Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सेवाधारियों के नाम पूज्य बापूजी का संदेश

कन्यादान के बाद जमाई शराबी हो सकता है, भ्रष्टाचारी हो सकता है लेकिन सत्संग-दान इतना पवित्र बना देता है कि शराब भी छुड़ा देता है, भ्रष्टाचार भी छुड़ा देता है और 84 लाख योनियों से भी मुक्त कर देता है, जीवन धन्य कर देता है !

तो ऋषि प्रसाद का सम्मेलन करनेवालों को मेरी तरफ से धन्यवाद देता हूँ और भगवान शिवजी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूँ : धन्या माता पिता धन्यो...

क्यों ? कि 84 लाख के चक्कर से छूट गये न, गुरु के दैवी कार्य में और गुरुभक्ति में तथा भगवान के नाम में आये तो । बाकी तो अन्य जीवों के तो 84 लाख योनियों में भटकने से करोड़ों जन्म बरबाद हो जाते हैं । 

अगर ईश्वरप्राप्ति नहीं भी की ऋषि प्रसादवालों ने या भगवत्प्राप्ति के मार्ग पर चलनेवालों ने तो ऐसों के लिए श्रीकृष्ण ने कहा :

न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ।।

सुकृतवालों की दुर्गति नहीं होती । वे ऊँचे लोकों में जाते हैं - ब्रह्मलोक में, वैकुंठलोक में, स्वर्गलोक में... अगर वहाँ रुचि नहीं हुई तो फिर श्रीमान के घर जन्म लेते हैं :

शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ।।

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् ।

श्रीमानों के यहाँ जन्म नहीं लिया, वहाँ की भी इच्छा नहीं है तो योगी के घर जन्म लेते हैं ।

मैं तो देश-विदेश में जो भी सत्संगी हैं, जो ईश्वर के लिए, देश के लिए, परहित के लिए काम करते हैं उन सबको धन्यवाद देता हूँ ।

संत तुलसीदासजी से किसीने पूछा : ‘‘आपके रामायण के इतने सारे दोहे, चौपाइयाँ न समझ पायें तो सार क्या है ?’’

बोले :

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई ।

पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

(श्री रामचरित. उ.कां. : 40.1)

महर्षि वेदव्यासजी से पूछा गया कि ‘‘आपके 1 लाख श्लोकोंवाला महाभारत तथा 18 पुराण पढ़ न पायें, समझ न पायें तो सार बात हमें बता दीजिये महाराज कृपा करके !’’

उन दयालु पुरुष ने कहा :

परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ।।

आपकी वाणी से, आपके व्यवहार से, आपके चिंतन से किसीका अहित न हो । किसीको बुरा न मानो, किसीका बुरा न चाहो, किसीका बुरा न करो तो आप बुराईरहित हो गये । जब बुराईरहित हो गये तो आप अच्छाई से ओतप्रोत हो जाओगे ।

तो यह सिद्धांत अगर समझ में आ जाय व्यासजी का, तुलसीदासजी का अथवा महापुरुषों का तो देश में चमन आ जायेगा । विश्वगुरु बनने में भारत को फिर देर नहीं लगेगी ।

I stout, you stout, who shall carry the dirt out ?

वह बोले : मैं बड़ा हूँ’, वह बोले : मैं बड़ा...। प्रतिस्पर्धा करके दूसरों को छोटा दिखाकर बड़ा बनना यह अहंकार को सजाना है ।

रामजी गुरुकुल में क्या करते थे ? खेल के समय विपक्षवाले हारने को होते तो लक्ष्मण को संकेत करते थे कि वे बेचारे हार रहे हैंतो लक्ष्मण समझ जाते थे और पाला बदल देते थे और रामजी जानबूझकर हार जाते थे । हार हमको मिले और जीत का आनंद वे मनायें’ - क्या रामजी की नीति ! यह रामराज्य है । और रावणराज्य है (घमंड से भरकर) - मैं लंकापति रावण हूँ... ।तो उसे हर दशहरे पर दे दीयासलाई !

रामजी बोलते हैं : ‘‘प्रजा का हित सर्वोपरि है । सबका भला सर्वोपरि है । मैं तो कुछ नहीं हूँ, मेरी प्रजा सर्वोपरि है ।’’

ऐसे ही...

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ।

सो नृपु अवसि नरक अधिकारी ।।

जिसके राज्य में प्यारी प्रजा दुःखी रहती है, वह राजा अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है ।’              (श्री रामचरित. अयो.कां. : 70.3)

यहाँ जोधपुर में चक्की में गड़बड़ थी, आटे में कंकड़ियाँ आती थीं । बंदियों ने मेरे को कहा । मैंने यहाँ के अधिकारी को कहा, अधीक्षक साहब को । तुरंत आटे की चक्की की मरम्मत हो गयी और बढ़िया हो गया । तो वे जानते हैं कि अभी जेल के प्रशासन की मेरी जिम्मेदारी है ।ऐसे ही मैं आश्रम के लिए भी जानता हूँ अथवा जहाँ रहता हूँ वहाँ के लिए जानता हूँ ।

Ref: ISSUE325-January-2020