(रक्षाबंधन : 11 अगस्त)
रक्षासूत्रब का मनोवैज्ञानिक लाभ
हिन्दू संस्कृति ने कितनी सूक्ष्म खोज की ! रक्षाबंधन पर बहन भाई को रक्षासूत्रब (मौली) बाँधती है । आप कोई शुभ कर्म करते हैं तो ब्राह्मण रक्षासूत्रब आपके दायें हाथ में बाँधता है, जिससे आप कोई शुभ काम करने जा रहे हैं तो कहीं अवसाद में न पड़ जायें, कहीं आप अनियंत्र्ति न हो जायें । रक्षासूत्रब से आपका असंतुलन व अवसाद का स्वभाव नियंत्र्ति होता है, पेट में कृमि भी नहीं बनते । और रक्षासूत्रब के साथ शुभ मंत्रब और शुभ संकल्प आपको असंतुलित होने से बचाता है । रक्षाबंधन में कच्चा धागा बाँधते हैं लेकिन यह पक्के प्रेम का और पक्के हित का बंधन है ।
वर्षभर के यज्ञ-याग करते-करते श्रावणी पूर्णिमा के दिन ऋषि यज्ञ की पूर्णाहुति करते हैं, एक-दूसरे के लिए शुभ संकल्प करते हैं । यह रक्षाबंधन महोत्सव बड़ा प्राचीन है ।
ॠषियों के हम ॠणी हैं
ऋषियों ने बहुत सूक्ष्मता से विचारा होगा कि मानवीय विकास की सम्भावनाएँ कितनी ऊँची हो सकती हैं और असावधानी रहे तो मानवीय पतन कितना निचले स्तर तक और गहरा हो सकता है । रक्षाबंधन महोत्सव खोजनेवाले उन ऋषियों को, वेद भगवान का अमृत पीनेवाले, वैदिक रस का प्रचार-प्रसार करनेवाले और समाज में वैदिक अमृत की सहज-सुलभ गंगा बहानेवाले ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों को मैं प्रणाम करता हूँ । आप भी उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम करो जिन्होंने केवल किसी जाति विशेष को नहीं, समस्त भारतवासियों को तो क्या, समस्त विश्वमानव को आत्म-अमृत के कलश सहज प्राप्त हों, ऐसा वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया है । हम उन सभी आत्मारामी महापुरुषों को फिर से प्रणाम करते हैं ।
शिष्य भी करते हैं शुभ संकल्प
इस पर्व पर बहन भाई के लिए शुभकामना करती है । ऋषि अपने शिष्यों के लिए शुभकामना करते हैं । इसी प्रकार शिष्य भी अपने गुरुवर के लिए शुभकामना करते हैं कि ‘गुरुवर ! आपकी आयु दीर्घ हो, आपका स्वास्थ्य सुदृढ़ हो । गुरुदेव ! हमारे जैसे करोड़ों-करोड़ों को तारने का कार्य आपके द्वारा सम्पन्न हो ।’
हम गुरुदेव से प्रार्थना करें : ‘बहन की रक्षा भले भाई थोड़ी कर ले लेकिन गुरुदेव ! हमारे मन और बुद्धि की रक्षा तो आप हजारों भाइयों से भी अधिक कर पायेंगे । आप हमारी भावनाओं की, श्रद्धा की भी रक्षा कीजिये ।’
रक्षाबंधन पर संतों का आशीर्वाद
राखी पूर्णिमा पर ब्राह्मण अपने यजमान को रक्षा का धागा बाँधते हैं लेकिन ब्रह्मज्ञानी गुरु धागे के बिना ही धागा बाँध देते हैं । वे अपनी अमृतवर्षी दृष्टि से, शुभ संकल्पों से ही सुरक्षित कर देते हैं अपने भक्तों को ।
रक्षाबंधन में केवल बहनों का ही प्यार नहीं है, ऋषि-मुनियों और गुरुओं का भी प्यार तुम्हारे साथ है । आपके जीवन में सच्चे संतों की कृपा पचती जाय । बहन तो भाई को ललाट पर तिलक करती है कि ‘भाई तू सुखी रह ! तू धनवान रहे ! तू यशस्वी रहे...’ लेकिन मैं ऐसा नहीं कह सकता हूँ । आप सुखी रहें लेकिन कब तक ? यशस्वी रहें तो किसका यश ? मैं तो यह कह सकता हूँ कि आपको संतों की कृपा अधिक-से-अधिक मिलती रहे । संतों का अनुभव आपका अनुभव बनता रहे ।
*Ref- RP-259-July 2014