Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

...तभी आपकी जन्माष्टमी पूर्ण हुई

- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार क्यों ?

जो कर्षित कर दे, आकर्षित कर दे, आनंदित कर दे उस परात्पर ब्रह्म का नाम श्रीकृष्ण है ।

कर्षति आकर्षति इति कृष्णः।

सच पूछो तो श्रीकृष्ण ही शिष्य बने हैं, श्रीकृष्ण ही गुरु बने हैं, श्रीकृष्ण ही पिता बने हैं, माता बने हैं और श्रीकृष्ण ही बालक बनते हैं इसलिए श्रीकृष्ण का जीवन मानुषी जीवन को सर्वांगीण रूप से उन्नत करने के लिए पूर्ण अवतार माना गया है ।

श्रीकृष्ण बालक भी ऐसे कि महाराज ! माँ का प्रेम झेलने में, मक्खन-लीला करने में अथवा ओखली से बँधने के समय देखो तो बाल्यलीला में पूरे, योद्धाओं में योद्धे भी पूरे, ज्ञानियों में ज्ञानी भी पूरे । गीता ऐसी गायी कि विश्वविख्यात ग्रंथ हो गया और एकांतवासी तपस्वियों में भी ऐसे कि 13 साल गुरु के द्वार पर जाकर चुपचाप बैठ गये । मातृ-पितृ भक्त भी ऐसे कि अपनी पढ़ाई-लिखाई की चिंता नहीं की, पहले माँ-बाप की सेवा पूर्ण की और उसके बाद पढ़ने गये । पढ़ने में भी अत्यंत एकाग्रचित्त विद्यार्थी ! मित्रता निभाने में भी श्रीकृष्ण ऐसे उदार कि गरीब सुदामा के लाये हुए तंदुल को इतना प्रेम से खाते हैं कि मानो वह अमृत हो ।

जन्माष्टमी के दिन तुम भी अपने किसी बचपन के मित्र को, किसी सुदामा को अपने घर आमंत्रित करो । उसकी रूखी-सूखी तंदुल जैसी कोई चीज हो तो प्रेम से स्वीकार करो और अपना अतिथि बनाकर उस पर प्रेम बरसाओ । यह बात भी श्रीकृष्ण ने नहीं छोड़ी है, यह भी करके दिखा दिया है ।

...तब जन्माष्टमी का उत्सव हो गया पूर्ण !

जन्माष्टमी का उत्सव बड़ा अनूठा उत्सव है । प्रसाद बाँटने-बँटवाने से, मक्खन-मिश्री उछालने से या दही की मटकियाँ फोड़वाने-फोड़ने से जन्माष्टमी की पूर्णाहुति नहीं होती है । जो अजन्मा, निराकार, निरंजन है, जो कर्षित और आकर्षित कर रहा है वह अंतर्यामी श्रीकृष्ण जब तुम्हारे हृदय में छलकने लग जाय तब जन्माष्टमी का उत्सव हो गया पूर्ण !... नहीं तो उत्सव मनाने का प्रयत्न कर रहे हैं । और हर साल प्यारी जन्माष्टमी इसीलिए आती है कि हमारा प्रयत्न होते-होते वह प्रयत्न पूरा हो जाय और कृष्ण-जन्म हो जाय ।

5247-48 वर्ष पहले कृष्णावतार हुआ यह तो ठीक है लेकिन अब भी हर श्वास में कृष्ण-तत्त्व का अवतरण हो रहा है तभी तुम्हारे बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ जी रहे हैं । परंतु अवतरण थोड़ा करते हो इसलिए सिकुड़े-सिकुड़े, दबे-दबे, मारे-मारे जीते हो, अगर पूर्ण अवतरण करो तो तुम भी उन श्रीकृष्ण को पूर्ण प्रसन्न कर लोगे ।

अनूठा अवतार - श्रीकृष्णावतार

भगवान के अन्य अवतारों और श्रीकृष्णावतार में थोड़ा फर्क दिखायी देता है । रीति-रिवाजों और लोकमत को शिरोधार्य करके समाज का उत्थान करने का कार्य मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा हुआ और सामाजिक सड़ी-गली अनावश्यक मान्यताओं को, लोकमत को उठाकर किनारे रख देने का साहस श्रीकृष्ण ने किया है, साथ-साथ में लोकसंग्रह का आदर भी श्रीकृष्ण ने किया है । रामावतार 12 कला संयुक्त माना जाता है और कृष्णावतार 16 कलावाला माना जाता है ।

