दूरद्रष्टा महापुरुषों द्वारा की गयी भविष्यवाणियों के अनुसार हमारे देश एवं विश्व के इतिहास का यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण दौर चल रहा है । इसमें देश की संस्थाएँ व संगठन, हस्तियाँ, प्रचार-प्रसार माध्यम तथा देश के नागरिक - सबकी सजगता, कर्तव्य-बोध और दायित्वपूर्ति का बड़ा महत्त्व है ।
धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन, संस्थाएँ एवं उनके अनुयायी
आज धार्मिक व आध्यात्मिक संस्थाओं एवं संगठनों के लिए सर्वाधिक कसौटियों का दौर चल रहा है । उनके आस्थाकेन्द्रों पर आक्षेप-पर-आक्षेप लगवाये जा रहे हैं एवं उन्हें अपमानित, प्रताड़ित किया जा रहा है । देश में धार्मिक, आध्यात्मिक संस्थाएँ बड़ी संख्या में हैं । आक्षेप लगवानेवालों की संख्या निश्चित ही इतनी नहीं है लेकिन वे संगठित हैं । ऐसे दौर में भारतरत्न महामना पं. मदनमोहन मालवीयजी द्वारा सभी हिन्दू धर्मियों को दिया गया संदेश आज विशेष प्रासंगिक है : ‘‘हिन्दुओं को अकर्मण्य बिल्कुल नहीं रहना चाहिए । वे एक हो जायें और अपनी रक्षा करें ।’’
स्वामी विवेकानंदजी का यह संदेश भी अत्यंत औचित्यपूर्ण है : ‘‘जिनके हृदय एक ही आध्यात्मिक स्वर में बँधे हैं, उन सबके सम्मिलन से ही भारत में हिन्दुओं का संगठन होगा ।’’
हिन्दू एवं राष्ट्रनिष्ठ संगठनों को किसी भी संगठन पर आरोप होने पर उससे सम्पर्क कर सत्य जानना चाहिए एवं सत्य का खुलकर समर्थन करना चाहिए ।
प्रचार-प्रसार माध्यम
बारम्बार दोहराया गया असत्य भी सत्य की तरह भासित होने लगता है । किसी भी देश का अस्तित्व, स्थायित्व एवं सम्मान अपने देश, धर्म, संस्कृति और संतों के प्रति सुदृढ़ आस्था पर ही अवलम्बित है । अतः इन आधारस्तम्भों के खिलाफ प्रचारित किये गये असत्य का खंडन करना और समाज को सत्य से अवगत कराना जरूरी है इसका प्रतिपादन करते हुए ‘अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज’ के निदेशक पद्मभूषण डॉ. डेविड फ्रॉली कहते हैं : ‘‘हिन्दुत्व पर लांछन लगानेवालों की नकारात्मकता और झूठ का प्रतिकार करने के लिए एक नया धार्मिर्क मीडिया वक्त की जरूरत है ।’’
महत्त्वपूर्ण पदों को शोभायमान कर रही हस्तियाँ
प्राप्त योग्यता का सदुपयोग ही अधिक योग्यता, बल, तेज प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है । जिन्हें जो पद मिला है, उसका यदि वे अपनी मातृभूमि, सनातन धर्म एवं संस्कृति की सेवा में सदुपयोग करते हैं तो अपने जीवन में आत्मसंतुष्टि, भीतरी शांति तथा कृतकृत्यता का सुख प्राप्त कर चिरस्मरणीय हो जाते हैं । महापुरुषों की सीख है कि ‘पद का महत्त्व न समझें, अपनी संस्कृति का महत्त्व समझें । पद आज है, कल नहीं है लेकिन संस्कृति तो सदियों से आपकी सेवा करती आ रही है । आपके पास शारीरिक बल, मानसिक बल, बौद्धिक बल जितना भी हो, चाहे मुट्ठीभर हो, उसका आप ईश्वर की विराट सृष्टि में ईश्वर की प्रसन्नता के लिए सदुपयोग कीजिये । सदुपयोग मतलब उससे प्राणिमात्र एवं अपनी संस्कृति की सेवा कीजिये, सत्य की खोज कीजिये और महापुरुषों को पहचानिये, उनकी सीख को जीवन में उतारकर तो देखिये ! फिर आप पायेंगे कि आपकी योग्यता जादुई ढंग से बढ़ रही है ।’
