Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

निराकार भगवान की सच्ची पूजा

निराकार भगवान की सच्ची पूजा

(श्री रमण महर्षि जयंती)

एक बार एक मुसलमान व्यक्ति रमण महर्षि से तर्क करने लगा । उसने प्रश्न किया : ‘‘क्या भगवान का रूप है ?’‘

महर्षि ने उसका भाव समझ लिया । वे व्यंग्य में बोले : ‘‘कौन कहता है कि भगवान का रूप होता है ?’’

‘‘अगर भगवान निराकार है तो क्या उसे मूर्ति का रूप देना और इस रूप में उसकी पूजा करना गलत नहीं है ?’’

‘‘भगवान को एक ओर रहने दें, पहले आप मुझे यह बतायें कि क्या आपका रूप है ?’’

‘‘निःसंदेह, मेरा रूप है परंतु मैं भगवान नहीं हूँ ।’’

‘‘तब क्या आप हाड़, मांस, रक्त के बने और सुंदर वस्त्र धारण किये हुए यह भौतिक शरीर ही हैं ?’’

‘‘हाँ, ऐसा ही है; मैं इस भौतिक रूप में अपनी सत्ता से परिचित हूँ ।’’

‘‘आप अपने को शरीर कहते हैं क्योंकि आपको अपने शरीर का ज्ञान है परंतु क्या प्रगाढ़ निद्रा में जब आपको अपने शरीर की सत्ता का ज्ञान नहीं होता, तब आप शरीररूप हो सकते हैं ?’’

‘‘हाँ, क्योंकि जब तक नींद नहीं आती, मुझे इस शरीर का ज्ञान रहता है और ज्यों ही नींद खुलती है, मैं देखता हूँ कि मैं ठीक वही हूँ जो सोने से पहले था ।’’

‘‘और जब मृत्यु हो जाती है ?’’

वह व्यक्ति थोड़ी देर रुका और फिर कुछ सोचकर बोला : ‘‘हाँ, तब मुझे मृत समझ लिया जाता है और शरीर को दफना दिया जाता है ।’’

‘‘परंतु आपने तो कहा था कि आपका शरीर आप हैं । जब इसे दफनाने के लिए ले जाया जाता है तो यह विरोध क्यों नहीं करता और कहता कि मुझे मत ले जाओ । यह सम्पत्ति जो मैंने इकट्ठी की है, ये बच्चे जिन्हें मैंने जन्म दिया है, ये सब मेरे हैं । मुझे इनके साथ रहना है ।’’

तब आगंतुक ने स्वीकारा कि उसने गलती से अपने को शरीर समझ लिया था और कहा : ‘‘मैं शरीर में जीवन हूँ, स्वयं शरीर नहीं हूँ ।’’

महर्षि ने उसे समझाते हुए कहा : ‘‘अब तक आप अपने को गम्भीरतापूर्वक शरीर समझते थे । यही मूल अज्ञान है जो सारे कष्टों की जड़ है । जब तक इस अज्ञान से छुटकारा नहीं पा लिया जाता और जब तक आप अपने निराकार स्वरूप को नहीं पहचान लेते, तब तक भगवान के संबंध में यह तर्क करना कि ‘वह साकार है या निराकार या जब वह वस्तुतः निराकार है तब मूर्ति के रूप में भगवान की पूजा करना उचित है या नहीं ?’ - ये सब बातें कोरा पांडित्य-प्रदर्शन मात्र हैं ।’’