Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

वीरांगना का शौर्य और छत्रपति का मातृभाव

दक्षिण भारत का एक छोटा-सा राज्य था बेल्लारी । उसका शासक कोई वीर पुरुष नहीं बल्कि शौर्य की प्रतिमा विधवा नारी मलबाई देसाई थीं । छत्रपति शिवाजी की सेना ने बेल्लारी पर चढ़ाई की । शिवाजी की विशाल सेना का सामना वहाँ के मुट्ठीभर सैनिक कैसे करते ! किंतु बेल्लारी के सैनिक खूब लड़े । छत्रपति ने उन शूरों के शौर्य को देख के उनकी खूब प्रशंसा की ।

पर बेल्लारी की सेना की पराजय तो पहले से निश्चित थी । वह हार गयी और मलबाई को बंदी बनाकर सम्मानपूर्वक छत्रपति शिवाजी के सामने लाया गया । इस सम्मान से मलबाई प्रसन्न न थीं ।

बाई ने शिवाजी से कहा : ‘‘एक नारी होने के कारण मेरा यह परिहास क्यों किया जा रहा है ? छत्रपति ! तुम स्वतंत्र हो और थोड़ी देर पहले मैं भी स्वतंत्र थी । मैंने स्वतंत्रता के लिए पूरी शक्ति से संग्राम किया है किंतु तुमसे शक्ति कम होने के कारण मैं पराजित हुई । अतः तुम्हें मेरा अपमान तो नहीं करना चाहिए । तुम्हारे लोगों का यह आदर-दान का अभिनय अपमान नहीं तो और क्या है ? मैं शत्रु हूँ तुम्हारी, तुम मुझे मृत्युदंड दो ।’’

छत्रपति सिंहासन से उठे, उन्होंने हाथ जोड़े : ‘‘आप परतंत्र नहीं हैं; बेल्लारी स्वतंत्र था, स्वतंत्र है । मैं आपका शत्रु नहीं हूँ, पुत्र हूँ । अपनी तेजस्विनी माता जीजाबाई की मृत्यु के बाद मैं मातृहीन हो गया हूँ । मुझे आपमें अपनी माता की वही तेजोमयी मूर्ति के दर्शन होते हैं । आप मुझे अपना पुत्र स्वीकार कर लें ।’’

मलबाई के नेत्र भर आये । वे गद्गद कंठ से बोलीं : ‘‘छत्रपति ! तुम सचमुच छत्रपति हो । हिन्दू धर्म के तुम रक्षक हो और भारत के गौरव हो । बेल्लारी की शक्ति तुम्हारी सदा सहायक रहेगी ।’’

महाराष्ट्र  और बेल्लारी के सैनिक भी जब छत्रपति शिवाजी महाराज की जय !बोल रहे थे, तब स्वयं छत्रपति ने उद्घोष किया, ‘माता मलबाई की जय !

हिन्दू एकता एवं हिन्दवी स्वराज्य के लिए जीवन अर्पण करनेवाले भारत के वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज ने मलबाई का राज्य कभी अंग्रेजों के अधीन नहीं हो सकताइसका विश्वास होते ही उन्हें स्वतंत्र रहने देने का उद्घोष किया और हिन्दू-एकता और संस्कृति-रक्षा का स्वर्णिम इतिहास रचा ।

धन्य हैं मलबाई जैसी संस्कृतिनिष्ठ वीरांगना, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी और धन्य हैं छत्रपति शिवाजी जैसे संस्कृति-प्रेमी शासक, जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थरहितता का परिचय देते हुए अपने देश, धर्म व संस्कृति को महत्त्व देकर मलबाई को हराने के बाद भी सम्मानित किया और बंदी नहीं बनाया बल्कि उनके हृदय की स्वतंत्रता की जागृत ज्योति देखकर, उनकी राष्ट्र निष्ठा देख के उन्हें स्वतंत्र ही बने रहने दिया ।वीरांगना का शौर्य और छत्रपति का मातृभाव