भारत के नागरिक
भारत कृषि-देश तो है लेकिन दुनिया में आज भी इसकी पहचान, इसका गौरव ऋषि-भूमि के रूप में है । सच्ची सुख-शांति के लिए विश्वभर से लोग यहाँ दौड़े-दौड़े आते हैं । महर्षि अरविंदजी ने क्या सत्य बात कही है : ‘‘धर्म के लिए और धर्म के द्वारा ही भारत का अस्तित्व है ।’’
अतः हर हिन्दू या देशप्रेमी का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह अपने धर्मबंधुओं, देशबंधुओं के बारे में प्रचारित-प्रसारित अथवा सुनी-सुनायी बात के आधार पर उनके प्रति अविश्वास न करे, उनकी कटु आलोचना न करे । किन्हीं पर कुछ आरोप लगे तो संबंधित संस्था या व्यक्ति से सम्पर्क करके सत्य को जाने ।
हमारे पास जो भी योग्यता है वह सीधे-अनसीधे अपनी संस्कृति व संतों-महापुरुषों की ही देन है । अतः उसे इनकी सेवा में लगाना हम सबका मुख्य कर्तव्य है । जो व्यक्ति खुद का यह दायित्व नहीं निभाता है, सक्रिय रूप से संस्कृति-सेवा नहीं करता है अपितु केवल दूसरों की निंदा ही करता रहता है, वह बेचारा खुद का ही भविष्य अंधकारमय बनाये जा रहा है ।
दुनिया के अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में जो सद्ज्ञान, शांति, भक्ति, सौहार्द पाया जाता है, वह सब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे देश के ऋषि-मुनियों एवं ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों का ही प्रसाद है । वर्तमान में देखें तो संत श्री आशारामजी बापू वे महापुरुष हैं जिन्होंने गाँव-गाँव एवं नगरों-महानगरों में घूमकर अपने सत्संग व दैवी सेवाकार्यों द्वारा देश से अज्ञानता, दीनता, दुर्बलता, दरिद्रता का निवारण करने में अपना पूरा जीवन एवं सर्वस्व लगाया है । संस्कारहीन हो तेजी से पतन की ओर बढ़ रही देश की भावी पीढ़ी को सेवा, साधना तथा गुरुजनों एवं माँ-बाप का आदर करना सिखाया है । अपनी संस्कृति एवं देश के प्रति प्रेम जगाया है । भारतीय संस्कृति का परचम विश्वभर में फहराया है । हम सभी भारतवासियों एवं असंख्य विश्ववासियों पर सीधे-अनसीधे ऐसे महापुरुषों के अनंत उपकार हैं । हम लाख कोशिशें कर लें, उनके इन सेवा-वरदानों से पूरी तरह कभी भी उऋण नहीं हो सकते । ऐसे में कम-से-कम उनके प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन के रूप में उनकी महानता, उनका महापुरुषत्व, उनका जीवनोद्धारक ज्ञान, उनके दैवी कार्य जानें एवं दूसरों को भी इनका लाभ दिलायें । अनेक देश एवं संस्कृतिप्रेमी लोग सोशल मीडिया द्वारा या मौखिक तौर पर भी अपने सम्पर्क में आनेवाले लोगों तक बापूजी का ज्ञान एवं पूज्यश्री द्वारा चलाये जा रहे संयम-सदाचार व राष्ट्रोत्थान के प्रकल्प पहुँचाते हैं । यह भी बड़ी सेवा है ।
यदि आप अपने धर्मबंधुओं की मदद करने में सक्षम नहीं हैं तो कम-से-कम उन्हें शुभ संकल्पों से पोषित अवश्य करें । यह मानसिक सेवा है ।
पं. मदनमोहन मालवीयजी कहते थे : ‘‘हिन्दुओं को परस्पर भाई-भाई की तरह प्रेम करना चाहिए।’’
आश्रम से जुड़े भक्तगण