वास्तव में तो तुम्हारा भी अवतार ही है, शुद्ध-बुद्ध तुम्हारा जो मैंहै वह तुम भी अव्यक्त हो, तुम भी अवतरित हुए हो परंतु तुम्हें अपने अवतरण का पता नहीं, श्रीकृष्ण को पता रहा है । बार-बार उनको याद करके शायद तुमको भी पता चल जाय इसीलिए जन्माष्टमी का उत्सव अत्यंत उपयोगी, सार्थक और हितकर है ।

जन्माष्टमी का संदेश

श्रीकृष्ण को भगवान मानकर तालियाँ बजा के, पूजा करके छुट्टी पाने के लिए जन्माष्टमी नहीं है । श्रीकृष्ण ने लीलापुरुषोत्तम जीवन बिताकर कैसे समाज का उत्थान किया इसे याद करके, उनकी जीवन-लीलाओं के पीछे छिपे संकेतों का लाभ उठा के अपने जीवन को और अपने इर्द-गिर्द के समाज को उन्नत करने का संकल्प करने का, तन को तंदुरुस्त, मन को प्रसन्न रखकर बुद्धि को तत्त्वज्ञान में प्रतिष्ठित करके अपना जीवन धन्य बनाने के लिए कटिबद्ध होने का जन्माष्टमी तुम्हें संदेश देती है ।

थोड़े गरबे गा लिये, थोड़ी रासलीला कर-करा ली और जन्माष्टमी का उत्सव पूर्ण हुआ... यह बचकानी मति है । हमारी क्षमताएँ कम हैं तो हम इतने में ही मना लेते हैं । ज्यों-ज्यों क्षमताएँ बढ़ेंगी त्यों-त्यों श्रीकृष्ण को हम ठीक से समझ सकेंगे । आपने उसी दिन ठीक से श्रीकृष्ण जयंती, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जिस दिन आपको कृष्ण-तत्त्व का साक्षात्कार हुआ । तभी आपकी जन्माष्टमी पूर्ण हुई । इसीलिए हर साल जन्माष्टमी आती है और तुम्हारे में उत्साह, ताजगी, प्रसन्नता, साहस भर जाती है ।

पापनाशक स्नान

पापमुक्ति के लिए तिलमिश्रित जल से जन्माष्टमी को स्नान कर सको तो अच्छा है, नहीं तो गोबर या गोमूत्र से शरीर को रगड़ के स्नान कर सको तो स्फूर्तिदायी, पापनाशक स्नान होगा ।

यह तो अवश्य करना चाहिए

भोजन नहीं किया और आलस्य में पड़े रहे, कारण कि उपवास है । नहीं, इसकी अपेक्षा आवश्यक लगे तो थोड़ा कुछ सात्त्विक आहार ले लें परंतु उपवास के दिन स्फूर्ति, विशेष प्रसन्नता, विशेष एकाग्रता होनी चाहिए । उपवास के दिन थोड़ा-बहुत मौन हो तो अच्छा है । साथ ही अपने से उन्नत पुरुषों के चरणों में जाकर आदरसहित आत्मचर्चा सुनें । अपनी बराबरी के साधकों के साथ परमात्म-तत्त्व, आत्मतत्त्व, श्रीकृष्ण-तत्त्व की चर्चा, विचार-विमर्श करें और अपने से जो नन्हे हैं उन पर दया करके उनके उपयोग में आये उस ढंग से कथा-वार्ता का अवलम्बन लेकर उनके आगे परमात्म-तत्त्व का गुणगान करें, यह उपवास के दिन अवश्य करना चाहिए ।

(जन्माष्टमी के पावन पर्व पर विशेष लाभकारी है भगवान श्रीकृष्ण के जीवन व उपदेशों पर आधारित आश्रम से प्रकाशित सत्साहित्य श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीकृष्ण दर्शन, श्रीकृष्ण अवतार दर्शनका वाचन-मनन । इसे अपने मित्रों-रिश्तेदारों तक भी पहुँचायें और उनके जीवन को समुन्नत करने में सहभागी बनें ।)

REF: ISSUE356-AUGUST-2022