Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

श्रेष्ठ साधक कैसे बनें ?

श्रेष्ठ साधक कैसे बनें ?

मनुष्य आज इतनी-इतनी परेशानियों, समस्याओं और चिंताओं के बोझ से लदा रहता है कि कहाँ सत्संग सुने ?... कब सत्संग को विचारे ?... किस तरह जीवन में उतारे ?... लेकिन बिना सत्संग, जप, अनुष्ठान, सेवा, स्मरण के जीव की सद्गति सम्भव नहीं है । आज ये विचारणीय प्रश्न हैं कि कैसे उसे सांसारिक झंझटों के बीच परमात्म-शांति की अनुभूति हो ? कैसे वह अपने नित्यकर्म में संलग्न रहकर परमात्मा की आराधना से अंतःकरण को पावन करता रहे ?

यह सत्य है कि हम संसार में रहते हैं इसलिए संसार को छोड़ पाना हमारे लिए सम्भव नहीं है किंतु यह भी तो उतना ही वजनदार सत्य है कि हमारा अमूल्य मनुष्य-जन्म संसार में उलझकर गँवाने के लिए तो कतई नहीं हुआ है । न जाने कितनी-कितनी माताओं के शरीर से, पिताओं के शरीर से गुजरकर, असहनीय यातनाओं को सह के हमने यह अनमोल मानव-शरीर पाया है । अपने सच्चे नाथ का साक्षात्कार करने का दुर्लभ अवसर पाया है । ऐसे सुखद संयोग के बाद भी हम लापरवाह रहे तो कैसे चलेगा ? जरा तो सोचिये कि परमात्मा को, गुरु को क्या मुँह दिखायेंगे ! अतः मनुष्य-जन्म की सार्थकता इसीमें है कि हम अपने सच्चे स्वरूप का साक्षात्कार करके जीते-जी मुक्त हो जायें ।

जो परम तत्त्व को उपलब्ध होना चाहते हैं, उनके लिए कुछ युक्तियों से और प्रभु की कृपा से यह सहज हो जायेगा । आप एक श्रेष्ठ, सात्त्विक साधक बननेभर का लक्ष्य बना लें । एक उन्नत, जिज्ञासु साधक बननेभर का संकल्प आपको उस अनुभूति से सम्पदावान बना देगा, जो आपकी अपनी विरासत है । एक श्रेष्ठ साधक में कौन-से गुण होने चाहिए, इस बात को गम्भीरतापूर्वक समझ लें । यदि आप एक श्रेष्ठ साधक बनने का लक्ष्य अपने जीवन में रखते हैं तो आप परम तत्त्व के अधिकारी भी बन सकते हैं क्योंकि शुद्ध, सात्त्विक, श्रद्धासम्पन्न अंतःकरण में परमात्म-माधुर्य और ज्ञान स्फुरित होता है । आप थोड़ा चलेंगे तो ईश्वरीय सत्ता आपकी मदद करेगी, बिल्कुल पक्की बात है । ज्यों-ज्यों आप साधना के पथ पर एक-एक कदम आगे बढ़ाते चलेंगे, त्यों-त्यों आपमें उस आनंदस्वरूप को जानने की उत्सुकता बढ़ती जायेगी । उत्सुकता जब तीव्र होगी, लालसा जोर पकड़ेगी तो फिर आप उस यार (परमात्मा) से कहाँ दूर रह पायेंगे !

सर्वप्रथम परमात्म-सुख पाने का लक्ष्य निर्धारित करें । प्रतिदिन का नियम निश्चित करें । एक बार संकल्प ले लें कि ‘मुझे रोज इतनी मालाएँ करनी हैं । माह में इतने दिन मौन रहना है । इतने महीने में मुझे एक अनुष्ठान करना है । प्रतिदिन इतने समय सत्संग सुनना है । सत्शास्त्रों का मनन-अध्ययन करना है । इतना समय सेवा करनी है और व्यवहारकाल में रहते हुए भी मुझे निरंतर सुमिरन करना है ।’ ऐसे आप अंतर्यामी ईश्वर के साथ अनन्यरूप से जुड़ जायेंगे । आरम्भ में ५ मिनट भगवन्नाम लेना शुरू करो । फिर ६, ७, ८, ११ मिनट का नियम ले लो । ‘मैं जैसा-तैसा हूँ, तुम्हारा हूँ । तुम मेरे अंतरात्मा हो, सर्वव्यापक हो । दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं हो, पराये नहीं हो । मेरे अपने हो मेरे प्रभु ! मैं आपको नहीं जानता हूँ लेकिन आप तो मुझे जानते हो । ॐ... ॐ... ॐ... ॐ... ॐ... ॐ... ॐ...’