Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की महिमा वर्णनातीत है !

साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का प्राकट्य दिवस : 17 मार्च

ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के श्रीमुख से निकले वचन प्रकृति के लिए अकाट्य हो जाते हैं । यही बात स्पष्ट कर रहे हैं राजस्थान के अलवर जिले के वल्लभ ग्राम के मुखिया मेवाराम गुरनानी द्वारा बताये गये साँईं श्री लीलाशाहजी के प्रसंग :

‘‘रेलगाड़ी अपने-आप ले चलेगी’’

‘‘एक बार पूज्य लीलाशाहजी महाराज आगरा जानेवाले थे । वे अधिकतर खुले मैदान में आसमान के नीचे बैठकर सत्संग करते थे । उस दिन भी भक्त बैठे हुए थे, एक श्रद्धालु शास्त्र पढ़ रहा था और स्वामीजी व्याख्या कर रहे थे । रेलगाड़ी का समय हो रहा था, अतः उन्हें बताया गया : ‘‘स्वामीजी ! रेलगाड़ी का समय हो गया है ।’’

स्वामीजी ने शास्त्र-पठन करनेवाले से पूछा : ‘‘अभी इसमें कितना समय लगेगा ?’’

उसने कहा : ‘‘स्वामीजी ! लगभग आधा घंटा ।’’

‘‘इसे पूरा करो । लीलाशाह को रेलगाड़ी लेट होकर अपने-आप ले चलेगी ।’’

और सचमुच हुआ भी वैसा । उस दिन रेलगाड़ी आधा घंटा लेट चली और स्वामीजी उसीसे गये ।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था

सर्दी का मौसम था । वल्लभ ग्राम में स्वामीजी के चारों ओर भक्त बैठे हुए थे । एक भक्त ने निवेदन किया : ‘‘स्वामीजी ! इस बार सर्दी में बारिश नहीं हुई है, रबी की फसल हेतु बारिश की आवश्यकता है । अतः कृपा करें ।’’

स्वामीजी बोले : ‘‘इस बार सर्दी में बारिश नहीं होगी ।’’

सभी सोच में पड़ गये कि अगर बारिश नहीं होगी तो फसल नहीं होगी और हम परेशानी में आ जायेंगे ।

स्वामीजी ने कहा : ‘‘अगर बारिश होगी तो बेचारी गायों को परेशानी होगी क्योंकि आपके यहाँ ऐसी ठंड में उन्हें बारिश से बचाने हेतु कोई उचित व्यवस्था नहीं है । बाकी रहा आपकी परेशानी का सवाल तो बारिश न होने से आपकी फसल को कोई नुकसान नहीं होगा, आपको कोई परेशानी नहीं होगी ।’’

सचमुच, स्वामीजी के वचन सत्य निकले । उस वर्ष सर्दी में बारिश नहीं हुई और फसल भी बहुत अच्छी हुई । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । ऐसे थे प्राणिमात्र का भला चाहनेवाले साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज !

आज्ञा न मानने का परिणाम

एक बार मैं तथा मेरा भाई वल्लभ ग्राम के आश्रम में, जो कि गाँव से कुछ दूर है, स्वामीजी के पास बैठे हुए थे । स्वामीजी ने दो बार कहा : ‘‘बारिश होनेवाली है, अब जाओ !’’

हमने ऊपर देखा तो आसमान साफ था, उठने की इच्छा ही नहीं हो रही थी तो बैठे रहे । आखिर स्वामीजी ने तीसरी बार जोर से कहा : ‘‘अब जाओ ! बारिश आने ही वाली है ।’’

हम उठकर चलने लगे, कुछ ही दूर गये होंगे कि एकदम बारिश आ गयी और हम भीग गये । तब हमें लगा कि ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों से भूत-भविष्य कुछ छुपा नहीं रहता, उनकी आज्ञा का तुरंत पालन करने में ही कल्याण निहित है । यदि हम स्वामीजी की आज्ञा पहले ही मान लेते तो भीगना न पड़ता ।

बादल भी मानो सत्संग सुन रहे हों !

एक बार स्वामीजी आगरा की गौशाला में सत्संग कर रहे थे । अचानक घनघोर घटाएँ आ गयीं, बादल गरजने लगे । हम सब बाहर खुले मैदान में बैठे हुए थे । हम सोच रहे थे कि उठकर अंदर चल के बैठें ।अतः बार-बार ऊपर देखने लगे । हमारा ध्यान बँटा हुआ देख स्वामीजी ने कहा : ‘‘चुपचाप बैठकर सत्संग सुनो, चिंता मत करो । आप सब बारिश शुरू होने से पहले ही अपने-अपने घर पहुँच जायेंगे ।’’

हुआ भी ऐसा ही । सत्संग समाप्त होने के बाद जब सब अपने-अपने घर पहुँचे, तब बारिश आयी ।’’

पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : ‘‘आत्मानंद में मस्त मेरे परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव (भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी) के द्वारा इतने चमत्कार होते हुए भी उनकी महानता चमत्कारों में निहित नहीं है, उनकी महानता तो उनकी ब्रह्मनिष्ठा में निहित है । ब्रह्मनिष्ठा तो सभी साधनाओं की अंतिम निष्पत्ति (परिपाक, पूर्णता) है ’’  

REF: RP-ISSUE339-MARCH-2021