बहू सासु के लिए बुरा सोचती है तो सासु भी बहू के लिए बुरा सोचेगी । हम प‹डोसी के लिए बुरा सोचते हैं तो पडोसी भी हमारे लिए बुरा सोचेगा । हम भला सोचते हैं तो वह भी भला सोचता है । आजकल की लड़कियों को यह पता नहीं । शादी करके गयी, अपने पति को बोलती है :‘‘आजादी का जमाना है, मैं तो सासु के साथ नहीं रहूँगी । जरा-जरा बात में टोकती है कि यह नहीं करो, ऐसा करो, वैसा करो... ।’’
पति : ‘‘अरे, कोई बात नहीं । घर के बड़े, बड़े होते हैं । उनसे मिलकर रहना चाहिए ।’’
फिर थोड़े दिन हुए, बोली : ‘‘नहीं, मैं तो अलग रहूँगी ।’’
रोज ‘अलग-अलग...’ सुनकर पति ने कहा : ‘‘चलो ।’’
अब वे अलग रहने लगे तो दो चूल्हे हो गये, खर्चे बढ़ गये । घर में पापड़ खत्म हो गये । वह तो खाने-पीने की शौकीन थी । पति से बोली : ‘‘पापड़ खत्म हो गये हैं ।’’
पति ने कहा : ‘‘तो तू बना ले ।’’
‘‘कैसे बनते हैं ?’’
‘‘जा फिर, माँ से सीख ले ।’’
सासु के पास गयी, बोली : ‘‘सासु माँ ! सासु माँ !! पापड़ कैसे बनाये जाते हैं ?’’
सासु : ‘‘मूँग और उड़द से ।’’
‘‘वह तो मैं जानती हूँ ।’’
‘‘उनकी दाल पीसकर आटा बनाया ।’’
‘‘वह तो मैं जानती हूँ ।’’
‘‘उस आटे में जीरा, काली मिर्च, नमक डालना है ।’’
‘‘हाँ, जीरा तो डालना ही पड़ेगा न ! वह तो मैं जानती हूँ । फिर क्या करना है ?’’
‘‘पानी में थोड़ा मीठा सोडा घोलकर उस पानी से आटा गूँधना है । फिर छोटी-छोटी गोलियाँ बना लेते हैं ।’’
‘‘वह तो मुझे पता है, फिर क्या करना है ?’’
सासु बोली : ‘‘जैसे रोटी बेलते हैं ऐसे पापड़ भी बेले जाते हैं ।’’
‘‘वह तो बेलना ही पड़ेगा न ! बेले बिना पापड़ कैसे बनेंगे ! यह भी मैं जानती हूँ । पापड़ बेले, फिर क्या करना है ?’’
‘‘कमरे में बिछा देने हैं ।’’
‘‘हाँ, बिछाने तो हैं । वह तो मैं जानती हूँ, फिर... ?’’
सासु को आया गुस्सा, बोली : ‘‘आगे की विधि प‹डोसन से पूछ ले ।’’
बहू ने प‹डोसन के पास जाकर सासु ने जो बताया था वह सब उसको विस्तारपूर्वक बता दिया और कहा : ‘‘यह सब तो मैं जानती थी ।’’
प‹डोसन उसकी नादानी समझ गयी । उसे सबक सिखाने के लिए वह बोली : ‘‘अब ऐसा करो कि बेले हुए सब पापड़ पानी की मटकी में डाल देना ।’’
तब बहू बोली : ‘‘यह भी मैं जानती हूँ ।’’
प‹डोसन हँसी दबाकर बोली : ‘‘वाह-रे-वाह लाड़ी ! तुम तो सब जानती हो ।’’
पत्नी ने वैसा ही किया । पति आया और जैसे ही उसने पापड़ देखे, झुँझलाकर पत्नी को बोला : ‘‘अरे, यह क्या कर दिया ! सब पापड़ गुड़-गोबर हो गये । पापड़ भी नहीं बनाना जानती ! बड़े-बुजुर्गों का साथ-सहकार लिये बिना तो जिंदगी भी बिगड़ जायेगी ।’’
संत-महापुरुषों और माता-पिता, बड़े-बुजुर्गों के ज्ञान से जीवन सँवरता है । आपके जीवन में देखो कि आप बहू हो तो सासु के काम आती हो कि नहीं ? देवरानी हो तो जेठानी के और जेठानी हो तो देवरानी के काम आती हो कि नहीं ? आपके द्वारा किसीका मंगल होता है कि नहीं ? जितना-जितना आप दूसरे के काम आयेंगे, दूसरे के मंगल में आप हाथ बँटायेंगे उतना ही घूम-फिर के आपका मंगल होगा ।
सासु का कर्तव्य है कि बहुओं को अपने हृदय में जगह दे । बहुओं का कर्तव्य है कि सासु-ससुर को अपने दिल में जगह दें; सासु के दिल को जीत लें । पत्नी पति की अंतर्यामी बने और पति पत्नी के विकास का एक स्तम्भ बन जाय । यदि सासु बहू की और बहू सासु की अंतर्यामी बन जाय तो कुटुम्ब, कुल-खानदान स्नेह से भरा रहेगा ।