Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

बापूजी साथ हैं तो असम्भव क्या !

1995 में मेरी आँखों की रोशनी काफी चली गयी थी, जिससे मैं चिंता, अवसाद से घिर गया था । ऐसे समय में मुझे पूज्य बापूजी का सत्संग व दीक्षा मिल गयी । इससे जीवन में आशा का संचार हुआ और हताशा दूर होने लगी ।

एक बार गुरुदेव मुझसे बोले : ‘‘बेटा ! अपने कर्म पर अडिग रहो, सब कुछ ठीक होगा ।’’

गुरुकृपा से मेरी योग्यताएँ खिलने लगीं । मैं 9वीं से 11वीं कक्षा के जिन बच्चों को गणित पढ़ाता था उनका बोर्ड-परीक्षा में शत प्रतिशत परिणाम आता था । एक बार जिला शिक्षाधिकारी निरीक्षण हेतु आये । जाते समय प्रिंसिपल से बोले : ‘‘गणित के शिक्षक की क्लास बहुत अच्छी लगी ।’’

प्रिंसिपल ने बताया : ‘‘सर ! दुर्भाग्यवश वे अपनी आँखें खो चुके हैं ।’’

‘‘सम्भव ही नहीं ! हम 40 मिनट तक उनकी क्लास देखकर आये हैं, हमको तो पता ही नहीं चला कि यह एक नेत्रहीन व्यक्ति पढ़ा रहा है । वे तो ब्लैकबोर्ड पर लिख रहे थे, चित्र बना रहे थे !’’

कुछ समय बाद मैं प्रिंसिपल बना तो लोग बोलने लगे कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे सँभालोगे ?’ मैं कहता : ‘‘बापूजी मेरे साथ हैं तो मेरे लिए कोई काम असम्भव नहीं है ।’’ आज गुरुकृपा से मैं किसी भी कार्य में पराश्रित नहीं हूँ । स्कूल के सभी कार्य कर लेता हूँ । अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती में टाइपिंग तथा आवश्यकता पड़ने पर सॉफ्टवेयर से इंटरनेट का भी उपयोग कर लेता हूँ और कई साज भी बजा लेता हूँ । इन बाह्य योग्यताओं के अलावा गुरुदेव ने मुझे जो आंतरिक आनंद, शांति और ज्ञान दिया है उसका तो क्या वर्णन हो सकता है !  

- शैलेष जोशी (प्राचार्य)

सचल दूरभाष : 9950473459

 

 

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