का संदेश दे के जीव को ब्रह्मत्व की यात्रा करानेवाला पावन दिवस है मकर संक्रांति । भीष्म पितामह भी उत्तरायण में ही शरीर छोड़ना पसंद करते हैं । मनुष्य के 6 महीने होते हैं तो देवताओं का एक दिन और मनुष्य के दूसरे 6 महीने होते हैं तो देवताओं की एक रात होती है । मकर संक्रांति को देव जगते हैं ।
जीवन के रथ को वासुदेव की तरफ बढ़ायें
वसंत पंचमी, अमावस्या, मकर संक्रांति - ये माघ महीने के 3 महत्त्वपूर्ण दिन हैं और इन 3 दिनों में भी मकर संक्रांति विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जाती है । अब आप अपने जीवन के रथ को वासुदेव की तरफ बढ़ायें । विषय-विकारों का सुख देख लिया, प्रतीत होनेवाला धन देख लिया; जो प्रतीति है उसको छोड़ना पड़ता है, जो नित्य प्राप्त है उसको पाना ही प्राप्ति है । आप उस नित्य प्राप्त आत्मा में विश्रांति पाते जायें, अपने आत्मा के आनंद को उभारते जायें, अंतरतम सुख को निखारते जायें ।
पुण्यकाल का ऐसे उठायें लाभ
सूर्योदय से सूर्यास्त तक मकर संक्रांति का पुण्यकाल होता हैै । सूरज उगने से लेकर 5 घड़ी (2 घंटे) तक अति पुण्यकाल माना जाता है । आप लोग संक्रांति के पहले की रात को थोड़ा जप करते हुए, सूर्यनारायण की मानसिक प्रार्थना करते हुए सो जायें । प्रार्थना करना कि ‘हे प्रकाश के अधिष्ठाता ! हे ज्ञान के अधिष्ठाता ! आरोग्य के अधिष्ठाता ! हम जैसे भी हैं, आपके हैं । आप ‘सत्’ हैं तो हमारी मति में सत्प्रेरणा दीजिये ताकि हम गलत निर्णय करके दुःख की खाई में न गिरें । गलत कर्म करके हम माँ-बाप, कुटुम्ब, आस-पड़ोस, समाज तथा औरों के लिए मुसीबत न खड़ी करें ।’ ऐसा अगर आप संकल्प करते हैं तो भगवान आपको बहुत मदद करेंगे । भगवान उन्हींको मदद करते हैं जो भजन-सुमिरन करते हैं, भगवान को प्रार्थना करते हैं, प्रीति करते हैं ।
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगासागर और प्रयाग में स्नान करने के लिए लाखों लोगों का मेला लगता है । अब आप प्रयाग और गंगासागर न जाओ तो आप जहाँ हो वहीं प्रयाग और गंगा का स्मरण करके उबटन लगा के नहा लोगे तो उतना ही पुण्य हो जायेगा और मेहनत कम, समय व खर्चे का भी बचाव हो जायेगा । प्रभात से उत्तरायण पर्व का पुण्यकाल शुरू होता है परंतु कई घंटों पहले ही इस पर्व का प्रभाव वातावरण में आ जाता है ।
मकर संक्रांति के प्रभात को तिल के तेल से मर्दन करने के बाद ही नहाना होता है । तिल का तेल न मिले तो तिल का उबटन* बनाकर रगड़-रगड़ के नहाने से बड़ा पुण्यमय स्नान माना जाता है । शास्त्र कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन जो नहीं नहाते हैं वे 7 जन्मों तक बीमार और कंगाल रहते हैं । इस दिन जो विधिवत् नहायेंगे उनको लाभ भी ऐसा दिव्य मिलेगा कि पुण्यलोकों में जायेंगे । इस दिन तिल के उबटन व तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलमिश्रित जल का पान, तिल का हवन, तिल का सेवन तथा तिल का दान - सभी पापनाशक हैं ।
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REF: RP-ISSUE360-December-2022