Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऐसी होली जीव को शिव से मिला देगी

(होली : 17 मार्च, धुलेंडी : 18 मार्च)   - पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

होली और दिवाली के उत्सव बहुत प्राचीन हैं । ये कब से शुरू हुए इसका पक्का प्रमाण इतिहासवेत्ताओं को आज तक नहीं मिल पाया पर सबने स्वीकार किया है कि इन उत्सवों के पीछे भारतीय मनीषियों की बहुत गहरी समझ छुपी है ।

मनमुटाव निकालने का पर्व

गाँव के लोग एकत्र होकर जब होलिकोत्सव मनाते हैं तब यदि कभी एक-दूसरे से मनमुटाव की कोई बात हो गयी हो तो बोलते हैं : भाई ! जो हो गया सो हो गया, जो हो... ली...सो होलीऔर गले लग जाते हैं । एक-दूसरे की रंग-पिचकारी से, एक-दूसरे के भाव से मनमुटाव निकल जाता है, जीवन में प्रसन्नता, आनंद छा जाते हैं और मानव एक-दूसरे के नजदीक आने का अवसर पा लेता है ।

यह सावधानी है बहुत जरूरी

ऐसे उत्सव में अगर असावधान रहते हैं तो स्त्री-पुरुष, देवर-भाभी, पड़ोसी-पड़ोसन, युवान-युवती छूटछाट लेकर एक-दूसरे के अंगों को स्पर्श कर लेते हैं तो जो विकार सुषुप्त हैं वे उत्तेजित हो जाते हैं और होली बाहर जलती है पर उनके हृदय में कामुकता की होली जलने लग जाती है । लाभ होने के बजाय हानि हो जाती है । ऐसे उत्सव अगर संतों, ऋषियों व शास्त्र के निर्देशानुसार मनाये जायें तो ये उत्सव जीवन में उत्साह-आनंद लाते हैं, हृदय की क्षुद्रता मिटाते हैं और देर-सवेर जीव को शिव से मिलाने का सामर्थ्य रखते हैं ।

रात्रि-जागरण और जप आदि हैं बहुत फलदायी

पूनम और अमावस्या को समुद्र में ज्वार-भाटा विशेष आता है, जल-तत्त्व उद्वेलित होता है तो हमारे शरीर की सप्तधातुओं का जलीय अंश भी उद्वेलित होता है । सभी जल तथा जलीय पदार्थों पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है । व्यक्ति इन दिनों संसार-व्यवहार करे तो उसकी शक्तियों का ज्यादा ह्रास होगा । अगर गर्भाधान हो गया तो संतान विकलांग पैदा होती ही है । इन दिनों में जैसे सम्भोग का कुप्रभाव ज्यादा पड़ता है ऐसे ही ध्यान, जप, तीर्थ-सेवन और महापुरुषों के सत्संग-सान्निध्य से सुप्रभाव भी ज्यादा पड़ता है । होली की रात्रि का जागरण और जप बहुत ही फलदायी होता है । एक जप हजार गुना फलदायी है ।

मंत्रशक्ति तमोगुणी, रजोगुणी, सत्त्वगुणी और गुणातीत व्यक्ति के लिए भी हितकारी है । मंत्रजप से दैवी तत्त्व जागृत होता है, जन्म-जन्मांतरों के कुसंस्कार नष्ट होते हैं । श्रद्धा, तत्परता, संयम और एकाग्रता से ध्यान व जप कई जन्मों के कुसंस्कारों का नाश तथा कई गोहत्या के एवं अन्य अनगिनत पापों का शमन करके हृदय में शांति व आनंद ले आते हैं ।

प्राकृतिक रंगों से अवश्य खेलें होली

जो होली के उत्सव में प्राकृतिक रंगों का उपयोग नहीं करता उसका शारीरिक ताप वर्षभर अधिक रहता है । वह चिड़चिड़ा हो सकता है, चमड़ी के रोगों व कई एलर्जियों (व्याधियों) का शिकार हो सकता है, उसकी मानसिक चेतना अव्यवस्थित हो सकती है । ऐसे लोग विदेशों में बहुत पाये जाते हैं ।

होली की 4 महत्त्वपूर्ण बातें

(1) पलाश के फूलों के रंग से होली खेलनी चाहिए । होली के बाद धरती पर सूर्य की सीधी तीखी किरणें पड़ती हैं, जिससे सप्तरंग और सप्तधातुओं में हलचल मच जाती है । अतः पलाश और गेंदे के फूलों का रंग हम होली पूर्णिमा और धुलेंडी को एक-दूसरे पर छिड़कें तो वह सप्तरंग, सप्तधातुओं को संतुलित करेगा और हमें सूर्य की सीधी तीखी धूप पचाने की शक्ति मिलेगी । अब दुर्भाग्य यह हो गया कि विकृति आ गयी । लोग जहरी रासायनिक रंगों से होली खेलने लगे, जिनका बड़ा दुष्प्रभाव होता है ।

रंग

रसायन

दुष्प्रभाव

काला

लेड ऑक्साइड

गुर्दे (Kidney) की बीमारी, दिमाग की कमजोरी

हरा

कॉपर सल्फेट

आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व

सिल्वर 

एल्यूमिनियम ब्रोमाइड

कैंसर

नीला

प्रूशियन ब्लू

कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिसनामक भयंकर त्वचा-रोग

लाल

मरक्यूरी सल्फाइड

त्वचा का कैंसर

बैंगनी

क्रोमियम आयोडाइड

दमा, एलर्जी

 

मैं हाथ जोड़ के प्रार्थना करता हूँ कि समाज को इन बीमारियों से बचाओ, समाज बाजारू जहरी रंगों से होली न खेले ।

(2) होली के बाद के 20-25 दिन नीम के 20-25 कोमल पत्ते व 1-2 काली मिर्च खा लो या नीम के फूलों का रस 1-2 काली मिर्च का चूर्ण डालकर पी लो । इससे शरीर में ठंडक रहेगी और गर्मी झेलने की शक्ति आयेगी, पित्त-शमन होगा और व्यक्ति वर्षभर निरोग रहेगा ।

(3) होली के बाद 15-20 दिनों तक बिना नमक का भोजन करें तो आपके स्वास्थ्य में चार चाँद लग जायें । बिना नमक का नहीं कर सकते तो कम नमकवाला भोजन करो ।

(4) अपने सिर को धूप से बचाना चाहिए । जो सिर पर धूप सहते हैं उनकी स्मरणशक्ति, नेत्रज्योति और कानों की सुनने की शक्ति क्षीण होने लगती है । 42 साल के बाद बुढ़ापा शुरू होता है, असंयमी और असावधानीवालों का दिमाग कमजोर हो जाता है । गर्मियों में नंगे सिर धूप में घूमने से पित्त बढ़ जाता है, आँखें जलती हैं । अतः सिर को धूप से बचाओ, अपने को दुःखों से बचाओ, मन को अहंकार से बचाओ और जीवात्मा को जन्म-मरण से बचा के परमात्मा से प्रेम करना सिखा दो !