Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

रामबाण बूटी

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

 (महात्मा गांधी पुण्यतिथि : 30 जनवरी)

सबसे सबल सहारा : भगवत्प्रार्थना

एक होती है वासनामयी प्रार्थना, दूसरी होती है प्रभु के उद्देश्य से की प्रार्थना । वासनामयी प्रार्थना तो पूरी हो, कई बार न भी हो तो इसमें भी भगवान की कृपा है परंतु ईश्वर के उद्देश्यवाली प्रार्थना अगर सच्चे हृदय से निकलती है तो जितनी भगवान की कृपा रक्षा कर लेती है उतनी हमारे बाप-दादाओं की ताकत नहीं कि हमारी रक्षा करे ।

गांधीजी के बेटे मणिलाल की तबीयत ऐसी गम्भीर थी कि डॉक्टर ने कहा : ‘‘अंडा और मुर्गी का शोरबा खिलाओ ।’’

गांधीजी ने कहा : ‘‘स्थूल शरीर को ठीक करने के लिए हम मन-बुद्धि को बिगाड़ें या आत्मा का अधःपतन करें ! यह काम मैं नहीं कर सकता ।’’

पारसी डॉक्टर बोला : ‘‘तो फिर तुम शरीर में गीले कपड़े लपेटो, वही इलाज करो ।’’

गांधीजी बोले : ‘‘हाँ, चाहे जो हो जाय लेकिन मैं इसके आत्मा की अधोगति नहीं होने दूँगा ।’’

मणिलाल उस समय 10 साल का था । गांधीजी चले गये चौपाटी पर, भगवान को प्रार्थना की : अब ये हमारे लौकिक, देशी उपाय हैं । मेरा बेटा थोड़े ही है, वास्तव में तो सभी आपकी संतानें हैं लेकिन निमित्त मैं बना हूँ । अब आप ही उसकी रक्षा करो मेरे राम !...

ऐसा करके शांत हो गये । जब समुद्र-किनारे से वापस लौटे तो मणिलाल ने कहा : ‘‘पिताजी ! आप कम्बल ओढ़ा के चले गये, थोड़ी देर बाद शरीर से खूब पसीना निकला । अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ ।’’

फिर मणिलाल भले-चंगे हो गये ।

अद्भुत रसायन : भगवन्नाम

गांधीजी वृद्ध हुए, पाचन कमजोर था । यात्रा में कहीं दूध मिलता, कहीं नहीं मिलता था । गांधीजी एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे । एक गाँव में बकरी का दूध सम्भव नहीं था तो नारियल का पानी दिया गया । गांधीजी को दस्त हो गये । वे चलते-चलते अपने कमरे तक तो पहुँचे परंतु मूर्च्छित-से हो गये ।

उनकी सेविका मनु घबरायी और डॉक्टर को चिट्ठी लिखी और किसीको कहा कि फलाने-फलाने डॉक्टर को यह खबर दो ।थोड़ी देर बाद गांधीजी सजग हुए ।

मनु ने कहा : ‘‘बापूजी ! मैं तो घबरा गयी थी और मैंने डॉक्टर को चिट्ठी भी लिखी ।’’

गांधीजी बोले : ‘‘चिट्ठी लिखकर किसीको दुःख देने की अपेक्षा तू अगर भगवन्नाम-जप करती तो मुझे ज्यादा प्रसन्नता होती क्योंकि भगवन्नाम की औषधि सूक्ष्म और स्थूल शरीर पर अच्छा काम करती है । मैं मूर्च्छित-सा हो गया फिर भगवन्नाम लेने की आदत के कारण अपने-आप ठीक हो गया । भगवन्नाम की आदत से मेरे अंदर जो रस बना उसने अस्वस्थता और कमजोरी को भगा दिया ।’’

भगवद्-चिंतन, भगवन्नाम, भगवद्-ध्यान से एक अद्भुत रसायन पैदा होता है जो सभी प्रकार के रोगों को शांत करने में अमोलक औषधि का काम करता है ।

राम नाम की औषधि, खरी नीयत से खाय ।

अंग रोग व्यापे नहीं, महारोग मिट जाय ।।

शब्दों का बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है । शब्द अगर मंत्र हैं तो सूक्ष्म, दैविक जगत से आपको जोड़ देते हैं और वे शब्द अगर सद्गुरु के द्वारा आपकी योग्यता, पसंदगी के अनुरूप आते हैं, गुरुमंत्र होकर आते हैं तो आपके विकार, चिंता व अशांति भाग खड़े होते हैं और आपके चेहरे पर व हृदय में रौनक आ जाती है । 

 

REF: ISSUE337-RP-JANUARY-2021