Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

श्राद्धकर्म व उसके पीछे के सूक्ष्म रहस्य

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सद्गति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी श्राद्ध पक्ष

श्राद्ध पक्ष का लम्बा पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि यहाँ चाहे जितनी विजय प्राप्त हो, प्रसिद्धि प्राप्त हो परंतु परदादा के दादा, दादा के दादा, उनके दादा चल बसे, अपने दादा भी चल बसे और अपने पिताजी भी गये या जाने की तैयारी में हैं तो हमें भी जाना है ।

श्राद्ध हेतु आवश्यक बातें

जिनका श्राद्ध करना है, सुबह उनका मानसिक आवाहन करना चाहिए । और जिस ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराना है उसको एक दिन पहले न्योता दे आना चाहिए ताकि वह श्राद्ध के पूर्व दिन संयम से रहे, पति-पत्नी के विकारी व्यवहार से अपने को बचा ले । फिर श्राद्ध का भोजन खिलाते समय -

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।

नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।

(अग्नि पुराण : 117.22)

यह श्लोक बोलकर देवताओं को, पितरों को, महायोगियों को तथा स्वधा और स्वाहा देवियों को नमस्कार किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि मेरे पिता को, माता को... (जिनका भी श्राद्ध करते हैं उनको) मेरे श्राद्ध का सत्त्व पहुँचे, वे सुखी व प्रसन्न रहें ।

श्राद्ध के निमित्त गीता के 7वें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर पाठ कर लें और उसका पुण्य जिनका श्राद्ध करते हैं उनको अर्पण कर दें, इससे भी श्राद्धकर्म सुखदायी और साफल्यदायी होता है ।

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

आप श्राद्ध करते हैं तो

(1) आपको भी पक्का होता है कि हम मरेंगे तब हमारा भी कोई श्राद्ध करेगा परंतु हम वास्तव में नहीं मरते, हमारा शरीर छूटता है ।तो आत्मा की अमरता का, शरीर के मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व रहता है इसका आपको पुष्टीकरण होता है ।

(2) देवताओं, पितरों, योगियों और स्वधा-स्वाहा देवियों के लिए सद्भाव होता है ।

(3) भगवद्गीता का माहात्म्य पढ़ते हैं, जिससे पता चलता है कि पुत्रों द्वारा पिता के लिए किया हुआ सत्कर्म पिता की उन्नति करता है और पिता की शुभकामना से पुत्र-परिवार में अच्छी आत्माएँ आती हैं ।

ब्रह्माजी ने सृष्टि करने के बाद देखा कि जीव को सुख-सुविधाएँ दीं फिर भी वह दुःखी हैतो उन्होंने यह विधान किया कि एक-दूसरे का पोषण करो । आप देवताओं-पितरों का पोषण करो, देवता-पितर आपका पोषण करेंगे । आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, आपके अर्घ्य के सद्भाव से सूर्यदेव पुष्ट होते हैं और यह पुष्टि विरोधियों, असुरों के आगे सूर्य को विजेता बनाती है । जैसे रामजी को विजेता बनाने में बंदर, गिलहरी भी काम आये ऐसे ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो सूर्य विजयपूर्वक अपना दैवी कार्य करते हैं, आप पर प्रसन्न होते हैं और अपनी तरफ से आपको भी पुष्ट करते हैं ।

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ।।

तुम इस यज्ञ (ईश्वरप्राप्ति के लिए किये जानेवाले कर्मों) के द्वारा देवताओं को तृप्त करो और (उनसे तृप्त हुए) वे देवगण तुम्हें तृप्त करें । इस प्रकार (निःस्वार्थ भाव से) एक-दूसरे को तृप्त या उन्नत करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे ।(गीता : 3.11)

देवताओं का हम पोषण करें तो वे सबल होते हैं और सबल देवता वर्षा करने, प्रेरणा देने, हमारी इन्द्रियों को पुष्ट करने में लगते हैं । इससे सबका मंगल होता है ।

(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तक श्राद्ध-महिमा’)

REF: ISSUE345-SEPTEMBER-2021