पूज्य बापूजी से मंत्रदीक्षा लेने से पहले मेरा जीवन नारकीय था । मैं एक दिन भी मांस-मटन खाये बिना नहीं रह सकती थी । ऐसी कोई शराब नहीं होगी जो मैंने नहीं पी होगी ।
मेरी शादी हुई तो मेरे पति पहले से ही बापूजी से दीक्षित थे । जब वे मुझे आश्रम चलने को कहते तो मुझे अच्छा नहीं लगता था पर उनका मन रखने के लिए मैं उनके साथ चली जाती । जब पूज्यश्री इंदौर पधारे तो मेरे पति ने दीक्षा लेने को कहा तब भी मैंने उनका मन रखने के लिए दीक्षा ली । शुरू में उनको दिखाने के लिए ही माला जपने आदि का नियम करती थी परंतु धीरे-धीरे सत्संग का, भक्ति का रंग लगा और जीवन ऐसा बदला कि सारे व्यसन अपने-आप छूट गये । मांस-मटन खाना तो दूर, इनकी दुकान भी नहीं देख सकती । मैं हर साल दीपावली पर अनुष्ठान करने मेरे दोनों बच्चों को लेकर अहमदाबाद आश्रम जाती हूँ । मैं ‘ऋषि प्रसाद’ की भी सेवा करती हूँ । सेवा से मुझे बहुत फायदे हुए हैं । घर में, जीवन में सुख-शांति है । यह सब मेरे गुरुदेव की कृपा का परिणाम है ।
- अंजली इसरानी
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