Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आत्मसाक्षात्कार के 3 सरल उपाय

मनुष्य-शरीर दुर्लभ है, क्षणभंगुर है । अपने जीवन में कोई व्रत-नियम लाकर शरीर के दोषों को, मन के दुर्गुणों को और बुद्धि की मंदता को हटाकर बुद्धिदाता में विश्रांति पा लो ।
(1) विश्रांति पाने का तरीका यह है कि सोते समय भगवान को अपना और अपने को भगवान का मानते-मानते लेट गये । श्वास अंदर गया तो शांति, बाहर आया तो गिनती... श्वास अंदर गया तो आनंद, बाहर आया तो गिनती... ऐसा करते-करते नींद में चले जाओगे तो नींद का समय भक्ति में गिना जायेगा । संत कबीरजी ने बड़ी रहस्यमयी बात कही :
माला श्वासोच्छ्वास की भगत जगत के बीच ।
जो फेरे सो गुरुमुखी ना फेरे सो नीच ।।
यह श्वासोच्छ्वास की माला है । करमाला भी ठीक है । रुद्राक्ष, तुलसी आदि की माला पर जप करने से लाभ होता है, करना चाहिए । फिर रविवार की सप्तमी, बुधवार की अष्टमी, मंगलवारी चतुर्थी, सोमवती अमावस्या अथवा सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण हो तो जप का हजार गुना, लाख गुना फल होता है परंतु उसके साथ-साथ अगर श्वास की माला भी रात को, सुबह अथवा बस-गाड़ी आदि में बैठे हो तो चालू कर दो तो जल्दी सत् का संग होने लगेगा । फिर ध्यानयोग का शिविर लगे और उसमें ध्यान में बैठते-बैठते बुद्धि 3 मिनट तक आत्मविश्रांति पा ले तो सत्य का साक्षात्कार हो जाता है । उसमें गुरुकृपा की कुंजी काम करती है, गुरु का संकल्प काम करता है । हमने अनुष्ठान किया फिर तड़प बढ़ी और पहुँच गये गुरुजी के पास । गुरुजी भी मानो बस देखते ही बरस पड़े, यह लो...
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर कार्य रहे ना शेष ।
(2) सामवेद की संन्यास उपनिषद् में लिखा है कि आप प्रणव (ॐकार) का प्रतिदिन 12000 (120 माला) जप करें और नीच कर्मों का त्याग करें, ब्रह्मचर्य का, संयम का आश्रय लें तो एक साल के अंदर परमात्मप्राप्ति हो सकती है ।
एक साल में कोई स्नातक नहीं होता है परंतु एक साल अगर सत्य की तरफ लगा दें तो सारे स्नातक तुम्हारा दीदार और तुम्हारा मार्गदर्शन पाकर महान आत्मा होने लगेंगे ।
(3) श्री योगवासिष्ठ महारामायण में महर्षि वसिष्ठजी कहते हैं : ‘‘जिसको शीघ्र परमात्मप्राप्ति करनी हो वह एक प्रहर (3 घंटे) प्रणव (ॐकार) का जप करे, गुरु विधि बता देंगे । एक प्रहर ब्रह्मज्ञान के शास्त्रों (श्री योगवासिष्ठ महारामायण आदि) का अध्ययन करे, एक प्रहर सद्गुरु-सेवा करे और एक प्रहर परमात्मा के ध्यान में शांत हो जाय ।’’
कैसे ध्यान में शांत हों ? ह्रस्व अर्थात् जल्दी-जल्दी उच्चारण करेंगे तो पापनाशिनी शक्ति पैदा होगी - राम राम राम राम, हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ, ॐ ॐ ॐ ॐ... । दीर्घ उच्चारण करेंगे तो आध्यात्मिक व आरोग्य शक्ति विकसित होती है - हरि ओऽऽम्... हरि ओऽऽम्... ओऽऽम् नमः शिवाय... और प्लुत अर्थात् खूब लम्बा उच्चारण - हरि ओऽऽ... ... म्... ... करने से आत्मविश्रांति पाने की योग्यता बनती है । सभी कर सकते हैं शीघ्र अपना कल्याण, सरल उपाय है । मन की शांति और तन की तंदुरुस्ती - दोनों की प्राप्ति होती है । ऐसा करनेवाले कुछ लोग इकट्ठे होकर जो संकल्प करेंगे वही होने लगेगा क्योंकि अनजाने में थोड़ी शांति मिली उस आत्मदेव में ।
भै नासन2 दुरमति हरन कलि मै3 हरि को नाम ।।
निस दिन जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ।।
एक असली काम पूरा कर लो तो बाकी के काम ऐसे ही हो जायेंगे । जरा-जरा, जरा-जरा करके क्या होगा ! ईश्वर में विश्रांति पाना, ईश्वर में शांत होना बढ़ा दो । ईश्वर के नाते ही मिलो-जुलो, हँसो-रोओ - यह बड़ा भारी सत्संग है । उन पूर्वजों को धन्यवाद है, नमन है कि वे मिर्ख की दुष्टता के आगे झुके नहीं और लड़ाई-झगड़े भी किये नहीं, अंतरात्मा-परमात्मा में शांत हो गये तो झूलेलाल भगवान का अवतार हो गया ।
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध ।
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध ।।
करोड़ों कुसंस्कारों को, दुष्कर्मों की वासनाओं को मिटाने की ताकत सत्संग में है । अकेले में कोई हजार वर्ष क्या लाख वर्ष तप करे, दुर्गुण उखाड़ के नहीं फेंक सकता है, दुर्गुण दबे रहेंगे लेकिन सत्संग में दुर्गुणों का जड़-मूल से विनाश हो जाता है और सद्गुण ऐसे परिपक्व हो जाते हैं कि सत्यस्वरूप परमात्मा, जो आनंदस्वरूप है, चैतन्यस्वरूप है, उसकी दिव्यता से जीवन ओतप्रोत हो जाता है । ॐ ॐ ॐ...
REF: ISSUE353-MAY-2022