Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

लौकिक दिवाली के साथ अलौकिक दिवाली मनाओ

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
परमात्मा का स्वभाव है सत्, चित् और आनंद । सत् स्वभाव विवेक से, वेदांत ग्रंथों से जान लेते हैं, चेतन स्वभाव आँखों से दिखता ही है परंतु आनंद स्वभाव की जो हमारी आवश्यकता है उसके लिए हमारी वैदिक संस्कृति में उत्सवों की व्यवस्था है । दीपावली का त्यौहार उत्सवों का झुंड है । अन्य उत्सव कोई एक दिन का, कोई डेढ़ दिन का, कोई दो दिन का होता है परंतु 5 दिन का उत्सव तो यही है । दीपावली 5 पर्वों का झुमका है - धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, बलि प्रतिपदा, भाईदूज ।
धनतेरस : इस दिन गाय का, धन का पूजन होता है । सारे धनों में आत्मधन सर्वोपरि है, सारे सुखों में आत्मसुख सर्वोपरि है, सारे ज्ञानों में आत्मज्ञान सर्वोपरि है । पद्म पुराण व स्कंद पुराण में आता है कि ‘धनतेरस को दीपदान करनेवाले की अकाल मृत्यु टल जाती है ।’
नरक चतुर्दशी : नरक चतुर्दशी की रात्रि जप व जागरण के लिए विशेष है । मंत्रसिद्धि-प्रदायक और मंत्र के प्रभाव को बढ़ानेवाली है । मंत्र को चैतन्यता प्रदान करनेवाली इस रात्रि को (विशेषकर शाम की संध्या के समय) यदि जप न किया जाय तो मंत्र मलिन हो जाता है और जप करते हैं तो मंत्र विशेष चैतन्यरूप हो जाता है । लौकिक मंत्रों में भी ऐसा देखा गया है । जिसको भी जो मानते हैं उनको नरक चौदस और दीपावली की रात अपनी-अपनी साधना में, अपने-अपने मनोरथ की पूर्णता में सफलता दिलानेवाली होती है ।
इस दिन कोई गलती से भी सूरज उगने के बाद उठता है तो वर्षभर के उसके पुण्यों का प्रभाव, सत्कर्मों का प्रभाव कम हो जायेगा । परंतु सूर्योदय से पहले उठ जाता है और सूर्योदय से कुछ क्षण पहले तिल के तेल से मालिश करके स्नान कर लेता है तो उसके सत्त्व की अभिवृद्धि होगी । होली, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि, नरक चतुर्दशी व दीपावली... इन रात्रियों में जो संसारी व्यवहार (पति-पत्नी का शारीरिक व्यवहार) करता है उसका आयुष्य और स्वास्थ्य क्षीण हो जाता है ।
दिवाली : तुम्हारे जीवन में हर रोज दिवाली आयेगी तो मैं संतुष्ट रहूँगा । सामाजिक दिवाली तो 364 दिन के बाद आती है । गुरुओं की दिवाली जोड़ दें तो हर रोज दिवाली, हर हाल दिवाली ! दिवाली के दिनों में 4 काम किये जाते हैं :
(1) घर को साफ-सुथरा करना, कचरा निकालना
(2) नयी चीज लाना
(3) प्रकाश करना
(4) मिठाई खाना-खिलाना ।
जनसाधारण के लिए तो ये 4 काम हैं लेकिन साधक को इन 4 कामों को सँवारना पड़ेगा ।
पहली बात, घर की सफाई । शरीर के घर की सफाई ठीक है किंतु उसके साथ-साथ अपने घर की भी सफाई करो । ईंट, चूने से जो बनता है वह घर तुम्हारा नहीं, शरीर का है । हृदय तुम्हारा घर है । तो प्रतिदिन गुरुमंत्र का जप, भगवद्-भजन, सत्कर्म, सत्संग-श्रवण, ध्यान आदि से हृदय को स्वच्छ रखना है ।
दूसरी बात, नयी चीज लाना । नयी चीज क्या है ? ‘इसने यह किया, उसने वह किया, मैंने इतना-इतना किया परंतु उसने तो ऐसा किया...’ इसमें उलझना यह पुरानी आदत है । ‘हमने जैसा अच्छा व्यवहार किया, बदले में दूसरा भी वैसा अच्छा व्यवहार करे...’ नहीं, अपनी की हुई भलाई, उपकार भूल जाओ और दूसरे का किया हुआ अपकार भूल जाओ, हृदय बढ़िया हो जायेगा । अपने को देह मानने, संसार को सच्चा मानने और वस्तुएँ पाकर सुखी होने की जो मान्यता है उसकी जगह ‘संसार बदलनेवाला है, शरीर मरनेवाला है और वस्तुओं की अधीनता का सुख नहीं, मुझे स्वाधीन सुख चाहिए जो मेरे हृदयेश्वर का है’ - ऐसी नयी सूझबूझ, नयी दृष्टि ले आओ तो गुरु संतुष्ट रहेंगे ।
