Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आठ प्रकार के सुखों से भी ऊँचा सुख

आठ प्रकार के सुख होते हैं । देखने, सूँघने, चखने, सुनने और स्पर्श का सुख - ये पाँच विषय-सुख हुए । दूसरा, मान मिलता है तो सुख होता है, अपनी कहीं बड़ाई हो रही है तो सुख होता है । अगर आपको बढ़िया आराम मिलता है तो सुख होता है । तो शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, मान, बड़ाई और आराम - ये आठ प्रकार के सुख होते हैं । इनमें अगर कोई नहीं फँसा तो उसे कौन-सा सुख मिलता है ? भगवत्सुख, भगवद्ज्ञान, भगवद्-बड़ाई, भगवद्-आराम ।

भगवत्-सत्संग का सुख, भगवद्भाव का सुख, भगवन्नाम का सुख - ये सुख जीव को तारनेवाले हैं और 8 प्रकार के सुख जीव को मारनेवाले हैं । जैसे भँवरा सुगंध के सुख में कमल में बैठ जाता है, आराम भी मिलता है, सुगंध भी मिलती है । सुबह जंगली जानवर कमल को तोड़कर खा जाते हैं अथवा तो हाथी कुचल देते हैं तो वह मर जाता है । ऐसे ही देखने के सुख में पतंगे सड़कों पर लगी बत्तियों के आसपास मँडराते हैं और यातायात के साधनों से टकरा के या कुचलकर मर जाते हैं । चखने के सुख में मछली कुंडे में फँसती है । सुनने के सुख में हिरण फँस जाता है और फिर शिकारी उसे बाण मारता है । हाथी हथिनी के सुख में गड्ढे में गिरता है । घास-फूस की नकली हथिनी गड्ढे के ऊपर बनाते हैं; हाथी उसको स्पर्श करने, विकार भोगने जाता है तो गड्ढे में गिर जाता है, फिर दर-दर की ठोकरें खाता है, भीख माँगता है । मनुष्य को तो पकड़ के पैर तले दबा दे हाथी लेकिन मनुष्य के अधीन हो जाता है Ÿक्योंकि हथिनी के सुख में फँस गया । कितना बड़ा हाथी और कितना छोटा मनुष्य ! किंतु हाथी उसका गुलाम हो गया ।

अलि पतंग मृग मीन गज, एक एक रस आँच ।

तुलसी तिनकी कौन गति, जिनको ब्यापे पाँच ।।

अलि माना भँवरा, पतंग माना पतंगे, मृग माना हिरण, मीन माना मछली, गज माना हाथी । एक-एक विषय में मूर्ख प्राणी, मूर्ख जंतु अपनी जान गँवा देते हैं तो जो पाँचों इन्द्रियों के पीछे घसीटा जा रहा है, उस मनुष्य की क्या गति होगी ! तो क्या करना चाहिए ? भगवत्सुख, भगवद्ज्ञान, भगवत्प्रेम, भगवद्रस पा के भगवत्प्राप्ति कर लेनी चाहिए ।

इन्हें पाने के लिए चलते हैं लेकिन सफल क्यों नहीं होते ? बोले, इन 7 चीजों की खबरदारी नहीं रखते हैं इसलिए सफल नहीं होते :

(1) भगवत्प्राप्ति का उत्साह नहीं है ।

(2) श्रद्धा की कमी ।

(3) जिनको भगवत्प्रीति, भगवद्-श्रद्धा नहीं है, ऐसे लोगों का संग ।

(4) दृढ़ निश्चय नहीं है ।

(5) सत्संग का अभाव । सत्संग का महत्त्व नहीं, सत्संग के वचनों को धारण नहीं करते ।

(6) आठ सुखों में से किसी-न-किसीका चिंतन, विषय-चिंतन । गंदी वेबसाइटों ने तो युवाधन की तबाही कर दी । इस युग में युवक-युवतियों का सत्यानाश गंदी फिल्मों और वेबसाइटों ने जितना किया है, उतना किसीने नहीं किया ।

(7) लापरवाही... ‘चलो कोई बात नहीं...’ अरे, जो खाना चाहिए वह खाओ, जो नहीं खाना चाहिए नहीं खाओ । जो करना चाहिए वह करो, जो नहीं करना चाहिए वह नहीं करो लेकिन लापरवाही से वह भी कर लेते हैं । जानते हैं कि ‘यह ठीक नहीं है’, फिर भी थोड़ा... ...। इससे भगवत्प्राप्ति का रास्ता लम्बा हो गया । साधन तो करते हैं, श्रद्धा भी रखते हैं लेकिन दृढ़ श्रद्धा नहीं है । उत्साह है लेकिन पूरा उत्साह नहीं है । इसलिए भी भगवत्प्राप्ति का रास्ता लम्बा हो गया । अच्छा संग तो करते हैं लेकिन साथ-साथ में ‘घटिया संग की भी थोड़ी दोस्ती निभा लो...’ इसलिए तबाही हो रही है ।

तो अपने जीवन में गुरुदीक्षा लेकर नियम से जो 15 मिनट रोज ॐकार का गुंजन करेगा और गुरुमंत्र की 10 माला जपेगा, उसको फिसलानेवाली इन 8 प्रकार की विषय-वासनाओं की गंदी आदत छोड़ने में बल मिलेगा और भगवान की शांति, भगवान का मंगल स्वभाव, भगवान का औदार्य सुख मिलेगा और इन 8 प्रकार के सुखों का उपभोग नहीं, औषधवत् उपयोग करने की युक्ति आ जायेगी ।