Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

लग जाओ बस ! अपने-आप सब सरल हो जाता है

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

लोग बोलते हैं कि आत्मसाक्षात्कार का सरल उपाय बताइये, सरल उपाय बताइये ।तो आत्मसाक्षात्कार करके बाद में क्या चाय पीने जाना है, देर होती है क्या ? ‘जल्दी है और सरल उपाय बता दो ।तो कोई रेलगाड़ी पकड़नी है क्या ? हजारों जन्मों की यात्रा, हजारों जन्मों के कर्मों-बंधनों का अंत करके परमात्मा को पाना है... उसमें सरल-सरल... जल्दबाजी नहीं... प्रीति करो, तड़प बढ़ाओ । भई, शुरू-शुरू में बच्चा कहे कि ‘‘पढ़ने का सरल उपाय बता दो ।’’ तो उसको अ, , , ऊ सिखायें । बोले : ‘‘नहीं, नहीं... सरल बता दो ।’’ ‘1, 2...’ लिख के बतायें । बोले : ‘‘नहीं, यह नहीं, सरल बता दो ।’’ तो क्या खाक पढ़ेगा ! जो बताया है वह करेगा तभी पढ़ेगा और तभी सब सरल होगा ।

, , ग...बताया तो बोले : ‘‘यह तो कठिन है, सरल बता दो ।’’ तो कोई नयी वर्णमाला खोजनी पड़ेगी, नये आँकड़े बनाने पड़ेंगे... फिर वह भी उसे कठिन लगेगा । जब नया-नया होता है तो सरल भी कठिन लगता है और अभ्यास बढ़ जाता है तो कठिन कठिननहीं रहता, सब सरल हो जाता है । ईश्वरप्राप्ति का कोई सरल मार्ग बता दो ।तो कोई नया कल्पित मार्ग सरल नहीं होता, जो मार्ग है सो है । जिस मार्ग से कइयों को मिला है, मिल रहा है और मिलता रहेगा वह ही मार्ग सरल है ।

एक लड़का था, उसका नाम था शेरसिंह ।

किसीने बोला : ‘‘अरे, तेरा शेरसिंह नाम है ?’’

बोला : ‘‘हाँ ! मैं शेरसिंह हूँ ।’’

‘‘शेरसिंह है तो शेर को तो पूँछ होती है, तेरे को पूँछ कहाँ है ? तेरे को पूँछ नहीं तो कम-से-कम अपने हाथ पर ही शेर छपवा के आ जा, गोदना गुदवा के आ जा ।’’

वह गोदना गोदनेवाले के पास गया । गोदनेवाले ने ज्यों ही मशीन उठायी और सूई गड़ायी, त्यों ही एं-एं-एं !करते हुए वह बोला : ‘‘क्या कर रहे हो ?’’

‘‘शेर की पूँछ बना रहा हूँ ।’’

‘‘बिना पूँछ का शेर बना दो । पूँछ की क्या जरूरत है ? शेर की पूँछ तो पतली होती है, नहीं के बराबर... नहीं रहेगी तो क्या फर्क पड़ता है ?’’

उसने फिर दूसरी जगह पर सूई रखी । तो वह लड़का फिर बोला : ‘‘अरे ! क्या कर रहे हो... क्या कर रहे हो... ?’’

‘‘शेर की कमर बना रहा हूँ ।’’

‘‘शेर की तो पतली कमर होती है, नहीं के बराबर । जब पूँछ नहीं है तो कमर की क्या जरूरत है ? आप केवल शेर ही छाप दो ।’’

फिर दूसरी जगह पर गोल बनाने जा रहा था तो लड़का बोला : ‘‘क्या कर रहे हो... ?’’

‘‘शेर का मुख तो बनाने दे !’’

‘‘जब पूँछ नहीं, कमर नहीं तो मुख बनाने की क्या जरूरत है ? ऐसे ही शेर छाप दो ।’’

गोदनेवाले ने अपना औजार रख दिया और (थोड़ी दूर खड़े युवक की ओर इशारा करते हुए) बोला : ‘‘जा ! तू तो उसके जैसा है । उस युवक को किसीने पूछा था : ‘‘ऐ !

क्या नाम है ?’’

बोला : ‘‘शेरसिंह ।’’

‘‘कहाँ रहता है ?’’

‘‘शेरोंवाली गली में ।’’

‘‘तेरे बाप का नाम क्या है ?’’

‘‘शमशेर सिंह ।’’

‘‘तो इधर खड़ा क्यों है ?’’

बोला : ‘‘कुत्ता खड़ा है, डर लग रहा है ।’’

‘‘नाम शेरसिंह, बाप शमशेर सिंह, रहता शेरोंवाली गली में है और कुत्ते का पिल्ला खड़ा है उससे डर रहा है । तो काहे का तू शेरसिंह हुआ ?’’

ऐसे ही तू शेर का गोदना गुदवा नहीं सकता तो बड़ा आया शेरसिंह !’’

वैसे ही जो बोलता है कि सरल उपाय बता दोतो तू भक्त काहे का ! मीरा कैसे लग गयी ! शांडिली कैसे लग गयी ! बालक ध्रुव, प्रह्लाद कैसे लग गये ! एकनाथजी, मिलारेपा, वीर शिवाजी, साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज कैसे लग गये और हम कैसे लग गये और पा लिया ! तो आप भी लग जाओ ! सरल उपाय बताओ, सरल उपाय बताओ...जो ऐसा पूछता है समझो वह आत्मसाक्षात्कार करना ही नहीं चाहता ।

विद्यालय में लड़का गया, बोला : ‘‘सरल उपाय बताओ ।’’

बोले : ‘‘भर्ती हो जाओ और अभ्यास करो ।’’

बोला : ‘‘नहीं, नहीं... सरल उपाय बता दो ।’’

दूसरे विद्यालय में जाय, तीसरे विद्यालय में जाय... तो कौन-से सरल उपाय के विद्यालय में भर्ती होएगा ? पढ़ नहीं पायेगा । लग जाओ बस ! अपने-आप सब सरल होता जायेगा । टॉर्च का प्रकाश 10 मीटर तक जाता है तो डरो मत ! चलो, 10 मीटर तो क्या 10 किलोमीटर भी चल जाओगे । ऐसे ही साधन करते-करते अपने-आप रस आता है, अपने-आप सब सरल होता जाता है ।

REF-ISSUE345-SEPTEMBER-2021