- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
जन्म-जन्मांतर तक भटकानेवाली बुद्धि को बदलकर ऋतम्भरा प्रज्ञा बना दें, रागवाली बुद्धि को हटाकर आत्मरतिवाली बुद्धि पैदा कर दें, ऐसे कोई सद्गुरु मिल जायें तो वे अज्ञान का हरण करके, जन्म-मरण के बंधनों को काटकर तुम्हें स्वरूप में स्थापित कर देते हैं । आज तक तुमने दुनिया का जो कुछ भी जाना है, वह आत्मा-परमात्मा के ज्ञान के आगे दो कौड़ी का भी नहीं है । वह सब मृत्यु के एक झटके में अनजाना हो जायेगा लेकिन सद्गुरु तो दिल में छुपे हुए दिलबर का ही दीदार करा देते हैं । ऐसे समर्थ सद्गुरुओं की दीक्षा जब हमें मिल जाती है तो जीवन की आधी साधना तो ऐसे ही पूरी हो जाती है ।
यदि तुम अज्ञान में ही मंत्र जपते जाओगे तो मंत्रजप का फल होगा तुम्हारी वासनापूर्ति और वासनापूर्ति हुई तो तुम भोग भोगोगे । समाधि से उठे तो योग कम्पित हो जाता है, भोगों में भी योग कम्पित हो जाता है लेकिन एक ऐसी अवस्था है कि भोग और योग दोनों बौने हो जाते हैं । ब्रह्मज्ञानी भोगते हुए भी अभोक्ता हैं, करते हुए भी अकर्ता हैं, खिन्न होते हुए भी खिन्न नहीं हैं, ऐसे अपने पद में पूर्ण हैं । उसीको बोलते हैं :
पूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ ।
नानक पूरा पाइआ पूरे के गुन गाउ ।।
पूरा पाइये । इन्द्र पद पूरा नहीं है, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद भी पूरा नहीं है । राष्ट्रपति पद से उतरे हुए लोगों को देखो, इन्द्र पद से उतरे हुए लोगों को भी कैसी-कैसी योनियों में भटकना पड़ता है ! ब्रह्मपद ही पूरा है !
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष ।
मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश ।।
पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान ।...
ऐसे आत्मानुभव से तृप्त महापुरुषों की, ब्रह्मवेत्ता सद्गुरुओं की पूजा का जो पावन दिन है, वही गुरुपूनम है ।
गुरुपूनम का उद्देश्य
‘व्यासपूर्णिमा’ का उद्देश्य है कि आपके जीवन की शैली सुव्यवस्थित हो जाय । सुख आपको गुलाम न बनाये, दुःख आपको दबोचे नहीं । मृत्यु का भय आपको सताये नहीं क्योंकि आपकी कभी मौत हो नहीं सकती । जब भी मरेगा तो मरनेवाला शरीर मरेगा । तुमको मौत का बाप भी नहीं मार सकता और भगवान भी नहीं मार सकते क्योंकि भगवान का आत्मा और तुम्हारा आत्मा एक ही है । घड़े का आकाश और महाकाश एक ही है ।
जो गुरु से वफादार है वह मृत्यु के समय मौत के सिर पर पैर रखकर अमरता की तरफ चला जाता है । सत्संग हमें अमर रस देता है, अमर ज्ञान देता है, अमर जीवन की खबर देता है ।
गुरुपूनम का पावन संदेश
आप नहा-धोकर तिलक लगा के फिर ठाकुरजी को नहलाओ, तिलक लगाओ - ऐसी व्यवस्था है, ऐसी परम्परा है ताकि आपको पता चले कि ‘जो ठाकुरजी हैं, वे मेरे आत्म-ठाकुरजी के बल से सुंदर बनते हैं । मैं ही सौंदर्य का विधाता हूँ । देवमूर्ति, गुरुमूर्ति, गुरु-भगवान, ये भगवान... इस मुझ भगवान से ही उनकी सिद्धि होती है ।’ कब तक नाक रगड़ते रहोगे ? मरनेवाला शरीर आप नहीं हो, दुःखी होनेवाला मन आप नहीं हो, चिंतित होनेवाला चित्त आप नहीं हो । आप इन सबको जानते हो । आप जाननेवाले को जान लो तो आपका दीदार करनेवाला निहाल हो जायेगा । आपकी नूरानी निगाहें जिन पर पड़ेंगी, वे खुशहाल होने लगेंगे । आपको छूकर जो हवाएँ जायेंगी, वे भी लोगों को पाप-ताप से मुक्त करके सत्संगी बना देंगी । जिसको आत्मप्रीति मिलती है, वृक्षादि का भी कल्याण करने की आध्यात्मिक आभा उसके पास होती है । आप कितने महान हैं, आपको पता नहीं । आप कितने सुखस्वरूप हैं, आपको पता नहीं ।
आज पक्का कर लो कि यह गुरुपूर्णिमा हमें गुरु बनाने के लिए है । विषय-विकार हमें लघु बनाते हैं । ज्ञान, वैराग्य, विवेक और भगवत्प्राप्ति की ख्वाहिश हमें गुरु बना देती है । गुरु माना ऊँचे सुख का धनी, ऊँचे ज्ञान का धनी, ऊँचे-में-ऊँचे रब का धनी । ईश्वर ने आपको दास बनाने के लिए सृष्टि नहीं बनायी है, ईश्वर ने तो आपको प्रेमी बनाने के लिए सृष्टि बनायी है । आप ईश्वर के हो, ईश्वर आपके हैं । सिकुड़-सिकुड़कर भीख मत माँगो । देवो भूत्वा देवं यजेत् । ‘देव होकर देव का पूजन करें ।’
जो नानकजी के समय में नानकजी को देखते होंगे, उनको कितनी आसानी हुई होगी ! हयात महापुरुष को देखने-सुनने से आत्मज्ञान में बड़ी आसानी हो जाती है । कबीरजी, नानकजी हो गये, तब हो गये लेकिन अभी भी तो कोई हैं, हमारी आँखों के सामने हैं । उनसे कितना उत्साह मिलता है, कितना विश्वास अडिग होता है ! हमें भी हयात महापुरुष लीलाशाहजी प्रभु मिले तो हमें बड़ी आसानी हो गयी और तुम्हें भी आसानी है । फिर काहे को ढीलापन, काहे को लिहाज रखते हो ? परिस्थितियों का ज्यादा लिहाज न रखो, ज्यादा इंतजार मत करो । चल पड़ो जहाँ सद्गुरु तुम्हें ले जाना चाहते हैं ।