Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

युवाओं को संस्कृति-रक्षार्थ तैयार करना है

(1992 के उज्जैन सिंहस्थ कुम्भ में हुई पत्रकार-वार्ता)

प्रश्न : पूज्य बापूजी ! आपका उद्देश्य क्या है ?

पूज्यश्री : ईश्वर-भजन, भगवद्-आराधना और भक्तिमार्ग से लोगों को जागृत करना, लोगों में बढ़ रही पाशविक प्रवृत्तियों को दूर कर ईश्वरीय लगन से जोड़ना, हिन्दुओं को संगठित करना, भक्ति की धारा से जिज्ञासुओं को तृप्त करना ।

इस समय देश विनाश के कगार पर खड़ा है । भारतवासी अपनी सनातन संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं । बाहरी तत्त्व इस देश की संस्कृति को क्षति पहुँचाने में सतत प्रयत्नशील हैं । इसलिए देश के युवाओं को धर्म से जोड़कर संस्कृति की रक्षा हेतु तैयार करना ही हमारा प्रमुख उद्देश्य है क्योंकि धर्म का मार्ग बहुत ही सुगम और सीधा है । बड़ी-बड़ी क्रांतियाँ धर्म के ही कारण हुई हैं ।

जब तक व्यक्ति अपने धर्म को नहीं पहचानेगा, तब तक वह न तो धर्म का दिव्य लाभ ले सकेगा और न ही अपने धर्म की रक्षा करेगा । मान लिया जाय कि किसी पिता का कोई पुत्र गुम हो जाय और वे दोनों ऐसी अवस्था में मिलें कि एक-दूसरे को पहचान न पायें । अब यदि उस खोये पुत्र के सामने उसके पिता को कोई मारे तो वह पुत्र उसकी रक्षा नहीं करेगा । परंतु कोई उसे बोध करा दे कि यह जो पिट रहा है वह तेरा खोया हुआ पिता हैतो वह अपनी जान की बाजी लगाकर भी अपने पिता की रक्षा करेगा । इसी प्रकार मनुष्य जब तक अपने धर्म को नहीं पहचानेगा, तब तक धर्म की रक्षा नहीं कर पायेगा और धर्म से रक्षित भी नहीं हो पायेगा ।

धर्मो रक्षति रक्षितः ।

प्रश्न : बापू ! ऐसा क्यों हो रहा है ?

पूज्य बापूजी : पाश्चात्य कल्चर धीरे-धीरे हमारे देश में अपना जाल फैलाता जा रहा है । इसका प्रभाव केवल पुरानी पीढ़ी के लोगों पर ही नहीं पड़ा है, युवा पीढ़ी भी पाश्चात्य कल्चर की गुलाम होती जा रही है । इसलिए हिन्दू धर्म को माननेवाले इन युवाओं को धर्म के करीब लाकर इन्हें आत्मज्ञान करवाना होगा ।

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू