Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

करोड़ गुना फलदायी है यह प्रबोधिनी एकादशी

12 नवम्बर को प्रबोधिनी (देवउठी) एकादशी है । इसके माहात्म्य के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : ‘‘माधव ! कार्तिक शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है, कृपया उसकी महिमा बताइये ।’’
श्रीकृष्ण ने कहा : ‘‘युधिष्ठिर ! कार्तिक शुक्ल पक्ष में प्रबोधिनी एकादशी होती है । उसका जैसा वर्णन ब्रह्माजी ने नारदजी के समक्ष किया था वही मैं तुम्हें बताता हूँ ।
नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘‘हे पिता ! कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य बताइये ।’’
ब्रह्माजी बोले : ‘‘पुत्र ! इस एकादशी का व्रत रखनेवाले को हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है । इसे हरिबोधिनी एकादशी भी कहते हैं । यह पुत्र-पौत्र प्रदान करनेवाली है ।
यह व्रत नरकों से उद्धार करनेवाला और भगवान में प्रीति बढ़ानेवाला है । इस व्रत से भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं, पितरों की सद्गति होती है । पिछले हजारों जन्मों के पाप भी इस एकादशी को रात्रि-जागरण (12 बजे तक), भगवन्नाम-जप आदि करने से नष्ट हो जाते हैं । सम्पूर्ण तीर्थ-स्नान करके सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है वह इस एकादशी को ध्यान, समाधि और रात्रि-जागरण करनेवाले को प्राप्त हो जाता है । उपवास करके भगवान गोविंद का पूजन करनेवाले के 100 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं । इस दिन गुरु-पूजन से भगवान विष्णु विशेष प्रसन्न होते हैं तथा दान आदि करने से असंख्य पुण्यों की प्राप्ति होती है ।
देवउठी एकादशी को पराये अन्न का त्याग करना चान्द्रायण व्रत का फल देता है ।* रात्रि-जागरण के समय शंख में जल लेकर श्रीजनार्दन को अर्घ्य देना चाहिए । सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है वही फल प्रबोधिनी एकादशी को अर्घ्य देने से करोड़ गुना होकर मिलता है ।’’
अब बाहर के - मूर्तिवाले भगवान कहाँ खोजने जाओगे ? गंगाजल शंख में लेकर अपने-आप पर और घर के लोगों पर छिड़क दोगे तो आपके नारायण - अंतर्यामी परमात्मा का अभिषेक मान लिया जायेगा । मन-ही-मन तुलसी-दल अर्पण करना विष्णु-पूजन माना जायेगा । जैसे सोये हुए पुरुष को प्रेम से, अपनत्व भाव से शीतल जल के छींटे मार देते हैं ऐसे ही शंख में जल भर के भगवान नारायण के ऊपर छिड़को । यह विशेष प्रसन्नता और आरोग्यता देनेवाला है ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा कि ‘‘इस एकादशी के माहात्म्य का पठन-श्रवण पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धि वाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करनेवाला है ।’’
भगवान को इस प्रकार उठायें
भगवान नारायण चतुर्मास में योगनिद्रा में आराम करते हैं । वे देवउठी एकादशी के दिन जगाये जायेंगे । भक्त मृदंग, झाँझ आदि बजाते हैं, मंत्र पढ़ते हैं कि भगवान जागिये, जगत का उद्धार कीजिये ।
मंत्र है :
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमंगलं कुरु ।।
‘हे गोविंद ! उठिये, उठिये, हे गरुड़ध्वज ! उठिये, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये ।’  (स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)
एकादशी के दिन सुबह नींद में से उठकर आप शांत हो जाना कि ‘आज देवउठी एकादशी है, अपने परमेश्वरदेव को हम जगायेंगे । भगवान अपने आत्मा में 4 मास तक विश्रांति पा रहे थे, अब उस योगनिद्रा से जगाये जा रहे हैं । उनकी हम पर पहली दृष्टि पड़ रही है । जैसे योगी पुरुष की ध्यान से उठने के बाद दृष्टि पड़ती है तो बड़ी पुण्यदायी होती है ऐसे ही भगवान की दृष्टि भी महान पुण्यदायी है । उस पावन दृष्टि से हम उन्नत हो रहे हैं ।’ इस प्रकार का चिंतन, ध्यान सुबह भी कर सकते हैं, पूजा-पाठ करते समय भी कर सकते हैं ।
इस दिन ‘ॐ नमो नारायणाय’ जप करनेवाले को मोक्ष के रास्ते की गति में बरकत मिलती है । पूरे कार्तिक मास में यह जप करने का विशेष महत्त्व है ।
अवश्य करें कपूर से आरती
देवउठी एकादशी को भगवान नारायण की कपूर से आरती करने से अकाल मृत्यु से या और कोई दुर्घटना से होनेवाली हानि से रक्षा हो जाती है । जिस घर में कपूर से आरती होती है वहाँ ऋणायन, धनात्मक ऊर्जा बनती है । भूत-पिशाच, डाकिनी-शाकिनी आदि का कुप्रभाव कपूर की गंध से नष्ट हो जाता है । भगवान की प्रीति के लिए कपूर से आरती करें । आरती के दर्शन से शत्रु की वृद्धि का शमन होता है ।
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करोड़ गुना फलदायी योग
वराह पुराण में आता है कि भगवान वराह पृथ्वी देवी से कहते हैं : ‘‘मनुष्य को प्रबोधिनी एकादशी का व्रत तो अवश्य करना चाहिए । सोमवार-मंगलवार तथा पूर्व एवं उत्तर भाद्रपद नक्षत्रों के योग में इस एकादशी का महत्त्व करोड़ गुना बढ़ जाता है ।’’
अतः इस योग में अधिक-से-अधिक ध्यान, जप, दान आदि का लाभ लें ।
* जो गुरुद्वार पर रहकर यथायोग्य भजन-सुमिरन, सेवा करते हैं अथवा जो नाना-नानी, मामा-मामी के यहाँ हैं या लड़का ससुराल में है तो उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह पराया अन्न है ।
REF: RP-ISSUE382-OCTOBER-2024