रक्षाबंधन : 11 अगस्त)
राखी पूनम उच्च उद्देश्य से मन को बाँधने की प्रेरणा देनेवाली पूनम है । बहन भाई के हाथ पर राखी बाँधती है । राखी महँगी है या सस्ती इसका महत्त्व नहीं है, सादी-सूदी राखी हो, सादा रंगीन धागा हो, चल जाता है । शुभ भाव को दिखावे में नहीं बदलना चाहिए बल्कि सात्त्विकता व पवित्रता का सम्पुट देना चाहिए ।
बहन भावना करती है कि ‘मेरा भैया विमल विवेकवान हो ।’ रक्षाबंधन महोत्सव फिसलते हुए आस-पड़ोस के युवक-युवतियों के लिए सुरक्षा की सुंदर खबर लानेवाला महोत्सव है । वयस्क बहन-भाई पड़ोस में रहें, हो सकता है कि ऊर्जा का स्रोत यौवन में विकारों की तरफ जोर मारता हो तो कहीं वे फिसल न जायें इसलिए पड़ोस की बहन पड़ोस के भाई को राखी बाँधकर अपनी तो सुरक्षा कर लेती है, साथ ही भाई के विचारों की भी सुरक्षा कर लेती है कि पड़ोस का भाई भी संयमी बने, सदाचारी बने, तेजस्वी बने, दिव्यता की तरफ चले ।
राखी दिखता तो धागा है लेकिन उस धागे में संकल्पशक्ति होती है, शुभ भावना होती है । शची (इन्द्र की पत्नी) ने देखा कि इन्द्र दैत्यों के साथ जूझ रहे हैं, कहीं पराजय की खाई में न गिर जायें इसलिए शची ने इन्द्र को राखी बाँधी । अपना शुभ संकल्प किया कि ‘मेरे पतिदेव विजेता बनें ।’
मेरे गुरुदेव (साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज) अहमदाबाद पधारे थे, तब उनके चरणों में जूनागढ़ का एक प्राध्यापक और प्राचार्य आये । बोले : ‘‘साँईं ! भाई तो बहन की रक्षा करे लेकिन हम भी तो रक्षा चाहते हैं । इन्द्र को युद्ध में विजय चाहिए लेकिन हमें तो विकारों पर विजय चाहिए । सद्गुरुदेव ! आप हमारी विषय-विकारों से रक्षा करते रहें । जब तक हम ईश्वर तक न पहुँचें, तब तक गुरुवर ! आप हमें सँभालना ।
गुरुजी अमारी संभाळ ले जो रे ।
दिलडां मां रहीने दोरवणी देजो रे ।।’’
‘गुरु के दिव्य ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो, लाखों लोग गुरुदेव के दैवी कार्य से लाभान्वित हों’ - ऐसा शुभ भाव मन-ही-मन करके साधक गुरु को राखी बाँध सकता है और गुरु भी शुभ संकल्प करें कि ‘इनकी विषय-विकारों से, अविवेक व अशांति से सुरक्षा हो और विमल विवेक जागे ।’
इस पूनम को ‘नारियली पूनम’ भी कहते हैं । सामुद्रिक धंधा करनेवाले लोग जलानां सागरो राजा... सारे जलाशयों में सागर राजा है... इस भाव से उसे नारियल अर्पण करते हैं कि ‘अगर आँधी-तूफान आये तो हमारी देह की बलि न चढ़े इसलिए हम आपको यह बलि अर्पण कर देते हैं ।’ यह कृतज्ञता व्यक्त करने का भी उत्सव है ।
ब्राह्मण ‘श्रावणी पर्व’ मनाते हैं और जनेऊ बदलते हैं । जनेऊ में 3 धागे होते हैं । 1-1 में 9-9 गुण... 9 X3 = 27. प्रकृति के इन गुणों से और बंधनों से पार होने के लिए जनेऊ धारण किया जाता है । ‘जनेऊ का धागा तो भले पुराना हो गया इसलिए बदल देते हैं लेकिन हमारा उत्साह तो जैसे पूनम का चाँद पूर्ण विकसित है, ऐसे ही धर्म और कर्म में हमारा उत्साह बना रहे, साहस और प्रेम बना रहे’- यह भावना करते हैं ।
भद्राकाल के बाद ही राखी बँधवायें
जैसे शनि की क्रूर दृष्टि हानि करती है, ऐसे ही शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी नुकसान करता है । रावण ने भद्राकाल में सूर्पणखा से रक्षासूत्र बँधवा लिया, परिणाम यह हुआ कि उसी वर्ष में उसका कुलसहित नाश हुआ । भद्रा की कुदृष्टि से कुल में हानि होने की सम्भावना बढ़ती है । अतः भद्राकाल में रक्षासूत्र (राखी) नहीं बाँधना चाहिए ।
Ref: ISSUE272-AUGUST-2015