- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(गुरु नानकजी जयंती : 27 नवम्बर)
एक दिन गुरु नानकजी बैठे थे अपने सेवक, सिक्खों, भक्तों के बीच । नानकजी को प्यास लगी, बोले : ‘‘अरे भाई ! कोई है प्यारा ? कोई पानी लाओ !’’
पास में ही बैठा करोड़पति का लड़का भागा, पानी का गिलास भरकर लाया । उसके कोमल-कोमल व काँपते हुए हाथ नानकजी ने देखे फिर उससे पूछा : ‘‘तुम पानी लाये ? बेटा ! तुम्हारे हाथ तो बड़े नाजुक लगते हैं ।’’
लड़का बोला : ‘‘महाराज ! मैं बड़े कुल में जन्मा हूँ । अमीर घर में मेरा जन्म हुआ है और इकलौता बेटा हूँ । ऐसे नाज से पला हूँ कि कभी मुझे पानी का गिलास भरकर पीने की नौबत नहीं आयी । नौकर पानी भरकर देते हैं तब पीता हूँ । यह तो केवल आज ही मैं पानी का गिलास भरने के लिए दौड़ा और वह भी केवल आपके लिए महाराज !’’
नानकजी ने देखा कि पानी का गिलास भर के आया परंतु साथ-साथ में हृदय में अहंकार का गिलास भी भर रहा है ।
नानकजी ने कहा : ‘‘जो हाथ परोपकार से घिसे नहीं और इतने नाजुक हैं उन नाजुक हाथों का पानी पीने से मेरा हृदय नाजुक हो जायेगा । जरा-जरा बात में घबराऊँगा, जरा-जरा बात में आकर्षित हो जाऊँगा ।...’’
जिसको अपने जीवन में उन्नति चाहिए उसको परोपकार करना चाहिए । लौकिक और पारमार्थिक उन्नति का मूल है परोपकार । जो निष्काम सेवा नहीं कर सकता वह ठीक से आध्यात्मिक उन्नति भी नहीं कर सकता है । और ऐसा नाजुक दिल न रखो कि जरा-सी मुसीबत आये तो ‘ऐ हे हे...’ करके घबरा गये और जरा-सी सुविधा और मान मिला तो फूल गये । नहीं ।
तैसा अंम्रितु1 तैसी बिखु2 खाटी ।
तैसा मानु तैसा अपमानु ।
हरखु सोगु3 जा कै नही
बैरी मीत समानि ।
कहु नानक सुनि रे मना
मुकति ताहि तै जानि ।।
दुनिया की चाहे कितनी भी चीज-वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ आ जायें अथवा कितनी भी चली जायें लेकिन अपने दिल को दुःख-सुख से जो बचाता है उसका दिल दिलबर से साक्षात्कार करने में काम आता है । अतः संसार के आकर्षणों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और संसार के विकर्षणों से घबराना नहीं चाहिए ।
REF: ISSUE335-NOVEMBER-2020