Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

मुक्ति नहीं गुरुभक्ति चाहिए

उद्धवजी भगवान श्रीकृष्ण से मोक्ष से भी श्रेष्ठ अपनी भक्ति (गुरुभक्ति) प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए कहते हैं :

‘‘नमोऽस्तु ते महायोगिन् प्रपन्नमनुशाधि माम् 

यथा त्वच्चरणाम्भोजे रतिः स्यादनपायिनी ।।

‘महायोगेश्वर ! मेरा आपको नमस्कार है । अब आप कृपा करके मुझ शरणागत को ऐसी आज्ञा दीजिये, जिससे आपके चरणकमलों में मेरी अनन्य भक्ति बनी रहे ।’ (श्रीमद् भागवत : ११.२९.४०)

जैसे माँ बालक का हठ आत्मीयता से सुनती है, ऐसे ही हे श्रीकृष्ण ! आप मेरी प्रार्थना सुनो ।

मेरे मन में बड़ा भारी भ्रम था कि जीवन्मुक्ति बड़ी मधुर होगी लेकिन उसमें आपकी भक्ति मुझे दिखाई नहीं देती इसीलिए वह शुष्क मुक्ति मुझे नहीं चाहिए । सद्गुरु के कृपावचनों से शिष्य को तत्काल मुक्ति मिल जाती है । जिसमें सद्गुरु की भक्ति नहीं है, उस मुक्ति को आग लगे ! मुझे वह नहीं चाहिए । मुझे तो आप सायुज्य मुक्ति के ऊपर का गुरुभजन दो । क्योंकि जिनकी वृत्ति अहंकारशून्य हो गयी वे सहज में ही आत्मस्वरूप हो गये, तो भी वे आपकी निष्काम भक्ति करते हैं, ऐसा आपके स्वरूप का धर्म ही है । इसीलिए आपकी गुरुभक्ति छोड़कर मुक्ति माँगना, यह केवल भ्रांति ही है । आपकी वह मुक्ति मुझे मत दीजिये, मुझे तो आप अपनी गुरुभक्ति ही दीजिये ।

ऐसा आपका भजन अगाध है, उसकी महिमा अगम्य है और आपका देवत्व भी भक्ति के अधीन है तो फिर मैं मोक्ष क्यों माँगूँ, मोक्ष में अधिक रखा ही क्या है ?

भक्ति के पेट से ही मुक्ति का जन्म हुआ, भक्ति से ही वह बढ़ी, वही मुक्ति जब भक्ति के घात का कारण बन जायेगी तो ऐसी मातृघातक मुक्ति को मैं छूनेवाला तक नहीं । जिसके योग से मुक्ति पर आया हुआ दोष दूर होकर वह अत्यंत पवित्र हो जायेगी, ऐसी एक गुप्त बात मैं आपको बताता हूँ । श्रीकृष्ण ! उसे कृपया ध्यान देकर सुनिये । मुक्ति होने के बाद भी मुझे आप अपना गुरुभजन ही दें, उससे मुक्ति भी पावन हो जायेगी । इसलिए मुझे तो आप अपनी निर्विघ्न भक्ति का ही उपदेश दीजिये ।’’

तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : ‘‘हे उद्धव ! करोड़ों जन्मों तक यत्न करने पर भी जो मुक्ति मिलना अति कठिन है, उस मुक्ति को तू विघ्नरूप मानता है !’’

उद्धव : ‘‘परंतु जिसके कारण आपका भजन छूटता है मैं तो उसे ही परम विघ्न समझता हूँ । हे गोविंद ! तुम्हारी भक्ति के बिना की मुक्ति मुझे रसहीन लगती है । ऐसी सद्गुरु-भक्ति को नष्ट करनेवाली जीवन्मुक्ति मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए । हे श्रीकृष्ण ! जब बद्धता ही नहीं है तो फिर मुक्ति कहाँ से आयी ? मुझे तो बस गुरुभक्ति ही दो ।’’

यह कहकर उद्धव ने भगवान के चरण पकड़ लिये । तब श्रीकृष्ण का प्रेम भी छलक उठा और मोक्ष से भी श्रेष्ठ गुरुभक्ति, जो उद्धव ने अनेक युक्तियों से माँगी और उस समय उसने जो संवाद किया,उससे श्रीकृष्ण प्रेमसुख में झूमने लगे । उद्धव के शुद्ध पुण्य जाग उठे और श्रीकृष्ण ने उन्हें मोक्ष से भी श्रेष्ठ गुरुभजन अर्पित किया ।

गुरु और ब्रह्म एक ही हैं, यह भी पूरी तरह सद्गुरु ही समझाते हैं इसीलिए मोक्ष से भी श्रेष्ठ गुरुभजन है ।     (‘एकनाथी भागवत’ से)