उद्दालक ऋषि गुरुकुल चलाते थे । एक दिन गुरुकुल के कुछ बच्चों ने उनको अपनी-अपनी समस्याएँ बतायीं । किसीने कहा कि ‘आलस्य आता है’, किसीने कहा : ‘पढ़ने में रुचि नहीं होती, पढ़ा हुआ याद नहीं रहता... ।’
ऋषि बोले : ‘‘कुछ दिन बाद बताऊँगा ।’’
कुछ दिनों तक उन्होंने बच्चों की दिनचर्या का अवलोकन किया और एक दिन सभी बच्चों को बुलाकर कहा : ‘‘जो बच्चे खूब ठूँस-ठूँस के खाते हैं उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती । जिन्हें याद नहीं रहता वे खूब भुखमरी करते हैं । जो तामसी और खूब चरपरे, मिर्च-मसालेवाले पदार्थ खाते हैं वे गुरुकुल से भागने की इच्छा में हैं । ऐसों को विचार आते हैं कि ‘अब हमको पढ़ना ही नहीं, हम तो घर जायेंगे । मजदूरी करेंगे, पढ़ेंगे नहीं ।’
और जो बच्चे सात्त्विक भोजन करते हैं, भोजन चबा-चबा के करते हैं, तुलसी के पत्ते चबाकर पानी पीते हैं, ‘हरि ॐ...’ का गुंजन करते हैं उनकी पढ़ाई में रुचि रहती है । वे थोड़ा समय पढ़ते हैं तो भी उन्हें जल्दी याद हो जाता है और लम्बे समय तक याद रहता है । तो इस प्रकार आहार से भी अपने मन का और व्यवहार का सीधा संबंध है ।’’
अपनी समस्याओं का कारण जानकर वे बच्चे अपने-अपने खान-पान में सावधानी रखने लगे । तामसी भोजन छोड़कर सात्त्विक भोजन करने लगे, अल्पाहार करने लगे ।
REF: ISSUE320-AUGUST-2019