Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऋषि प्रसाद से बदली विचारधारा

एक बार मैं ऋषि प्रसाद अभियान के लिए जा रहा था । एक बाइकवाला एकदम रुका, बोला : ‘‘किसकी पत्रिका बाँट रहे हो ?’’

मैंने कहा: ‘‘पूज्य संत श्री आशारामजी बापू मेरे गुरुदेव हैं, यह पत्रिका उन्हींकी है ।’’

‘‘ये तुम्हारे गुरुदेव हैं, फिर तो तुम भी इनके जैसे ही होगे ।’’

‘‘आप ऐसा कहते हो तो मुझे गर्व है । मेरे गुरुदेव इतने महान हैं तो हम भी महान बनेंगे । प्रभु ! आप ऋषि प्रसादपढ़कर देखिये, आपका भी कल्याण होगा ।’’

‘‘कौन प्रभु? कोई दिखता तो नहीं?...’’

‘‘मैं आपको कह रहा हूँ प्रभु’’

‘‘कोई जरूरत नहीं प्रभुकहने की । मुझे पता है, यही सिखाते हैं तुम्हारे गुरुदेव ।’’

‘‘आपको भी सीखना चाहिए, यह तो अच्छी बात है । हमारे गुरुदेव ने सिखाया है कि हम शरीर नहीं है, वास्तव में हम तो अमर आत्मा हैं... आप-हम सभी उस एक प्रभु की साकार अभिव्यक्ति हैं ।आपकी समझ में यह बात ऐसे ही नहीं आयेगी । इसके लिए आप ऋषि प्रसाद पढ़िये, धीरे-धीरे सब समझ में आ जायेगा ।’’

उसके चेहरे के भाव अब बदल गये पर बोला : ‘‘मेरे पास समय नहीं है ।’’

मैंने कहा : ‘‘भैया ! बाइक रोक के मेरे गुरुदेव की निंदा करके अपना हृदय बिगाड़ने के लिए आपके पास समय है और इतना समय नहीं है कि ऋषि प्रसाद का एक पृष्ठ पढ़ के अपना कल्याण कर सकें ! कम-से-कम एक पृष्ठ तो अच्छे-से पढ़िये फिर आप स्वयं ही मेरे पास सदस्य बनने आयेंगे ।’’

उसने पढ़ा और चला गया । अगले दिन भी उसी क्षेत्र में सेवा चल रही थी । वह व्यक्ति हमारे पास आया, बोला : ‘‘बेटे ! इस माह की ऋषि प्रसाद दे दो ।’’

उसने पत्रिका ली और मेरा पता व नम्बर लिया । एक महीने बाद वह मेरे पास आया और ऋषि प्रसाद का सदस्य बन गया । यह है गुरुदेव के ज्ञान का, सत्य का प्रताप !

 

- शीरूपीरू गगनेजा, कक्षा 7, सहारनपुर

Ref: RP318-JUNE-2019