दुर्बल कौन है ? - पूज्य बापूजी
कुछ मंदमति लोग कहते हैं कि श्रद्धा और भगवान का रास्ता थके, हारे और कमजोर लोगों का है लेकिन शास्त्र कहते हैं कि जिसको नहीं देखा उसको मानना यह कमजोरी नहीं है, यह तो परम बल है । जिसको देखा नहीं है, अनुभव किया नहीं है, उसके (भगवान के) लिए भोग-वासना, विषय-विकार छोड़ना, उसके नाममात्र से छोड़ने लग जाना, इतना त्याग, ज्ञान और हिम्मत है, यह कमजोरों का मार्ग नहीं है, बलवानों की पराकाष्ठा में पहुँचे हुए लोग ही परमात्मा को पा सकते हैं ।
नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः । (मुण्डकोपनिषद् : ३.२.४)
दुर्बलों को आत्मा-परमात्मा का रास्ता नहीं मिलता और परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती । दुर्बल तो वह है जो कुछ देखे और उस पर लपक जाय... चाट आदि देखे तो मुँह में पानी आ जाय, किसीकी पत्नी देखे तो विकार आ जाय, डिस्को करने लग जाय । वे दुर्बल लोग हैं जो अपने को सँभाल नहीं सकते । जो श्रद्धा नहीं कर सकते हैं वे दुर्बल हैं । लेकिन जो श्रद्धा के बल से विकारों को कुचलकर परमात्मा के रास्ते चल सकते हैं, उनको दुर्बल कहना ही मति की दुर्बलता है । कुछ मूर्ख लोग बक लेते हैं या लिख देते हैं, इससे सत्य पर कोई आँच आनेवाली नहीं है ।
ऋषि प्रसाद – अंक - 258