अज्ञान और उसका परिवार - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश... ये सब ज्ञान की होली में जब तक जलाये नहीं और परमात्मा जब तक प्रकट हुआ नहीं तब तक जो कुछ मिला है वह मृत्यु के एक झटके में छूट जायेगा । संत भोले बाबा कहते हैं :
होली अगर हो खेलनी,
तो संत सम्मत खेलिये ।
संतान शुभ ऋषि मुनिन की,
मत संत आज्ञा पेलिये ।।
हम ऋषि-मुनियों की संतान हैं । हमारा मूल कारण आत्मा-परमात्मा है । हम परमात्मा की संतान परमात्मा जैसे भी हो सकते हैं । आज के बाद हमारा जीवन ऐसा हो कि अहंकार, वासनाओं, चिंताओं को विवेक की अग्नि में होली कर दें ।
...ऐसा दृढ़ संकल्प करें
प्रह्लाद-होलिका की कथा समय की धारा में स्वप्नवत् हो गयी । सारा जगत स्वप्नमात्र है । केवल कहानियाँ रह जाती हैं, सब बीत जाता है । इस स्वप्न को, इस कहानीमात्र संसार को सच्चा न मान के, इस बीतनेवाले में न उलझकर अपने आत्मा को ही प्यार करें, आत्मध्यान में मस्त रहें और आत्मज्ञान को ही जीवन का लक्ष्य बनायें । बाकी सब धुलेंडी के उत्सव की नाईं धूलधानी (विनष्ट) होनेवाले हैं । जो बीत गया सब धूलधानी, जो बीतेगा वह भी धूलधानी, जो बीत रहा है वह भी धूलधानी... पर जिस परमात्मा की सत्ता से यह दिख रहा है वह परमात्मा ही सत्य है, वही एक है, वही ॐकार है, वही युगों से सत् था, अब भी सत् है और बाद में भी सत् रहेगा ।
तो ‘हम आत्मा की मस्ती में, सत्यस्वरूप परमात्मा की शांति और ज्ञान में स्थिर होंगे’ ऐसा दृढ़ संकल्प करें । राग-द्वेष, हताशा-निराशा, मूढ़ता को होली में स्वाहा कर दें । उत्साह, समझ, धैर्य, प्रसन्नता जीवन में लाते-लाते आशाओं के दास नहीं, आशाओं के राम बनें । आपका नाम भले आशाराम न हो पर आपका जीवन आशाओं का राम होना चाहिए ।
ब्रह्मविद्यारूपी होली जलाइये
उपनिषद्, महर्षि वेदव्यासजी, गुरु नानकजी, संत कबीरजी, संत भोले बाबाजी, स्वामी रामतीर्थजी, स्वामी विवेकानंदजी, भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज आदि महापुरुष जिस प्रकार की होली कहते हैं उस प्रकार की होली मनायें । जिस प्रकार की अविद्या की धुलेंडी करने को शास्त्र व संत कहते हैं उस प्रकार की धुलेंडी मनायें तो आपकी होली और धुलेंडी - दोनों सार्थक हो जायेंगी ।
समाज में विकृत लोग घुस गये तो उसका दुष्परिणाम भी थोड़ा-बहुत हो गया लेकिन इस पर्व का हेतु तो निर्दोष, स्वाभाविक सुख की प्राप्ति है । होली बड़े-छोटे का भेद, जातीय भेद, ज्ञान का भेद, धन का भेद... ये सब भेद मिटाकर अभेदस्वरूप सहज-स्वाभाविक प्रेम का जीवन जीने का दिन है, उसके लिए बधाई हो ! और यह प्रेम तुम्हारे जीवन में तो रहे, साथ ही तुम्हारे बच्चों व पड़ोस के बच्चों में भी इस वेदांतिक, संयमसहित निर्दोष प्रेम का सिंचन होता रहे इसके लिए दुगनी बधाई !
होली हुई तब जानिये, संसार जलती आग हो ।
सारे विषय फीके लगें, नहिं लेश उनमें राग हो ।।
हो शांति कैसे प्राप्त निश दिन एक यह ही ध्यान हो ।
संसार दुःख कैसे मिटे, किस भाँति से कल्याण हो ।।
जन्म-मृत्यु का दुःख, बुढ़ापे का दुःख, राग-द्वेष का दुःख... ये सब दुःख अविद्या से, अज्ञान से पैदा होते हैं । अविद्या माने अज्ञान-अंधकार । अज्ञान-अंधकार को ज्ञानरूपी प्रकाश में ले आओ तो वह ठहरेगा ही नहीं । इसलिए ब्रह्मविद्यारूपी होली जलाइये ताकि अविद्यारूपी रात्रि और उसका सारा परिवार स्वाहा हो जाय ।
होली खेलें पर पलाश के रंग से
आप लोग पलाश के पुष्पों के रंग से होली खेलना । रासायनिक रंगों का तन-मन पर बड़ा दुष्प्रभाव होता है । सभी रासायनिक रंगों में किसी-न-किसी खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है किंतु पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है । पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति तथा गर्मी सहने की शक्ति को बढ़ाता है । सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश के रंग में है ।
पायें स्वास्थ्य के साथ चित्त की प्रसन्नता
होली ऋतु-परिवर्तन का उत्सव है । होली के बाद 20-25 दिन नीम के 25-30 कोमल पत्ते और 1-2 काली मिर्च खानी चाहिए तथा 15-20 दिन बिना नमक का अथवा बहुत ही कम नमकवाला भोजन करना चाहिए, जिससे वर्षभर स्वास्थ्य की सुरक्षा रहे ।
करें ‘प्रह्लाद’ की स्मृति
दूसरी बात है, होली का उत्सव प्रह्लाद की स्मृति के बिना नहीं मनाना चाहिए । प्रह्लाद सदा प्रसन्न रहता था । ‘प्र’ उपसर्ग है... प्र + ह्लाद अर्थात् अत्यधिक आनंद । जो सदा आह्लादित रहता है, जो अपने आत्मा के साथ एकत्व रखता है, ईश्वर में विश्वास रखता है वह है ‘प्रह्लाद’ और जो शरीर में विश्वास रखता है वह है हिरण्यकशिपु । शरीर में विश्वास रखेंगे तो अशांति, दुःख, यह-वह होगा और आत्मा-परमात्मा में विश्वास रखेंगे तो ये सब आ-आ के चले जायेंगे लेकिन इन सबको जाननेवाले आप अपने साक्षी, शांत, आनंद स्वभाव में जग जायेंगे ।
REF: ISSUE350-FEBRUARY-2023