Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

भगवान के स्वरूप होते हैं संत

एक बार एक भक्त ने श्री उड़िया बाबाजी से पूछा : ‘‘महाराजजी ! महापुरुषों के समीप रहने से ही कल्याण हो जाता है या कुछ करना भी पड़ता है ?’’

बाबाजी : ‘‘जो महापुरुषों के समीप रहेगा वह तो सभी साधन करेगा, उसमें क्या बाकी रहेगा ? क्योंकि उनके समीप रहनेवाले से पापकर्म तो स्वतः ही छूट जायेंगे, निरंतर सत्संग की बातें सुनने से उससे साधन भी कुछ-न-कुछ बनेंगे ही । महापुरुषों का सत्संग एक प्रकार से भजन ही है । जिस वासना (कामना) से भक्त महापुरुषों के समीप रहेगा उसे उसीकी प्राप्ति होगी । यदि वह महापुरुष में सचमुच प्रेम रखता है तो और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है । उनमें जो श्रद्धा, प्रेम है वही सब कुछ करा लेगा ।’’

भक्त : ‘‘महापुरुष में अपनी शक्ति के अनुसार विश्वास होने पर भी उनके संग से जैसा लाभ होना चाहिए वैसा क्यों नहीं होता ?’’

बाबाजी : ‘‘श्रद्धा की कमी के कारण नहीं होता ।’’

‘‘श्रद्धा कैसे हो ?’’

‘‘निष्काम कर्म और भजन (सद्गुरु-उपदिष्ट साधना) करने से महापुरुषों में और परमात्मा में श्रद्धा होगी ।’’

‘‘महात्मा के दर्शन करने का क्या फल है ?’’

‘‘महात्मा के दर्शनों से पाप टल जाते हैं यह तो साधारण फल है । मुख्य फल तो है कि महात्मा के दर्शन करके अंत में दर्शन करनेवाला महात्मा ही हो जाता है । संत-महात्माओं की सेवा से यह फल होता है कि उनके शुद्ध परमाणु निकलकर सेवा करनेवाले के अंदर चले जाते हैं ।

सूर्य के उदय से अंधकार का नाश होता है, पदार्थों का प्रकाश होता है और शीत जाता रहता है । इसी प्रकार ब्रह्मनिष्ठ संत-महात्मा के पास जाने से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश होता है, अच्छे-बुरे का ज्ञान होता है और संसार-भयरूपी शीत निवृत्त हो जाता है । गंगा पापों का नाश करती है, कल्पवृक्ष कामनाओं की पूर्ति करता है और चन्द्रमा से उष्णता की निवृत्ति होती है किंतु संतों के संग से ये तीनों लाभ एक साथ प्राप्त हो जाते हैं तथा ज्ञान की प्राप्ति भी होती है, जिससे जीव वासनारहित हो जाता है ।’’

 

Ref: ISSUE320-AUGUST-2019