Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

भारतीय कालगणना का महत्त्व

राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत भारतीय कालगणना

(चैत्री नूतन वर्ष वि.सं. 2072 प्रारम्भ: 28 मार्च)

विक्रम संवत् भारतीय शौर्य, पराक्रम और अस्मिता का प्रतीक है । चैत्री नूतन वर्ष आने से पहले ही वृक्ष पल्लवित-पुष्पित, फलित होकर भूमंडल को सुसज्जित करने लगते हैं । यह बदलाव हमें नवीन परिवर्तन का आभास देने लगता है ।

भारतीय कालगणना का महत्त्व

ग्रेगोरियन (अंग्रेजी) कैलेंडर की कालगणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है जबकि भारतीय कालगणना अति प्राचीन है । संवत्सर का उल्लेख ब्रह्मांड के सबसे प्राचीन ग्रंथों में से एक यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र 45 व 15 में किया गया है ।

भारतीय कालगणना मनःकल्पित नहीं है, यह खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों-नक्षत्रों की गति पर आधारित है । आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमशः बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है । सप्ताह के सात दिनों का नामकरण भी इसी आधार पर किया गया । विक्रम संवत् में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित ऋषि-विज्ञान द्वारा किया गया है ।

इस वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य कालगणना के अनुसरण के बावजूद सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, विवाह, मुंडन आदि संस्कार एवं श्राद्ध, तर्पण आदि कर्मकांड तथा महापुरुषों की जयंतियाँ व निर्वाण दिवस आदि आज भी भारतीय पंचांग-पद्धति के अनुसार ही मनाये जाते हैं ।

विक्रम संवत् के स्मरणमात्र से राजा विक्रमादित्य और उनके विजय एवं स्वाभिमान की याद ताजा होती है, भारतीयों का सर गर्व से ऊँचा होता है जबकि अंग्रेजी नववर्ष का अपने देश की संस्कृति से कोई नाता नहीं है ।

स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था : ‘‘यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अंतर्मन में राष्ट्रभक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा । गुलाम बनाये रखनेवाले परकीयों के दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म-गौरव खो बैठता है ।’’

महात्मा गांधी ने अपनी हरिजन पत्रिका में लिखा थाः ‘‘स्वराज्य का अर्थ है- स्व-संस्कृति, स्वधर्म एवं स्व-परम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना । पराया धन और परायी परम्परा को अपनानेवाला व्यक्तिन ईमानदार होता है, न आस्थावान।’’

पूज्य बापूजी कहते हैंः ‘‘आप भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवद्भक्ति के गीत से ‘चैत्री नूतन वर्ष’ मनायें । आप सब अपने बच्चों तथा आसपास के वातावरण को भारतीय संस्कृति में मजबूत रखें । यह भी एक प्रकार की देशसेवा होगी, मानवता की सेवा होगी ।’’

इस दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें । ‘भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभीका जीवन उन्नत हो ।’ इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें ।