Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

संध्या करें उत्साह व तत्परता से

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘भाग्य के कुअंक मिटा देती है संध्या ।

मेटत कठिन कुअंक भाल के ।

और भी लाभ तो बहुत हैं । मन की भागदौड़ शांत होकर अंतरात्मा-परमात्मा में विश्रांति मिलने लगेगी । बुद्धियोग में प्रवेश मिल सकता है । माँ बच्चे का जितना मंगल जानती है और कर सकती है उतना बच्चे को पता नहीं, ऐसे ही माताओं की माता, पिताओं के पिता जगतनियंता हमारा जितना मंगल जानते हैं, कर सकते हैं उतना हम नहीं जानते, नहीं कर सकते हैं । संसारी मतिवाले लोग अपनी जिंदगी की, अपने समय की कोई कीमत ही नहीं समझते हैं । नियम की, नियमबद्धता की कुछ कीमत ही नहीं जानते । जैसे - भेड़-बकरे होते हैं, कोई जैसा मन में आये, चला दे... चलते गये, भागते गये । ऐसे लोगों में इच्छाशक्ति नहीं होती, आत्मिक योग्यता नहीं होती ।

जो संध्या के समय का मूल्य नहीं समझते वे केवल नियम-पालन का दिखावा करने के लिए कानूनी संध्या करेंगे तो विशेष फायदा नहीं होगा । लेकिन अपने उत्साह से, अपनी तत्परता से करेंगे तो 6 महीने के अंदर व्यक्ति इतना पवित्र हो जायेगा कि... अरे, 2-3 महीने के अंदर सूक्ष्म जगत के कई रहस्य उसके आगे प्रकट होने लगेंगे । इतना सारा खजाना तुम्हारे अंदर भरा है ।

यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे ।

जो इस पिंड में है, शरीर में है वही ब्रह्मांड में है । जैसे शक्कर की बोरी जाँचने के लिए उसमें से चुटकीभर शक्कर ले लो तो पूरी शक्कर का पता चल जाय, ऐसे ही पूरे ब्रह्मांड का अंश यहाँ तुम्हारे साथ जुड़ा है । जैसे वटवृक्ष के बीज में वटवृक्ष छुपा है, अनंत बीज छुपे हैं, ऐसे ही मनुष्य में, जीवात्मा में परमात्मा छुपा है, अनंत सृष्टियों के फुरने छुपे हैं इसलिए तो स्वप्न में कई-कई सृष्टियाँ दिखती हैं । तुम्हारे अंदर बहुत सारी योग्यताएँ हैं ! संध्या के समय का सदुपयोग करके उन्हें जागृत करो ।

साधना करनी है तो ऐसी करो

साधना करनी है तो फिर एकदम तेजी से करो । हम तुमको केवल साधक नहीं देखना चाहते हैं । हम तुमको जैसा देखना चाहते हैं - जीवन्मुक्त, ऐसा बन के दिखाओ ! जैसे मदालसा को होता था कि इस कोख से जो बालक जन्म ले वह फिर दूसरी माता के गर्भ में उलटा हो के टँगे तो फिर मैंने उसे व्यर्थ जन्म दिया ।ऐसे ही इस दर से जो साधक पसार हो वह फिर और कइयों के यहाँ से, द्वार से पसार हो तो फिर मेरे पास आने का मतलब क्या ! यहाँ से आदमी 6 महीना, 6 दिन भी रहकर जाय तो उसके ऊपर कोई आदेश चलानेवाला न हो ऐसा समझदार बन जाय (मुक्ति का पूर्ण अधिकारी बन जाय) ।

हमारा साधक पूरे ब्रह्मांड में कहीं भी जाय लेकिन पता चल जाय कि मोटेरावाले का शिष्य है । फिर चाहे कोई हो लेकिन एक बार जो साधक हो जाय, उसकी चाल से पता चल जाय कि यह किसी ज्ञानी का शिष्य है । इसको किसी ज्ञानी का, संत का पंजा लगा है ।

हम तेजी से चलाना चाहते हैं । युग बड़ा विचित्र आ रहा है । समय बहुत कीमती है । तत्परता, तत्परता, तत्परता... बस ! संध्या के समय कहीं भी हों, 10 मिनट उसमें लग जाओ । उस समय हाथ-पैर धोकर 3 आचमन ले के अपना नियम कर लो । सुबह-दोपहर-शाम की संध्या करो और बाकी की जो साधना बतायी है वह भी करो । सेवा करो तत्परता से । जो काम 2 घंटे का है, पौने 2 घंटे में पूरा करो; ऐसा नहीं कि 2 घंटे का काम 10 घंटे में हो ।’’

आपातकाल में भी संध्या कर सकते हैं

यदि व्यक्ति सफर में है अथवा नौकरी कर रहा है तो वहाँ भी संध्या की जा सकती है । पूज्य बापूजी इसका सुंदर उपाय बताते हुए कहते हैं : ‘‘अगर कोई दफ्तर में है तो वहीं मानसिक रूप से संध्या कर ले तो भी ठीक है लेकिन प्राणायाम, माला से जप, ध्यान और श्वासोच्छ्वास की गिनती जरूर करे । ये अनंत गुना फल देते हैं । इनसे एकाग्रता बढ़ती है । एकाग्रता सभी सफलताओं की कुंजी है । हमारी सब नाड़ियों का मूल आधार जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसका द्वार संध्या के समय खुला हुआ होता है । इससे जीवनशक्ति, कुंडलिनी शक्ति के जागरण में सहयोग मिलता है । इस समय किया हुआ ध्यान-भजन अमिट पुण्यदायी होता है, अधिक हितकारी और उन्नति करनेवाला होता है । वैसे तो ध्यान-भजन कभी भी करो, पुण्यदायी होता है किंतु संध्या के समय उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है । त्रिकाल संध्या करने से विद्यार्थी भी बड़े तेजस्वी होते हैं । अतः जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए मनुष्यमात्र को त्रिकाल संध्या का सहारा लेकर अपना नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक उत्थान करना चाहिए ।

जब से भारतवासी ऋषि-मुनियों की बतायी हुई दिव्य प्रणालियाँ भूल गये, त्रिकाल संध्या करना भूल गये, अध्यात्मज्ञान को भूल गये, तभी से भारत का पतन प्रारम्भ हो गया । अब भी समय है । यदि भारतवासी शास्त्रों में बतायी गयी, संतों-महापुरुषों द्वारा बतायी गयी युक्तियों का अनुसरण करें तो वह दिन दूर नहीं कि भारत अपनी खोयी हुई आध्यात्मिक गरिमा को पुनः प्राप्त करके विश्वगुरु पद पर आसीन हो जाय ।’’

काया को पवित्र व निर्मल बनानेवाला तुलसी-प्रयोग

बुद्धि को तेजस्वी व निर्मल बनाने का एक सरल प्रयोग बताते हुए पूज्यश्री कहते हैं : ‘‘यदि प्रातः, दोपहर और संध्या के समय तुलसी का सेवन किया जाय तो उससे मनुष्य की काया इतनी शुद्ध हो जाती है जितनी अनेक बार चान्द्रायण व्रत रखने से भी नहीं होती । तुलसी तन, मन और बुद्धि - तीनों को निर्मल, सात्त्विक व पवित्र बनाती है । यह काया को स्थिर रखती है, इसलिए इसे कायस्थाकहा गया है । त्रिकाल संध्या के बाद 7 तुलसीदल सेवन करने से शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि तेजस्वी व निर्मल बनती है ।’’     

(क्रमशः)  [अंक-286]