Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

भाव-अभाव का सिद्धकर्ता

जाग्रत अवस्था में स्वप्न आदि अवस्थाओं का अभाव होता है परंतु जाग्रत को सिद्ध करनेवाले आत्मस्वरूप का अभाव नहीं होता । जाग्रत अवस्था में स्वप्न आदि का अभाव भी आत्मा से ही सिद्ध होता है । स्वप्न एवं सुषुप्ति के समय इन अवस्थाओं के अस्तित्व व अन्य अवस्थाओं के अभाव का सिद्धकर्ता तुम्हारा आत्मस्वरूप ही है ।

इसी प्रकार जब समाधि में चित्त की एकाग्र अवस्था होती है, तब जाग्रत आदि अवस्थाओं का अभाव होता है परंतु उस काल में जाग्रत आदि विक्षेप-अवस्था के अभाव को तथा समाधिरूप एकाग्रता के भाव को सिद्ध करनेवाले आत्मा का अभाव नहीं होता ।

जब सत्त्वगुण होता है तब रजोगुण और तमोगुण नहीं होते परंतु सत्त्वगुण के भाव और रजोगुण-तमोगुण के अभाव का जो सिद्धकर्ता आत्मा है, उसका अभाव नहीं होता । वैसे ही रजोगुण और तमोगुण के समय उनके भाव तथा उनसे अन्य गुणों के अभाव के सिद्धकर्ता आत्मा का अभाव नहीं होता । जब अज्ञान होता है तब ज्ञान नहीं होता और जब ज्ञान होता है तब अज्ञान नहीं होता पर ज्ञान और अज्ञान को सिद्ध करनेवाला आत्मा सर्वदा है ।

जब शुभ संकल्प, चिंतन, निश्चय व शुभ अहंपन होता है, तब अशुभ संकल्प, चिंतन, निश्चय व अशुभ अहंपन नहीं होता । वैसे ही जब अशुभ संकल्प, चिंतन, निश्चय व अशुभ अहंपन होता है, तब शुभ संकल्प, चिंतन, निश्चय, शुभ अहंपन नहीं होता परंतु दोनों अवस्थाओं में उनके सिद्धकर्ता आत्मा का अभाव नहीं होता ।

(‘आध्यात्मिक विष्णु पुराण’ से)