Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

पूज्य बापूजी के सामर्थ्य व अम्माजी की निष्ठा का प्रभाव

रमा एकादशी को पूज्य बापूजी की मातुश्री माँ महँगीबाजी (अम्माजी) का महानिर्वाण दिवस है । इस अवसर पर प्रस्तुत है उन्हींकी सेविका द्वारा बताया गया उनके महानिर्वाण के पूर्व का एक प्रसंग :

अम्माजी ने महानिर्वाण के 6 दिन पहले से ही खाना व बोलना बंद कर दिया था । 3 दिन तक केवल मूँग का पानी पिया और ॐ ॐ ॐ...बोलती थीं । उसके बाद के 3 दिन तो मूँग-पानी पीना व ॐ ॐ...बोलना भी बंद कर दिया, एकदम शांत हो गयी थीं ।

अम्माजी की स्थिति देख पूज्यश्री ने कहा कि ‘‘अम्मा की नाव किनारे लगने की स्थिति में आ गयी है ।’’

गुरुदेव ने अम्माजी की सेवा में जबलपुर के नाड़ी विद्या के निष्णात एक वैद्य को रखा था । 2 नवम्बर 1999 की बात है । वैद्य ने नाड़ी देखी और बोले : ‘‘आधी रात को डेढ़ से ढाई बजे के बीच अम्माजी यह देह छोड़ देंगी ।’’

पूज्यश्री बोले : ‘‘उस समय जाना तो ठीक नहीं है ।’’

वैद्य : ‘‘यही विधान है । मेरा गणित आज तक कभी झूठा नहीं हुआ ।’’

रात्रि के समय 2-2 घंटे अलग-अलग व्यक्ति सेवा में रहते थे । सेवा में मैयाजी (पूज्यश्री की धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवीजी) का समय चल रहा था । जो समय वैद्य ने बताया था उस समय सचमुच अम्माजी को पेट में झटका लगा, तो मैयाजी ने मुझे उठाया कि ‘‘देख जरा, अम्मा को क्या हो रहा है !’’

मैंने देखा कि पहले अम्माजी का पैर ऊपर उठा फिर तेजी से नीचे गिरा और पूरा ठंडा हो गया, फिर घुटने, कमर आदि सब ठंडे होते गये । एक-एक अंग निष्प्राण होता जा रहा था । जब गले तक प्राण आ गये तो मैं जोर से चिल्लायी : ‘‘बापूजी !...’’

पूज्यश्री तुरंत आये, अम्माजी को गोद में लिया और बोले : ‘‘तुम लोग यहाँ से जाओ ।’’

एक घंटे बाद मैयाजी ने मुझसे कहा : ‘‘देख तो सही, क्या हुआ ।’’

देखा तो कमरे में अम्माजी अकेली थीं । मैंने मैयाजी को आवाज लगायी कि ‘‘बापूजी अम्मा को अकेली छोड़ के गये हैं ।’’

मैयाजी आयीं तो हमने देखा कि अम्मा में पूरी चेतना आ गयी है । हाथ-पैर सब हिल रहे थे और साँस भी ठीक चल रही थी । पूज्यश्री का संकल्प-सामर्थ्य और अम्माजी की अपने सद्गुरुदेव पूज्य बापूजी के प्रति अडिग श्रद्धा व निष्ठा का ही प्रभाव था कि मृत्युवेला भी टल गयी । हम बहुत खुश हो गये । सुबह 5 बजे वैद्य अम्मा को देखने आये तो भौचक्के रह गये । यह कैसे हुआ वे जाँचने-परखने लगे लेकिन उनके हावभाव बता रहे थे कि उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था ।

पूज्यश्री विनोदपूर्वक बोले : ‘‘क्या है वैद्यराज ! अभी क्या करना है अम्मा का ? काशी ले जाना है कि हरिद्वार ?’’

अब वैद्यराज बेचारे क्या बोलते ! वे तो अहोभाव से भरकर आँखों से अश्रुधाराएँ बहाते हुए बोले : ‘‘बापूजी ! आज तक मेरा गणित कभी भी झूठा नहीं हुआ । पर आप तो परमात्मा हैं, आपने तो इनकी देह में फिर से प्राण फूँक दिये ! ऐसा मैंने जीवन में पहली बार देखा है । अब मेरा इधर क्या काम है !’’

नाड़ी विद्या के अत्यंत मशहूर एवं अनुभवी उन वैद्यराज ने अपना सामान बाँधा और पूज्यश्री को प्रणाम करके वहाँ से चल दिये । फिर 4 नवम्बर 1999 को रमा एकादशी के प्रातःकाल में बापूजी ने अम्माजी को ब्रह्मलीन होने की छुट्टी दी ।