तीसरी बात, उजाला करना । सुख आ जाय तो उसको देख, दुःख आ जाय तो उसको देख, अंतःकरण में कोई इच्छा-वासना आ जाय तो उसके साथ जुड़कर अपने को खपा मत, अलग होकर प्रकाश में देख, साक्षी होकर देख । ‘इन चीजों या परिस्थितियों के बिना भी मैं आनंद में जी सकता हूँ, रह सकता हूँ ।’ ऐसी समझ रख । वस्तुओं की, परिस्थितियों की गुलामी करना छोड़ दे, आत्म-उजाला (सूझबूझ) बढ़ाता जा ।
चौथी बात, मिठाई खाना और खिलाना । सदैव आनंद में रहना और आनंद बाँटना । सुबह उठकर मन-ही-मन खूब आनंद बाँटो, आरोग्यता बाँटो । जो तुम बाँटते हो वही तुम्हारे पास रह जाता है । और जो प्रसन्न रहता है, ध्यान करता है उसके चेहरे पर सौम्यता, आकर्षण झलकता है, उसकी निगाहों से हरिरस की कुछ आध्यात्मिक तरंगें बरसती रहती हैं ।
करोड़ों जन्मों के यज्ञ, व्रत और तप सफल माने जाते हैं जब गुरु संतुष्ट होते हैं । और गुरु तब संतुष्ट होते हैं जब हम गुरु के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी आध्यात्मिक दिवाली शुरू कर दें । लौकिक दिवाली के साथ-साथ अलौकिक दिवाली शुरू कर दें । इस दिन जो दीप जलाते हैं, प्रसन्न रहते हैं, साफ-सुथरे रहते हैं लक्ष्मीजी वहाँ प्रसन्नता से स्थिर होने का संकल्प करती हैं ।
नूतन वर्ष : दीपावली वर्ष का आखिरी दिन और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है (गुजराती विक्रम संवत् के अनुसार) । वर्ष के प्रथम दिन जो हर्ष-उल्लास से जियेगा उसका पूरा वर्ष हर्ष-उल्लास, आनंद में बीतेगा । दिन के प्रारम्भ में आनंदित-उल्लसित हों तो पूरा दिन अच्छा जायेगा । तो यह तुम्हारे स्वभाव में जो आनंद छुपा है उसको जगाने की बड़ी व्यापक व्यवस्था है ।
दिवाली की रात को थोड़ा-बहुत जागरण और ‘सुबह मैं प्रसन्नचित्त उठूँगा, वर्ष के प्रथम दिन मुझे प्रसन्न रहना ही है’ ऐसा संकल्प करके आप सो जायें तो अगला दिन वैसा ही जायेगा और वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे ।
वर्ष के प्रथम दिन जीवन में उन्नति के लिए 6 बातें समझ लेनी चाहिए : (1) लक्ष्य का निश्चय (2) मन में उत्साह (3) अपने पर और ईश्वर पर भरोसा (4) अपने पर विश्वास और अपने साथियों पर विश्वास रखने की कला का विकास (5) जीवन में धर्मपालन का फल क्या है ? जीवन में धर्म तो हो परंतु धर्म के फल की भी परीक्षा कर लेनी चाहिए (6) जीवन के प्रथम व अंतिम लक्ष्य को अभी से तय कर लो और उसीके सहायक आचरण करो ।
भाईदूज : भाईदूज भाई-बहन के निर्दोष, निष्काम भाव को बढ़ोतरी देनेवाला पर्व है । संयमनीपुरी के देवता यमराज अपनी बहन यमी से भोजन पाकर बड़े तृप्त हुए । बोले : ‘‘बहन ! जो माँगना है वह माँग ले ।’’
यमी : ‘‘भैया ! द्वितीया को जो भी तुम्हारी यमपुरी में आयें उनको सद्गति मिल जाय ।’’
यमराज बोले : ‘‘इससे व्यवस्था भंग हो जायेगी फिर भी बहन ! समाज बहन-भाई का मधुर संबंध समझकर संयमी जीवन जिये इसलिए मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि आज के दिन बहन के हाथ से जो भाई भोजन पायेंगे और बहन के शील व धर्म की रक्षा का संकल्प करेंगे तथा बहनें भाई की उन्नति का संकल्प करेंगी तो उन सभीकी सद्गति होगी ।’’
गुरुओं की दिवाली अगर तुम मनाने लग जाओगे तो आनंद की झलकें पाते-पाते उनकी कृपा से देर-सवेर तुम्हारा आनंद स्वभाव प्रकट हो जायेगा ।              
REF: ISSUE370-NOVEMBER-2023