Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

वीर्यरक्षा के प्रयोग - 2

पादांगुष्ठासन

इसमें शरीर का भार केवल पाँव के अँगूठे पर आने से इसे ‘पादांगुष्ठासन’ कहते हैं । वीर्य की रक्षा व ऊध्र्वगमन हेतु महत्त्वपूर्ण होने से सभीको विशेषतः बच्चों व युवाओं को यह आसन अवश्य करना चाहिए ।

लाभ : (१) अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि, वज्रनाड़ी (वीर्यनाड़ी) व मन पर नियंत्रण तथा वीर्यशक्ति को ओज में रूपांतरित करने में उत्तम है ।

(२) मस्तिष्क स्वस्थ रहता है और बुद्धि की स्थिरता व प्रखरता शीघ्र प्राप्त होती है ।

(३) रोगी-निरोगी सभीके लिए लाभप्रद है ।

रोगों में लाभ : स्वप्नदोष, मधुमेह, नपुंसकता व समस्त वीर्यदोषों में विशेष लाभदायी ।

विधि :

(१) पंजों के बल बैठें । बायें पैर की एड़ी सिवनी (गुदा व जननेन्द्रिय के बीच का स्थान) पर लगायें ।

(२) दोनों हाथों की उँगलियाँ जमीन पर रखकर दायाँ पैर बायीं जाँघ पर रखें ।

(३) सारा भार बायें पंजे पर (विशेषतः अँगूठे पर) संतुलित करके हाथ कमर पर या नमस्कार की मुद्रा में रखें । प्रारम्भ में कुछ दिन आधार लेकर कर सकते हैं । कमर सीधी व शरीर स्थिर रहे । श्वास सामान्य, दृष्टि आगे किसी बिंदु पर एकाग्र व ध्यान संतुलन रखने में हो ।

(४) यही क्रिया पैर बदलकर भी करें ।

समय : प्रारम्भ में दोनों पैरों से आधा-एक मिनट करें । दोनों पैरों को एक समान समय देकर यथासम्भव बढ़ा सकते हैं ।

सावधानी : अंतिम स्थिति में आने की शीघ्रता नहीं करें, क्रमशः अभ्यास बढ़ायें । इसे दिनभर में दो-तीन बार कभी भी कर सकते हैं किंतु भोजन के तुरंत बाद न करें ।

बुद्धिशक्तिवर्धक प्रयोग

लाभ : इसके नियमित अभ्यास से ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं । चोटी के स्थान के नीचे गाय के खुर के आकारवाला बुद्धिमंडल है, जिस पर इस प्रयोग का विशेष प्रभाव पड़ता है और बुद्धि व धारणाशक्ति का विकास होता है ।

विधि : सीधे खड़े हो जायें । हाथों की मुट्ठियाँ बंद करके हाथों को शरीर से सटाकर रखें । सिर पीछे की तरफ ले जायें । दृष्टि आसमान की ओर हो । इस स्थिति में गहरा श्वास २५ बार लें और छोड़े । मूल स्थिति में आ जायें ।

विशेष : श्वास लेते समय मन में ‘ॐ’ का जप करें व छोड़ते समय उसकी गिनती करें ।

ध्यान दें : यह प्रयोग सुबह खाली पेट करें । शुरू-शुरू में १५ बार श्वास लें और छोड़े, फिर धीरे-धीरे बढ़ाते हुए २५ तक पहुँचें ।