Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आत्मशिव की उपसना का महापर्व

हर मास आनेवाली मासिक शिवरात्रि मनानेवाले मनाते हैं लेकिन वर्ष में एक शिवरात्रि आती है जिसको ‘महाशिवरात्रि’ कहते हैं । पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश - यह प्रकृति है । इससे परे जो परमात्मा है उसमें यह जीवात्मा विश्रांति पाये, उस पूजा-विधि की व्यवस्था और वह पूजन विशेष रूप से फले ऐसा दिन ऋषियों ने खोजा और वह दिन है महाशिवरात्रि ।
‘शिव’ शब्द का तात्त्विक अर्थ
‘शिव’ माना कल्याणस्वरूप, मंगलस्वरूप । ‘शिव’ शब्द प्राणिमात्र का अधिष्ठानस्वरूप है । हम श्वास में ऑक्सीजन लेते हैं और उच्छ्वास में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, उसका शुद्धीकरण कौन कर रहा है ? दिन-रात हमारे शरीर से विषैले परमाणु निकल रहे हैं, उस विष को हमारे लिए कौन बदलता है ? वह व्यापक सच्चिदानंद चैतन्य तत्त्व ! नदियाँ कचरा लेकर सागर में जाती हैं और वह सागर चलते-चलते उन सारे कीटाणुओं को, सारे कचरे को अपनी-अपनी जगह पर सेट करके फिर उसी जल से उभरता है और (बरसात के द्वारा) गंगा, यमुना होकर पवित्र जल बहता है । पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश के कण-कण में, अणु-अणु में जो सत्ता काम कर रही है वह शिव की अव्यक्त सत्ता, शिव का अव्यक्त स्वरूप है और जब उस अव्यक्त सत्ता और अव्यक्त स्वरूप में कोई भक्त साकार रूप की दृढ़ भावना करके पूजा-आराधना करता है तो अव्यक्त में से व्यक्त होने में उस शिव को देर नहीं लगती है ।
महाशिवरात्रि का तात्त्विक मर्म
जिसमें सारा जगत शयन करता है, जो विकाररहित है, उस (परम सत्ता) का नाम ‘शिव’ है । ‘रात्रि’ मतलब आरामदायिनी, सुखदायिनी, शांतिदायिनी अवस्था । शिवस्वरूप में सुख देनेवाली यह महाशिवरात्रि है ।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।।
(गीता : 2.69)
सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस भोग-संग्रह आदि में सभी प्राणी जागते हैं, तत्त्वज्ञानी महापुरुष की दृष्टि में वह रात है । जिन ईंट, चूने, लोहे, लक्कड़ की चीजों में, मेरे-तेरे में, इसमें-उसमें कुछ भी करके मजा लेने में लोग लगे रहते हैं, वह मुनीश्वरों की दृष्टि से अंधकार है और जिस अंधकारमयी महारात्रि, अहोरात्रि को बुद्धिमान साधक जागते हैं, वह मुनीश्वरों की शिवरात्रि है ।
उपवास का वास्तविक स्वरूप
शिवरात्रि तपस्या का पर्व है । भगवान शिव कहते हैं कि मैं स्नान से, वस्त्र-अलंकार, धूप-दीप, पुष्प और फल-फूल अर्पण करने से भी इतना प्रसन्न नहीं होता हूँ जितना महाशिवरात्रि के उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ । अपने आत्मा के समीप जाने की जो व्यवस्था या कार्यक्रम है, उसको बोलते हैं ‘उपवास’ । जप-ध्यान, स्नान, कथा-श्रवण आदि पवित्र सद्गुणों के साथ हमारी वृत्ति का वास यही उत्तम उपवास है ।
दूसरा अर्थ यह भी है कि हम उपवास करें तो हम अन्न न खायें । इससे क्या होगा कि अन्नादि जो रोज खाते हैं, उसको पचाने के लिए जीवनीशक्ति लगती है, उस दिन उसको आराम मिलेगा । मन और प्राण ऊपर के केन्द्रों में आयेंगे । जो बहुत दुर्बल हैं, जिनको शारीरिक रोग है, ऐसे लोग उपवास में भले फलाहार आदि करें लेकिन कमजोर व्यक्ति हो, चाहे मजबूत व्यक्ति हो सभी भगवान के साथ अपने चित्त का वास बनाने की भावना करें और भगवद्भाव में रहें तो उनका उपवास सार्थक हो जाता है । ऐसा उपवास तो सबको करना चाहिए । यदि इस दिन ‘बं-बं’ बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायुसंबंधी रोगों में लाभ होता है और भगवान शिव की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।
