Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऐसे सुहृद को मैं कैसे भूलूँगा ?

भगवान कहते हैं :

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ।। (गीता : 5.29)

यज्ञ और तप के फल का भोक्ता मैं हूँ । ईश्वरों का ईश्वर मैं महेश्वर, परमेश्वर हूँ । प्राणिमात्र का मैं सच्चा हितैषी हूँ 

प्राणिमात्र के सच्चे हितैषी भगवान हैं । परम शांति कैसे मिलती है ? ऐहिक वस्तुओं में सत्-बुद्धि का त्याग हो जाता है । सबकी गहराई में भगवान ही भोक्ता हैं । ईश्वर ही भोक्ता हैं तो अपने को भोक्ता मानने का भाव छोड़ दो ईश्वर ही भोक्ता हैंऐसा मानने से शांति मिलेगी । सुखों की इच्छा कम होती जायेगी, ममता का अभाव हो जायेगा तो भगवान से आत्मीयता बढ़ती जायेगी । सच्ची आत्मीयता से भगवद्-साक्षात्कार हो जाता है । निःस्वार्थ कर्म करने से अंतःकरण कल्याणमय हो जाता है, कर्म यज्ञरूप हो जाता है 

एक राजकुमार शादी करके राजकुमारी को दरियाई सैर पर ले गया । राजकुमार सत्संगी था भगवान मेरे हैं, परम सुहृद हैं, सबके हितैषी हैंयह समझ थी उसमें । उनकी नाव दरिया में बहुत दूर निकल गयी । अचानक बवंडर आया । नाव कभी एक तरफ झुके, कभी दूसरी तरफ झुके । लगे कि अब गयी... अब गयी... । सारे लोग चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं : ‘‘बचाओऽऽ... बचाओऽऽ... ।’’ राजकुमार ज्यों-का-त्यों निर्भीक था । उसकी दुल्हन कहती है : ‘‘अजी सुनो जी !... सुनो... ! आपको डर नहीं लगता ? सारे लोग चीख-चिल्ला रहे हैं !’’

युवराज ने म्यान में से तलवार खींची, दुल्हन के गले पर रख दी और बोला : ‘‘तेरे को डर नहीं लगता ?’’

‘‘मैं क्यों डरूँगी ?’’

‘‘घबराहट नहीं होती ?’’

‘‘मैं क्यों घबराऊँगी ?’’

‘‘तेरी गर्दन पर तीखी तलवार है । जरा-सी खिंच जाय तो गर्दन कट जायेगी ’’

‘‘उँह... नहीं कटती, कैसे कटेगी ? तलवार किसी दुश्मन के हाथ में होती, गुंडे-बदमाश के हाथ में होती तो डर लगता । जब तलवार मेरे स्वामी के हाथ मैं है तो डर कैसा ? जो होगा अच्छे के लिए होगा, अहित नहीं होगा ’’

‘‘ऐसे ही मेरा जीवन मेरे सुहृद के हाथ में है । अगर यह शरीर बदलकर नया देना चाहेगा तो नाव को डुबा देगा और इसीसे काम करवाकर अपने चरणों तक बुलाना चाहेगा तो नाव को किनारे लगायेगा । मैं चीखूँ क्यों ? (अंतर्यामी परमात्मा की शरण जाने का) पुरुषार्थ क्यों न करें ? मैं तो सत्संग याद रखता हूँ । तुझसे शादी तो अभी हुई हैपिछले जन्म में तू नहीं थी लेकिन मैं और भगवान थे । मरने के बाद तो तू साथ नहीं रहेगी लेकिन वह तो साथ रहेगा । ऐसे सुहृद को मैं कैसे भूलूँगा ?’’

‘‘आपका ज्ञान तो बड़ा पक्का है !’’

बवंडर शांत हो गया और सभी सुरक्षित किनारे आ गये 

व्यक्ति को अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए । जब आदमी वाहन चलाते-चलाते भयभीत होता है, भरोसा खोता है तब दुर्घटना करता है ।

 एक प्रवाही चीज दूसरी बोतल में डालते हो और भरोसा खोते हो तो वह ढुल जाती है । जब हाथ पर भरोसा खो देते हो तो हाथ का कर्म बिगड़ जाता है, आँख पर भरोसा खो देते हो तो आँख का देखना बिगड़ जाता है और धंधे पर भरोसा खो देते हो तो धंधे

की बरकत चली जाती है, दोस्त पर भरोसा खो देते हो तो दोस्त की दोस्ती चली जाती है ऐसे ही भगवान पर भरोसा खो देनेवाले की भगवान की मदद चली जाती है । जो दोस्त पर भरोसा रखता है या कर्म पर भरोसा रखता है उसके भी कर्म अच्छे होते हैं तो जो भगवान में प्रीति, उनकी स्मृति और उनके प्रति भरोसा रखे उसका बढ़िया हो जाय इसमें क्या आश्चर्य है ! भाई ! लेकिन यहाँ एक गलती होने की सम्भावना है, भरोसा तो भगवान का है ऊपर-ऊपर से और अंदर से कहते हैं, ‘यह भी मिले, यह भी हो...और देखें, होता है कि नहीं होता है ?...’ तो यह संशय हुआ न, भरोसा नहीं हुआ । संशय नहीं, पक्का भरोसा... जो भी होगा मेरे हित में होगा, वह (परमात्मा) जानता है कि नवीन स्थिति में किसमें मेरी भलाई है । जो मैं चाहता हूँ वही होगा यह कोई जरूरी नहीं ।

 

 

Ref: ISSUE308-AUGUST-2018