Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

उस एक से जुड़े रहो, जो सदा तुम्हारे साथ है

(पूज्य बापूजी की ज्ञानमयी अमृतवाणी)

संसार में सुखी होने की इच्छा छोड़कर आत्मा में विश्रांति पाओ । स्वार्थ छोड़कर परमार्थ में लगो । संसारी सुख की लोलुपता छोड़ दो । बिना मन के, बिना सामान के, बिना साथी के जीवन जीना सीख लो । मन के गुलाम रहोगे तो अंदर में कमजोरी बनी रहेगी ।

कहीं भी मन न लगे, उसको बोलते हैं बेमन । व्यवहार करते, खाते-पीते रहो लेकिन कहीं भी मन न लगे, आसक्त न हो, फँसे नहीं । गहरी नींद में कहाँ मन लगता है ? जाग्रत अवस्था के सारे संबंध काट देते हैं तभी गहरी नींद में पहुँचते हैं । कितना आराम होता है ! ऐसे ही दिन में भी वहाँ बैठो जहाँ किसी साथी से, किसी सामान से मन जुड़ा न हो ।

न किसी साथी के साथ जन्मे थे, न मरेंगे । अकेले आये थे, अकेले जायेंगे । अकेलेपन का जो आधार है उसमें विश्रांति पाओ । गहरी नींद में हररोज अकेले होते हो तब सुख पाते हो, तो कभी जाग्रत में भी अकेले बैठने का अभ्यास करो, जहाँ कोई मित्र नहीं । बिना मित्र के रहो अपना मजा लेने के लिए । बाहर के मित्रों में उलझोगे तो असली मित्र खो बैठोगे और असली मित्र से मिलोगे तो बाहर के सारे मित्रों का भला हो जायेगा । अगर भगवान से आप एकाकार हो गये तो लाखों-करोड़ों मित्रों का भला हो जायेगा । अगर मजा लेने के लिए किसी प्रेमी-प्रेमिका से दोस्ती की तो उसका भी सत्यानाश और अपना भी सत्यानाश ! संयमी-सदाचारी बनो, उस एक से जुड़े रहो, जो सदा तुम्हारे साथ है ।

कबीरा इह जग आयके बहुत से कीन्हे मीत । 

जिन दिल बाँधा एक से वे सोये निश्चिंत ।।

नहीं तो वह हाल होगा कि

इक दिल के टुकड़े हजार हुए ।

कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा ।।

थोड़ा इधर दिल लगा, थोड़ा उधर दिल लगा । गाड़ी का स्टियरिंग तो दफ्तर में पड़ा है और पहिये गैरेज में पड़े हैं । इंजन गोदाम में पड़ा है और गाड़ी के खोखे (ढाँचे) में बैठ के चलाओ तो क्या खाक गाड़ी चलेगी ! ऐसे ही थोड़ा मन इधर दिया, थोड़ा उधर दिया तो ईश्वर की तरफ जीवन की गाड़ी कैसे चलेगी ! मन इधर-उधर जाने दिया तो ईश्वर की तरफ कैसे चलेगा !

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।

‘सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य-कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा ।’                  (गीता: १८.६६)

सारे आकर्षणों को, विकर्षणों को छोड़कर मुझ परमात्मा की शरण आ जाओ ।

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।

तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।।

‘तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा । उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा ।’

(गीता : १८.६२)

शाश्वत स्थान तुम्हारा आत्मदेव है और वह दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं, पराया नहीं । बेमन, बेसाथी, बेसामान का जीवन फटाक-से ब्राह्मी स्थिति में टिका देगा । शरीर रहते ही अशरीरी आत्मा में... सबके बीच रहते हुए भी बेसाथी... सबके साथी के साथ एक... कर्म करते हुए भी कर्म का चिंतन नहीं ।

कर्म जिससे किये जाते हैं, कर्म हो-होकर फल दे-दे के मिट जाते हैं फिर भी जो नहीं मिटता, उसका चिंतन करें तो सभी मनों के स्वामी, सभी साथियों के साथी बन जाओगे । जो किसीका साथी रहता है वह किसीका असाथी होता है । जो किसीका साथी नहीं, वह सभीका साथी बन जाता है । पत्नी का साथी, पति का साथी... एक-दो दायरे में रह जायेगा । दायरा छोड़ दे । सर्वव्यापक सर्वेश्वर के साथ तेरा शाश्वत संबंध है । बेमन, बेसाथी, बेसामान होकर अकेले में बैठो । बाहर से भले दुनिया की भीड़ हो लेकिन अंदर में अकेले अपने-आपमें...

हम हैं अपने-आप, हर परिस्थिति के बाप !

सभी परिस्थितियाँ आती और जाती हैं पर सदा रहनेवाले मेरे प्रभु, मेरे गुरुदेव मेरे हैं । शरीर छोड़कर मरेंगे तब भी जो रहेगा, वह मेरा साथी है, मेरा प्रभु है । वास्तव में सच्चा साथी वह परमात्मा था, है और रहेगा ।

आदि सचु जुगादि सचु ।

       है भी सचु नानक होसी भी सचु ।।