दक्षिण भारत का एक छोटा-सा राज्य था बेल्लारी । उसका शासक कोई वीर पुरुष नहीं बल्कि शौर्य की प्रतिमा विधवा नारी मलबाई देसाई थीं । छत्रपति शिवाजी की सेना ने बेल्लारी पर चढ़ाई की । शिवाजी की विशाल सेना का सामना वहाँ के मुट्ठीभर सैनिक कैसे करते ! किंतु बेल्लारी के सैनिक खूब लड़े । छत्रपति ने उन शूरों के शौर्य को देख के उनकी खूब प्रशंसा की ।

पर बेल्लारी की सेना की पराजय तो पहले से निश्चित थी । वह हार गयी और मलबाई को बंदी बनाकर सम्मानपूर्वक छत्रपति शिवाजी के सामने लाया गया । इस सम्मान से मलबाई प्रसन्न न थीं ।

बाई ने शिवाजी से कहा : ‘‘एक नारी होने के कारण मेरा यह परिहास क्यों किया जा रहा है ? छत्रपति ! तुम स्वतंत्र हो और थोड़ी देर पहले मैं भी स्वतंत्र थी । मैंने स्वतंत्रता के लिए पूरी शक्ति से संग्राम किया है किंतु तुमसे शक्ति कम होने के कारण मैं पराजित हुई । अतः तुम्हें मेरा अपमान तो नहीं करना चाहिए । तुम्हारे लोगों का यह आदर-दान का अभिनय अपमान नहीं तो और क्या है ? मैं शत्रु हूँ तुम्हारी, तुम मुझे मृत्युदंड दो ।’’

छत्रपति सिंहासन से उठे, उन्होंने हाथ जोड़े : ‘‘आप परतंत्र नहीं हैं; बेल्लारी स्वतंत्र था, स्वतंत्र है । मैं आपका शत्रु नहीं हूँ, पुत्र हूँ । अपनी तेजस्विनी माता जीजाबाई की मृत्यु के बाद मैं मातृहीन हो गया हूँ । मुझे आपमें अपनी माता की वही तेजोमयी मूर्ति के दर्शन होते हैं । आप मुझे अपना पुत्र स्वीकार कर लें ।’’

मलबाई के नेत्र भर आये । वे गद्गद कंठ से बोलीं : ‘‘छत्रपति ! तुम सचमुच छत्रपति हो । हिन्दू धर्म के तुम रक्षक हो और भारत के गौरव हो । बेल्लारी की शक्ति तुम्हारी सदा सहायक रहेगी ।’’

महाराष्ट्र  और बेल्लारी के सैनिक भी जब छत्रपति शिवाजी महाराज की जय !बोल रहे थे, तब स्वयं छत्रपति ने उद्घोष किया, ‘माता मलबाई की जय !

हिन्दू एकता एवं हिन्दवी स्वराज्य के लिए जीवन अर्पण करनेवाले भारत के वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज ने मलबाई का राज्य कभी अंग्रेजों के अधीन नहीं हो सकताइसका विश्वास होते ही उन्हें स्वतंत्र रहने देने का उद्घोष किया और हिन्दू-एकता और संस्कृति-रक्षा का स्वर्णिम इतिहास रचा ।

धन्य हैं मलबाई जैसी संस्कृतिनिष्ठ वीरांगना, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी और धन्य हैं छत्रपति शिवाजी जैसे संस्कृति-प्रेमी शासक, जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थरहितता का परिचय देते हुए अपने देश, धर्म व संस्कृति को महत्त्व देकर मलबाई को हराने के बाद भी सम्मानित किया और बंदी नहीं बनाया बल्कि उनके हृदय की स्वतंत्रता की जागृत ज्योति देखकर, उनकी राष्ट्र निष्ठा देख के उन्हें स्वतंत्र ही बने रहने दिया ।