Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

मिथ्या कलंक से बचें

(गणेश/कलंक चतुर्थी पर विशेष)

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन निषिद्ध माना गया है । इसी दिन चन्द्र-दर्शन से भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का मिथ्या कलंक लगा था ।

पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि एक दिन चन्द्रमा को अपने सौंदर्य का अभिमान हो गया और उन्होंने गजवदन गणेशजी का उपहास कर दिया । अपने तिरस्कार को ताड़कर गणेशजी ने शाप दिया कि ‘‘आज से तुम काले-कलंक से युक्त हो जाओ तथा जो भी आज के दिन तुम्हारा मुख देखेगा वह भी कलंक का पात्र होगा ।’’ उस दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी थी ।

चन्द्रमा के क्षमा-याचना करने पर गणपतिजी ने कहा : ‘‘आगे से तुम सूर्य से प्रकाश पाकर महीने में एक दिन पूर्णता को प्राप्त करोगे । मेरा शाप केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को विशेष रहेगा, बाकी चतुर्थियों पर इतना प्रभावी नहीं होगा । इस दिन जो मेरा पूजन करेगा उसका मिथ्या कलंक मिट जायेगा ’’

चतुर्थी तिथि के स्वामी गणपति हैं । उपरोक्त प्रसंग से लेकर आज तक अनेक लोगों ने गणपतिजी के उस शाप के प्रभाव का अनुभव किया तथा निरंतर अनुसंधानगत प्रमाणों के कारण आम जनमानस ने भी इसे स्वीकार किया ।

चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन के निषेध का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी एक ऐसी त्रिभुज कक्षा में रहते हैं जिससे प्राणशक्ति की विषमता रहती है । सूर्य चारों ओर से केवल प्राणशक्ति बरसानेवाला ही नहीं है अपितु उसमें मारक किरणों की भी सत्ता है । पृथ्वी की ओर सूर्य का एक बाजू ही सदैव नहीं रहता, पृथ्वी के भ्रमण के कारण वह प्रतिक्षण बदलता रहता है । यह दशा चन्द्र पिंड की भी है । प्रायः सब चतुर्थियों को और खासकर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अपनी चौथी कला दर्शानेवाला चन्द्रमा सूर्य की मृत्यु-किरणवाले भाग से प्रकाशित होता है । हमारा मन चन्द्र से अनुप्राणित (प्रेरित) है । भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने से हमारा मन भी चन्द्रमा की विकृत तरंगों से तरंगित होगा व अशुभ फलप्राप्ति का निमित्त बनेगा । अतः इस दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है ।

इस वर्ष 31 अगस्त (चन्द्रास्त : रात्रि 9.39 बजे) दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है ।

अनिच्छा से चन्द्र-दर्शन हो जाय तो...

यदि भूल से भी चौथ का चन्द्रमा दिख जाय तो श्रीमद्भागवत के 10वें स्कंध के 56-57वें अध्याय में दी गयी स्यमंतक मणि की चोरी की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए 

निम्नलिखित मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक का प्रभाव कम होता है ।

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः 

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

सुंदर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है अतः तुम रोओ मत । अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण : 78.62-63)

चौथ के चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है । दर्शन हो जाय तो उपरोक्त मंत्र-प्रयोग अथवा तृतीया (10 अगस्त) या पंचमी (1 सितम्बर) के चन्द्रमा का दर्शन कर लो और स्यमंतक मणि की चोरी की कथा का वाचन या श्रवण करो । इससे अच्छी तरह कुप्रभाव मिटता है । 

 

REF: RP-ISSUE308 –AUGUST-2018