सुबह शुभ संकल्प करें
मनुष्य-जीवन के महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह शिवरात्रि बहुत सहायक है । इसलिए यह शिवरात्रि महाशिवरात्रि कही गयी है ।
महाशिवरात्रि की सुबह उठते समय बिस्तर पर ही संकल्प कर लेना कि ‘हे प्राणिमात्र के आधार ! हे सर्वाधार ! हे भगवान साम्बसदाशिव ! आज का दिन मैं उपवास और मौन धारण करके तुम्हारा चिंतन करते-करते तुम्हारे स्वरूप में, जो मेरे आत्मरूप में तुम विराजमान हो उसमें अधिक-से-अधिक विश्रांति पाऊँगा । शिवरात्रि के एक दिन की मेरी पूजा वर्षभर की पूजा का फल देनेवाली हो ।’ विष्णुजी या अन्य देवता का उपासक क्यों न हो लेकिन जिसने महाशिवरात्रि का लाभ नहीं लिया उसको परम लाभ की प्राप्ति जल्दी नहीं होती है । ‘मुझे परम लाभ की प्राप्ति करनी है । हे देव ! हे महाकाल ! इस कालचक्र से बचने के लिए मैं तुम्हारी शरण आ रहा हूँ । शिवं शरणं गच्छामि । आज का दिन मेरा महापूजा का दिन हो ।’
ऐसा संकल्प करके बिस्तर से उठना चाहिए और नहा-धोकर शिव-पूजन करें, ध्यान करें, जप करें, मौन रहें, रात्रि-जागरण करें ।
महाशिवरात्रि का उत्तम पूजन
महाशिवरात्रि की आराधना का एक तरीका यह है कि पत्र, पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से 4 प्रहर पूजा की जाय । दूसरा तरीका है कि मानसिक पूजा की जाय । इस रात्रि को तुम ऐसी जगह पसंद कर लो जहाँ तुम अकेले बैठ सको, अकेले टहल सको । फिर तुम शिवजी की मानसिक पूजा करो । उसके बाद अपनी वृत्तियों को निहारो, अपने चित्त की दशा को निहारो । चित्त में जो-जो आ रहा है और जो-जो जा रहा है, उस आने-जाने को निहारते-निहारते आने-जाने की मध्यावस्था को जान लो । उसे तुम ‘मैं’रूप में स्वीकार कर लो, उसमें टिक जाओ ।
तीसरा तरीका है कि जीभ न ऊपर हो न नीचे हो बल्कि तालू के मध्य में हो और जिह्वा पर ही आपकी चित्तवृत्ति स्थिर हो । इससे भी मन शांत हो जायेगा और शांत मन में शांत शिवतत्त्व का साक्षात्कार करने की क्षमता प्रकट होने लगेगी । महाशिवरात्रि का यह भी उत्तम पूजन है ।  
साधक कोई भी एक तरीका अपनाकर शिवतत्त्व में जगने का यत्न कर सकता है ।
महाशिवरात्रि का उत्तम जागरण
इस रात्रि में जागरण करते हुए ‘ॐ... नमः... शिवाय...’ इस प्रकार प्लुत उच्चारण कर शांत होते जायें, ॐ... नमः शिवाय जप करें । मशीन की नाईं जप, पूजा न करें, जप में जल्दबाजी न हो । बीच-बीच में आत्मविश्रांति मिलती जाय । इसका बड़ा हितकारी प्रभाव, अद्भुत लाभ होता है । साथ ही अनुकूल की चाह न करना और विपरीत परिस्थिति से भागना-घबराना नहीं । यह भी परम पद में प्रतिष्ठित होने का हितकारी
तरीका है । महाशिवरात्रि को भक्तिभावपूर्वक रात्रि-जागरण करना चाहिए । ‘जागरण’ का मतलब है जागना अर्थात् अनुकूलता-प्रतिकूलता में न बहना, बदलनेवाले शरीर-संसार में रहते हुए अबदल आत्मशिव में जागना । मनुष्य-जन्म कहीं विषय-विकारों में बरबाद न हो जाय बल्कि अपने लक्ष्य परमात्म-तत्त्व, सच्चिदानंदस्वरूप (सत् - जो सदा रहता है, चित् - जो ज्ञानस्वरूप है और आनंद - जो आनंदस्वरूप है) को पाने में ही लगे - इस प्रकार की विवेक-बुद्धि से अगर आप जागते हो तो
वह शिवरात्रि का ‘जागरण’ हो जाता है । इस जागरण से आपके कई जन्मों के पाप-ताप, वासनाएँ क्षीण होने लगती हैं तथा बुद्धि शुद्ध होने लगती है एवं जीव शिवत्व में जागने के पथ पर अग्रसर होने लगता है ।