प्रत्येक मनुष्य के अंदर शक्ति है, उसकी सुरक्षा की जानी चाहिए । शक्ति की सुरक्षा की आवश्यकता महाविद्यालय के विद्यार्थियों, अध्यापकों, डॉक्टरों, वकीलों, इंजीनियरों, व्यवसायियों तथा सबके लिए समान रूप से अनिवार्य है । जो इस संसार में सबसे जल्दी आगे बढ़ जाना चाहते हैं, सबसे ऊँचा उठ जाना चाहते हैं, ऐसा कार्य कर जाना चाहते हैं जो अपूर्व तथा महान हो, कुछ ऐसी वस्तु की प्राप्ति करना चाहते हैं जो महान तथा प्रशंसनीय हो, उन्हें शक्ति के बहिर्गमन के मार्गों तथा उसे उपयोगी कार्यों अथवा आध्यात्मिक सद्व्यवहारों, ध्यान के अभ्यास तथा आत्मान्वेषण के लिए ओज में परिणत करने की विधियाँ जाननी चाहिए ।
किसान बूँद-बूँद पानी को बंद कर खेत तथा उद्यान को सींचने के लिए ले जाता है । इंजीनियर जलप्रपात की शक्ति विविध कार्यों में लगाता है और उसे विद्युत शक्ति में रूपांतरित करता है । जब भौतिक शक्ति की सुरक्षा करने से बड़े-से-बड़े निर्माणात्मक कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं तो मनुष्य में प्रसुप्त अथवा निष्क्रिय पड़ी आध्यात्मिक तथा मानस शक्ति का प्रभाव कितना व्यापक होता होगा !
भले ही व्यक्ति के पास प्रचुर सम्पत्ति हो पर वह महान व्यक्ति नहीं है । जिसे शास्त्रों का पूर्ण अगाध ज्ञान हो तथा जिसमें दया, प्रेम, उदारता, क्षमा, आत्मसंयम, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि सद्गुण हों, वही सच्चा महान व्यक्ति कहा जा सकता है । यदि एक व्यक्ति निर्धन हो, लोग उसकी परवाह नहीं करते हों, समाज में उसका कुछ भी महत्त्व न हो तथा वह अप्रसिद्ध होकर किसी कोने में रह रहा हो, उसके पास खाने के लिए सूखी रोटी न हो और पहनने के लिए चिथड़े ही हों पर इनसे उसकी महत्ता में कमी नहीं आती । इन सब कमियों के होते हुए भी वह संसार का परम महान व्यक्ति हो सकता है, सबका प्यारा हो सकता है ।
योगी और ज्ञानी जनों की यह विशेषता है कि वे शक्ति के अल्पांश को भी निरर्थक कार्यों में अपव्यय नहीं करते हैं । वे अपनी सम्पूर्ण सुरक्षित शक्तियों को आत्मविचार और आध्यात्मिक कार्य के लिए प्रयुक्त करते हैं । सुप्रसिद्ध हेनरी फोर्ड को इस कला का ज्ञान था अतः वे संसार के बड़े धनी-मानी व्यक्तियों में हो गये । जगदीशचन्द्र बोस इस शक्ति से भलीभाँति परिचित थे । उन्होंने इस शक्ति का सुरक्षण किया और इसका उपयोग अपनी वैज्ञानिक प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अनुसंधानों में किया ।
साधारणतः बहुत-से लोग अपनी शक्ति निम्नांकित मार्गों से नष्ट करते हैं । ये मुख्य हैं । इसके अतिरिक्त और भी अनेक चोर-मार्ग हैं पर वे छोटे-छोटे हैं । मुख्य मार्गों को बंद कर लिया जाय तो चोर-मार्गों से शक्ति का बहिर्गमन स्वतः ही बंद हो जाता है । जिस प्रकार नहर-सिंचाई विभाग का अधिकर्मी बाँध को नियंत्रित कर पानी को सिंचाई के लिए खेतों की ओर भेजता है, ठीक उसी प्रकार योगी भी उन सभी बहिर्द्वारों को बंद कर देते हैं जिनसे होकर शारीरिक तथा मानसिक शक्ति बाहर की ओर उन्मुख हो रही थी और उस सुरक्षित शक्ति को ही ओज में परिणत कर देते हैं और उसे आध्यात्मिक कार्यों में लगाते हैं ।
शक्ति के बहिर्गमन के मार्ग हैं :
1. शिश्न-इन्द्रिय 2. वाक् इन्द्रिय 3. मन
अधिक मैथुन करने से शक्ति का पूर्ण अपक्षय होता है । यह सबसे बड़ा छिद्र है जिससे होकर मनुष्य की शक्ति का बड़ा भाग बाहर निकल जाता है । आजकल के युवक वीर्य के महत्त्व को नहीं जानते हैं । सहवास अथवा अप्राकृतिक विधियों द्वारा वे इस अमूल्य शक्ति का कितना अपव्यय कर रहे हैं किसीसे छिपा नहीं है । काम-वासना के मद में मस्त होने के कारण उनको जो क्षणिक सुख मिलता है उसीको वे जीवन में प्राप्त हो सकनेवाला सबसे महान सुख मानते हैं । यह कितनी बड़ी भूल है ! वे आत्मघाती हैं ।
एक बार जो शक्ति इस मार्ग से बाहर निकल जाती है वह किसी भी प्रकार पुनः वापस नहीं लौटायी जा सकती और न उसके अभाव की पूर्ति ही की जा सकती है । यह इस विश्व में सर्वाधिक मूल्यवान शक्ति है । अति संगम से दिमाग थकने लगता है, स्नायुशक्ति हार खाने लगती है, शरीर के तंतुओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता और शुक्रमार्ग में गड़बड़ होने लगती है । लोग मूर्खतावश सोचते हैं कि वे मकरध्वज (एक रसौषध) खाने, दूध पीने तथा बादाम के सेवन से अपनी खोयी हुई शक्ति की पुनः प्राप्ति कर लेंगे । गृहस्थ को भी अपने वीर्य की प्रत्येक बूँद के संरक्षण का यथाशक्य प्रयास करना चाहिए । आत्मसाक्षात्कार मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है । परिवार-परम्परा का प्रश्न तो पौराणिक है ।1 श्रुतियों की घोषणा है : ‘ज्यों ही वैराग्य का समुदय हो, त्यों ही सांसारिकता का त्याग कर देना चाहिए ।’ (क्रमशः)
1. परिवार-परम्परा की वृद्धि की बात मुख्यतः पुराणों का विषय है ।