आध्यात्मिक संस्थाओं में संत श्री आशारामजी आश्रम एक ऐसी संस्था है जिसने अनेक प्रकार के अन्याय और अवरोधों को सहते हुए भी अपने राष्ट्र, वैदिक संस्कृति एवं धर्म की रक्षा व सेवा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और दे रही है । इसके भावी परिणामों के बारे में सचेत करते हुए दूरद्रष्टा पूज्य बापूजी ने 25 नवम्बर 2004 को ही एक भविष्यवाणी की थी : ‘‘अब आश्रम और समितियों पर भी आँधी चलेगी । उसके लिए तुम्हें भी तैयार रहना पड़ेगा । कुप्रचार होंगे, कुछ-का-कुछ करेंगे करनेवाले लोग ।’’
आज वह भविष्यवाणी अतीत व वर्तमान बनकर हम सबके सामने है । साजिश के तहत पूज्य बापूजी जैसे राष्ट्रसेवी महापुरुष को पिछले करीब 4.5 वर्षों से कारागृह में रखा गया है । जोधपुर केस में दोनों पक्षों की गवाही पूरी हो चुकी है । अंतिम बहस जारी है । यह समय पूज्य बापूजी के अनुयायियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है । अतः ‘पूज्य बापूजी शीघ्र ही हमारे बीच आयेंगे’ - अपने इस दृढ़ संकल्प में विकल्प न आने दें ।
पूज्य गुरुदेव ने आज से 13 वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति पर आनेवाले विघ्नों से उसकी रक्षा हेतु गुरु-दक्षिणा के रूप में प्रतिदिन 11 संस्कृतिरक्षक प्राणायाम करने के लिए कहा था । ऐसे कम-से-कम 5 प्राणायाम तो करें ही । पूज्य बापूजी द्वारा आशीर्वादस्वरूप प्रदान किया गया यह प्रयोग संस्कृतिरक्षार्थ ‘ऋषि प्रसाद’, नवम्बर 2017 के अंक में (पृष्ठ 4 पर) प्रकाशित किया गया है । गुरु-दक्षिणा देने का यह उत्तम समय है । अतः सभी साधकों को यह अवश्य-अवश्य करना चाहिए और ब्रह्मांड में शुभ संकल्प भेजना चाहिए ।
अपनी सेवा, साधना, जप, अनुष्ठान, नियम अधिक-से-अधिक करें और यह संकल्प करें कि ‘हमें शीघ्रातिशीघ्र पुनः पूज्य बापूजी के प्रत्यक्ष दर्शन-सत्संग की प्राप्ति हो एवं भारत अपने विश्वगुरु पद पर आसीन हो । पूरे विश्व में सभीको आत्मज्ञान, आत्मसुख, आत्मशांति का प्रसाद मिले ।’
अनंत परमात्मा की अनंत शक्ति हर व्यक्ति में है अतः प्रत्येक शिष्य, भक्त, देशवासी की अपने कर्तव्य के प्रति दृढ़ता की बड़ी महत्ता हो जाती है ।
यह वह देश है जिस देश की एक नन्ही-सी गिलहरी भी अपने कर्तव्य का एहसास करती है और शरीर को गीला करके रेत में लोट-पोट होकर रेत के कुछ दाने निर्माणाधीन श्रीराम-सेतु पर डाल के ईश्वर एवं संस्कृति की सेवा में अपनी दायित्वपूर्ति करती है । ‘दूसरे कितना और क्या कर रहे हैं ? मैं अकेली क्या कर सकती हूँ ? श्रीराम-सेतु बनने पर मुझे क्या मिलेगा ?’ ऐसा कोई विकल्प वह नहीं करती । यह है ऋषि-भूमि की गिलहरी ! फिर हम तो ऋषि-भूमि के नागरिक हैं, ऋषियों के वंशज हैं ! हमारा दायित्व निश्चय ही उससे कहीं अधिक है ।
तो हे ऋषि-भूमि के पुण्यात्मा सपूतो ! हे सत्य के पूजक व प्रेमियो ! हे सर्व-मांगल्य के ध्वजावाहको !
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत । (कठोपनिषद् : 1.3.14)
उठो, जागो और अपने ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों को प्राप्त कर उनके सत्संग-सान्निध्य द्वारा अपने आत्मस्वरूप में जागो !