Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऐसे मनायें रक्षाबंधन

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन आत्मीयता और स्नेह के धागे से पवित्र भावों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है । रक्षाबंधन के दिन भैया की रक्षा का संकल्प साकार करने के लिए बहन भाई के घर आती है । राखी का धागा तो छोटा-सा होता है परंतु बहन का संकल्प उसमें अद्भुत शक्ति भर देता है । संकल्प जितने निःस्वार्थ, निर्दोष और पवित्र होते हैं उतना ही उनका प्रभाव बढ़ जाता है ।
बहन भैया को राखी बाँधती है कि वर्षभर आनेवाली विघ्न-बाधाओं पर मेरा भैया विजेता होता जाय । बहन भैया के ललाट पर तिलक करती है, संकल्प करती है : ‘मेरा भैया त्रिलोचन बने और भोग की दलदल में न गिरे । भोग से रोग, भय होता है । मेरा भैया भोगी नहीं, योगी बने । मेरे भाई की दृष्टि मंगलमय हो, उसका मंगल हो ।’ शुभ संकल्प बड़ा काम करते हैं । विघ्न-बाधाओं के सिर पर पैर रखने का सामर्थ्य बहन के संकल्प में और भाई के पुरुषार्थ में विधाता ने जोड़ रखा है ।
भैया भी इस दिन बहन को ऐहिक चीज देकर संतुष्ट तो करता है, साथ में बहन के जीवन की जिम्मेदारी अथवा बहन के जीवन में आनेवाली कठिनाइयों को दूर करने की जिम्मेदारी भी अपने चित्त में ठान लेता है ।
अपनी दृष्टि को विशाल बनाओ
बहनों और भाइयों से मैं चाहता हूँ कि ‘तुम अपने घर तक सीमित न रहो । बहन ! तू भारत की नारी है । और भैया ! तू भारत का नर है । ‘भा’ माने ‘ज्ञान’ और ‘रत’ माने रमण करनेवाला अर्थात् ज्ञान में जो रमण करे वह भारत । ऐसे देश के तुम वासी हो, अपनी दृष्टि को विशाल बनाओ ।’
परमात्मा ने नारी में विशालता, सहनशक्ति तो दी परंतु नारी संकीर्ण बनती है तो झगड़े का मूल कही जाती है । नारी को यह कलंक लग जाता है । नारियाँ अगर भारतीय संस्कृति की महानता अपने हृदय में ले आयें, अपने हृदय में ठान लें तो पशुतुल्य आचरण वाले पति को भी पशुपति* बनाने में सफल हो सकती हैं ।
भाइयों को भी संकीर्ण नहीं होना चाहिए । केवल अपनी एक-दो बहन ही बहन नहीं, पड़ोस की बहन भी अपनी ही बहन है ऐसा समझना चाहिए । भाई द्वारा पड़ोस की बहन की भी रक्षा हो और बहन द्वारा पड़ोस के भाई का भी शुभ हो ऐसा सद्भाव किया जाय । यह परस्पर हित का भाव समाज में फैले ।
रक्षाबंधन का पर्व नूतन जनेऊ पहनने का, शुभ संकल्प करने का दिन तो है परंतु मैं यह चाहता हूँ कि आज के दिन को आप जीवन का परम शुभ लक्ष्य निश्चित करने का भी दिन मानें । ऐसा मानना अतिशयोक्ति नहीं होगी । गुरुपूनम के बाद की पूनम है राखी पूनम - रक्षाबंधन । साधक अपने गुरु का दैवी कार्य और भी व्यापक हो आदि-आदि प्रकार के शुभ संकल्प गुरु के लिए करते हैं और गुरुदेव साधक की साधना में उन्नति के लिए शुभ संकल्प करते हैं । तो एक-दूसरे को आध्यात्मिक जगत में मददरूप होने का संकल्प करके समाज को सुचारु रूप से परमात्म-पद तक पहुँचने का अवसर प्राप्त हो - ऐसा शुभ दिन भी मनाओ ।
यह भारतीय नारी की गरिमा-महिमा है
माताओं में बड़ी शक्ति है, वे अपने पुत्रों को, पति को, भैया को या पड़ोस के भैया को अगर संयमी-सदाचारी बनाकर महान जीवन बिताने की तरफ लगाने का ठान लें तो एक नहीं तो दूसरे उपाय से, दूसरे नहीं तो तीसरे उपाय से देर-सवेर वे देवियाँँ सफल हो ही जाती हैं । उनके जीवन का उद्देश्य ऊँचा होता है तो महान बन जाती हैं और जीवन का लक्ष्य पिक्चर देखना है तो ‘तू नहीं और सही’, ‘एक दूजे के लिए’ ऐसी फिल्में और गंदे दृश्य देख के नारियाँ अपना ह्रास कर लेती हैं ।
‘नारी को समान अधिकार, समान अधिकार...’ नहीं, ईश्वर ने नारी को वे अधिकार और क्षमताएँ दे रखी हैं कि उसके अधिकारों की तो कोई बराबरी नहीं कर सकता । माता और पिता का नाम लो तो पहले माँ का नाम आता है । ‘मातृदेवो भव ।’ फिर आता है - ‘पितृदेवो भव ।’ देवियो ! तुम्हारे अंदर मातृशक्ति, आद्यशक्ति छुपी है । उसी शक्ति के मूल स्रोत में गोता मार के अपने भैया को, अपने पड़ोसी भैया को या आप जिसका हित, मंगल चाहती हों उसको एक छोटा-सा धागा भी अर्पण कर दोगी तो तुम्हारा संकल्प उसके जीवन में बड़ा काम करेगा और तुम्हें शुभ संकल्प करने का संतोष होगा ।
कोई भी सिद्धांत महिलाओं तक पहुँचता है और महिलाएँ उसे उठा लेती हैं तो उसे सदियों तक जीवित रखती हैं । सिद्धांत भले पुरुषों ने बनाया, रक्षाबंधन का आविष्कार भले ऋषियों ने किया लेकिन झेल लिया नारियों ने और उसे अभी तक सँभाले हुए हैं । यह भारत की नारी की गरिमा है, महिमा है ।
REF: ISSUE355-JULY-2022