भगवत्प्राप्ति में 14 प्रकार के विघ्न आते हैं :
(1) स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही : यह बड़े-में-बड़ा विघ्न है । यदि मनुष्य अस्वस्थ है तो ध्यान-भजन नहीं कर पाता । अतः यह जरूरी है कि शरीर स्वस्थ रहे लेकिन शरीर के स्वास्थ्य की चिंता व चिंतन न रहे । यदि किसी कारण से स्वास्थ्य-लाभ नहीं रहता तब भी अपने को भगवान में व भगवान को अपने में मानकर देह की ममता और सत्यता हिम्मत से हटाओ ।
(2) खानपान में अनियमितता : देर से खाना खाने से भी अस्वस्थता घेर लेगी और ध्यान-भजन में अरुचि हो जायेगी ।
(3) साधन आदि में संदेह : यह संदेह कि ‘हम यह साधन करते हैं, ठीक है कि नहीं ? भगवान मिलेंगे कि नहीं ?’ अरे, अंतर्यामी भगवान जानते हैं कि आप भगवान के लिए साधन करते हैं, फिर क्यों संदेह करना ?
उलटा नामु जपत जगु जाना ।
बालमीकि भए ब्रह्म समाना ।।
(श्री रामचरित. अयो. कां. : 193.4)
(4) सद्गुरु का संग या सत्संग न मिलना : जिसने सत्संग और सेवा का लाभ नहीं लिया, सद्गुरु का महत्त्व नहीं समझा, वह सचमुच अभागा है । आत्मवेत्ताओं का सत्संग तो मनुष्य के उद्धार का सेतु है । सत्संग माने सत्यस्वरूप परमात्मा में विश्रांति । जिसके जीवन में सत्संग नहीं होगा वह कुसंग तो जरूर करेगा और एक बार कुसंग मिल गया तो समझ लो तबाही-ही-तबाही ! लेकिन अगर सत्संग मिल गया तो आपकी 21-21 पीढ़ियाँ निहाल हो जायेंगी । हजारों यज्ञों, तपों, दानों से भी आधी घड़ी का सत्संग श्रेष्ठ माना गया है, सद्गुरु का सान्निध्य सर्वोपरि माना गया है क्योंकि सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य जीव को जीवत्व से शिवत्व में आरूढ़ करता है । इतना ही नहीं, सत्संग से आपके जीवन को सही दिशा मिलती है, मन में शांति और बुद्धि में बुद्धिदाता का ज्ञान छलकता है ।
(5) नियमनिष्ठा न होना : इससे भी साधना में बरकत नहीं आती । जिसके जीवन में कोई दृढ़ नियम नहीं है उसका मन उसे धोखा दे देता है । नियमनिष्ठा आदमी को बहुत ऊँचा उठाती है ।
(6) प्रसिद्धि की चाह : थोड़ी-बहुत साधना करते हैं तो उसकी पुण्याई से प्रसिद्धि आदि होने लगती है । यदि व्यक्ति असावधान रहता है तो प्रसिद्धि के लिए कुछ-का-कुछ करने लग जाता है, फिर साधन-नियम छूट जाता है ।
(7) कुतर्क : कुतर्क मतलब ‘भगवान हैं कि नहीं हैं ? यह मंत्र सच्चा है कि नहीं है ?’ अथवा विधर्मियों या ईश्वर से दूर ले जानेवाले व्यक्तियों के प्रभाव में आकर फिसल जाना ।
(8) प्राणायाम व जप का नियम छोड़ना : जो 10 प्राणायाम और 10 माला का छोटा-सा नियम दीक्षा के समय बताते हैं, उसको छोड़ देना भी भगवत्प्राप्ति में बड़ा विघ्न है ।
(9) बाहरी सुख में ही संतुष्ट होना : अल्प (सीमित) में ही संतोष हो जाय... ‘चलो, घर है, नौकरी है... बस, खुश हैं ।’ नहीं-नहीं, बाहर के थोड़े-से सुखों में आप संतुष्ट न हों, आपको तो परमात्मा का परम सुख पाना है । थोड़े-से ज्ञान में आप रुको नहीं, आपको परमात्मा का ज्ञान पाना है ।
(10) भगवान को छोड़कर संसार की तुच्छ चीजों की कामना करना : सांसारिक तुच्छ कामनाएँ न बढ़ायें । भगवान का भजन भी निष्काम भाव से करें । ‘यह मिल जाय... वह मिल जाय...’ ऐसा सोचकर भजन न करें बल्कि भगवान की प्रीति के लिए भगवान का भजन करें ।
(11) ब्रह्मचर्य का अभाव: कामविकार में अपनी शक्ति का नाश हो जाता है तो फिर ध्यान-भजन में बरकत नहीं आती है । तो ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पुस्तक का अभ्यास करना और संयम रखना ।
(12) कुसंग: कुसंग में आने से भी अपना साधन-भक्ति का रस बिखर जाता है । जैसे-तैसे व्यक्तियों के हाथों का बना खाने, जैसे-तैसे व्यक्तियों के सम्पर्क में आने और उनसे हाथ मिलाने से भी अपनी भक्ति क्षीण हो जाती है । उससे बचना चाहिए ।
(13) दोष-दर्शन: दूसरों में दोष-दर्शन करने से वे दोष अपने में पुष्ट हो जाते हैं । हमारे मन में थोड़े दोष होते हैं तभी दूसरों में दोष दिखते हैं । इसलिए आप किसीके दोष देखकर अपने मन को दोषों का घर न बनाइये, उसकी गहराई में छुपे हुए अंतर्यामी परमात्मा को देख के अपने दिल में भगवद्भाव जगाइये ।
(14) साम्प्रदायिकता: ‘मैं फलाने धर्म का हूँ, फलाने मजहब का हूँ, ऐसा हूँ... ।’ नहीं-नहीं, हम जो भी हैं, सब उस एक परमेश्वर के हैं ।
इन 14 विघ्नों से बचनेवाला व्यक्ति जल्दी से परमात्मा को पा लेता है ।
भगवत्प्राप्ति की ओर ले जानेवालीं 6 महत्त्वपूर्ण बातें
(1) जो साधना करें, उससे ऊबे नहीं ।
जन्म कोटि लगि रगर हमारी ।
बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ।।
(श्री रामचरित. बा.कां. : 80.3)
‘पायेंगे तो परमात्मा का आनंद पायेंगे, परमात्मा का सुख, परमात्मा की सत्ता पायेंगे, बाहर की नश्वर सत्ता, नश्वर सुख पाकर रुक नहीं जायेंगे !’ ऐसा दृढ़ विचार करनेवाला जल्दी ईश्वर-सुख को पाता है ।
(2) अपना नियम और साधना निरंतर करना ।
(3) सत्कारपूर्वक (आदरपूर्वक) और श्रद्धापूर्वक साधना करना ।
(4) सभीसे सज्जनता का व्यवहार करना ।
(5) पाप करने से बचना ।
(6) प्रभु में विश्वास और प्रीति करनेवाले को जल्दी-से-जल्दी भगवत्प्राप्ति होती है ।
- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
"> भगवत्प्राप्ति के 14 विघ्न व 6 महत्त्वपूर्ण बातें