मैं एक आदिवासी परिवार का युवक हूँ । पहले मैं एक घोर शराबी था । शराब के नशे में घरवालों तथा गाँववालों के साथ झगड़े और मारपीट करना मेरी दिनचर्या बन गया था । शराब पीकर यहाँ-वहाँ पड़ा रहता था । मेरा जीवन नरक था, घरवाले भी बहुत परेशान थे । मैंने हजारों कोशिशें कीं, परिवारवालों ने सैकड़ों मन्नतें मानीं, अनेकों जगह सिर झुकाया मगर नशे की लत नहीं छूटी । एक दिन बापूजी के एक साधक ने मुझे ‘ऋषि प्रसाद’ पत्रिका पढ़ने को दी । उसे पढ़कर जैसे मेरी अंतरात्मा जाग उठी, मन में ठान लिया कि ‘जिन महापुरुष की वाणी इतनी ज्ञानमयी है, उनके दर्शन जरूर करूँगा ।’
मैंने 2002 के उत्तरायण पर अहमदाबाद में पूज्य बापूजी के दर्शन किये तथा मंत्रदीक्षा ली । इससे बड़ा आत्मिक आनंद मिला । ऐसा अनुभव हुआ मानो अंतरात्मा बोल रही हो कि ‘अब तेरी शराब की लत छूट जायेगी ।’
दो दिन तक सत्संग सुना । उसके बाद तो बापूजी की कृपा से मेरा पूरा जीवन ही बदल गया । बस, मैंने निश्चय कर लिया कि ‘मैं ऋषि प्रसाद की सेवा करूँगा और साथ ही योग का प्रचार-प्रसार करूँगा ।’ आज 14 साल हो गये, मैं निरंतर आदिवासी क्षेत्र में घूम-घूमकर बच्चों को योगासन आदि सिखाने की सेवा कर रहा हूँ । इससे अनेक आदिवासी बच्चों व युवकों का बहुत भला हो रहा है । मैं मरते दम तक बापूजी एवं ‘ऋषि प्रसाद’ का दैवी कार्य करता रहूँगा । नासमझ लोग चाहे कुछ भी बोलें, मैं बापूजी की भक्ति नहीं छोड़ूँगा !
- पुसऊराम उइके
पिनकापार, जि. राजनांदगाँव (छ.ग.)
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