चेटीचंड उत्सव मनाना मतलब अपनी कायरता को भगाना, अपनी खोट को दूर करने की कुंजी आजमाना, अपने में प्राणबल फूँकना, अपने शोक को दूर करना । चेटीचंड के दिन सब मतभेदों को भूलकर लोग मिल जाते हैं । सेठ भी नाचता है, नौकर भी नाचता है, मुनीम भी नाचता है तो नेता भी नाचता है, भाई भी नाचते हैं तो बच्चे भी नाचते हैं ।
जहाँ धर्म, प्रेम, स्नेह की बात होती है वहाँ से भेदभाव, बड़प्पन-छोटापन, अहं की सिकुड़न चले जाते हैं ।
मुझे वेद पुरान कुरान से क्या ?
मुझे प्रेम1 का पाठ पढ़ा दे कोई ।
जीवन में प्रेम की कमी होती है तब संघर्ष होता है । प्रेम की जगह जब अहंकार लेता है, श्रद्धा व स्नेह की जगह जब अहंकार और वाहवाही लेते हैं तभी समाज में अव्यवस्था पैदा होती है । उस अव्यवस्था को दूर करने के लिए निर्गुण-निराकार परमात्मा की शक्ति सगुण-साकार रूप में आती है तब उसको ‘अवतार’ बोलते हैं । जैसे कंस के अहंकार को ‘और चाहिए, और चाहिए...’ करते हुए शांति नहीं मिली, वह जुल्म बढ़ाता चला गया तो भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ । मिर्खशाह (मिरखशाह) का ‘मुझे और सत्ता चाहिए, और राज्य चाहिए...’ यह अहंकार पेट न भर सका, उसने जुल्म किये तो झूलेलालजी का अवतरण हुआ ।
जुल्म करना तो पाप है लेकिन जुल्म सहना दुगना पाप है । जुल्म का बदला जुल्म से नहीं पर जुल्म का बदला साधना से चुकाओ । कोई तुम्हारे सामने तलवार लेकर खड़ा हो जाय तो तुम भी अगर तलवार ले के खड़े हो गये तो दोनों एक जैसे हुए । वह बाहर की तलवार उठाता है तो तुम भीतर स्नेह की तलवार लो कि उसकी बाहरी तलवार गिर जाय ।
अगर आराम चाहे तू, दे आराम खलकत2 को ।
सताकर गैर लोगों को, मिलेगा कब अमन तुझको ?
मैं आपसे निवेदन करूँगा कि आप पड़ोस में, कुटुम्ब में, घर में ऐसा वातावरण पैदा करो कि बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ें, पड़ोस की बेटियाँ, पड़ोस की बहनें एक-दूसरे से स्नेह से चलें । अपने घर, पड़ोस और जीवन की समस्या जितना हो सके स्नेह से सुलझायी जाय । स्वार्थी, अहंकारी तत्त्वों को भगवान सद्बुद्धि दें, झूलेलाल उनके अंदर अवतरित हों । बाहर के झूलेलाल तो रतनराय और देवकी के घर प्रकट हुए पर अंतर्यामी झूलेलाल आपके अंदर प्रकट हो सकते हैं ।
इस पर्व पर ज्योत जलायी जाती है । ज्योत जलाने का मतलब है कि आपके अंदर जो आत्मज्योत समायी हुई है वह ज्योत जगे तो आप सदा के लिए जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकते हो । ताहिरी (मीठे चावल) किसीके घर की, कुहर (उबले हुए चने, चौली आदि) किसीके घर के, सूखा प्रसाद किसीके घर का परंतु बाँटते हैं तो सबको देते हैं । धर्म हमको समानता, स्नेह, प्रेम सिखाता है, धर्म हमको बाँटकर खाना सिखाता है ।
दूसरे का बँगला देखकर हम अपनी झोंपड़ी नहीं गिरायें, दूसरों का लेना-देना और दूसरों का ठाठ-बाट देख के हम अपनी श्रद्धा और सात्त्विकता नहीं गँवायें । हमारा जीवन श्रद्धायुक्त हो । जैसे दरिया के तट पर वे सीधे-सादे सिंधी सज्जन श्रद्धा से जाकर बैठे, अंदर से शांत हुए तो वे तो तर गये पर साथ ही दूसरों को तारने का रास्ता भी बना के गये ।
कायरता छोड़कर उत्साही बनने का संदेश
कायरता जैसा दुनिया में कोई पाप नहीं । अहंकार, ईर्ष्या तो पाप है पर कायरता भी पाप है । जब-जब दुःख, मुसीबत, कायरता आये, मुश्किल मुँह दिखाये अथवा भय या चिंता आये तो घबराओ नहीं, आप घूँटभर पानी पियो, स्नान करो या हाथ-मुँह धोओ और थोड़ी देर परमात्मा का चिंतन करो, भगवन्नाम या ॐकार की ध्वनि करो, परमात्मा का नाम लो तो आपके अंदर उत्साह पैदा होगा, ज्योत जगेगी, आपको क्या व्यवहार करना है यह अंदर से प्रेरणा मिलेगी ।
स्नेह, श्रद्धा और भक्ति आपके जीवन को ऐसा मोड़ दें कि आपको बाहरी शराब न पीनी पड़े, बाहर से फैशन न करना पड़े । आश्रम में सदा यह कोशिश की गयी है कि लोग बाहर की प्यालियाँ छोड़कर अंदर की प्यालियाँ पियें । अगर परमात्मा की शरणागति नहीं लेते तो हजार-हजार की शरणागति लेनी पड़ती है । मिर्खशाह और डरे हुए लोगों ने नास्तिकता की शरणागति ली थी पर जो सीधे-सादे सिंधी थे वे दरवेश (संत) और भगवान के शरणागत थे । उन्होंने अपने कुल तो तारे, अपना जन्म तो सफल किया, साथ ही दूसरों के लिए भी जन्म सफल करने का द्वार खोल गये । हजार साल से ज्यादा समय हो चुका है पर उनकी कमाई हमसे बिसरती नहीं है । हर चेटीचंड पर हम लोग अपने जीवन में उत्साह, प्राणबल, श्रद्धा और स्नेह को बढ़ाने के लिए बहिराणा साहिब की शोभायात्रा निकालते हैं, प्रसाद बाँटते हैं और अपने जीवन को ताजा करते हैं । जीवन में चिंता आये तो आप चिंता को इतना मूल्य न दो, डर आये तो इतना न घबराओ, मिर्खशाह से बड़े मिर्खशाह आयें पर परमात्मा के आगे ये कुछ नहीं हैं, अपने आत्मा का घात न करना, परमात्मा में शांत होना ।
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*निर्विकारी प्रभुप्रेम 2. दुनिया के लोगों
REF: ISSUE351-MARCH-2022