Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

पतले-से धागे से श्रद्धा-संकल्प का पवित्र बंधन

(रक्षाबंधन : 11 अगस्त)

राखी का धागा तो पतला है लेकिन इसमें छुपा भाव, श्रद्धा और संकल्प बहुत बड़ा काम करता है । भाई-बहन का यह पवित्र बंधन युवक-युवतियों को पतन की खाई में गिरने से बचाने में सक्षम है ।

भाई-बहन के निर्मल प्रेम के आगे काम ठंडा हो जाता है, क्रोध शांत हो जाता है, सहायता, करुणा और सङ्गच्छध्वं सं वदध्वं... कदम-से-कदम मिलाकर चलने की शक्ति आ जाती है । समता से युक्त विचार उदय होने लगते हैं ।

रक्षासूत्र का बहुआयामी महत्त्व

रक्षाबंधन के कई पहलू हैं । स्वास्थ्य-लाभ, विकारों से रक्षा, संकल्प की दृढ़ता, फिसलाहट से रक्षा, युद्ध में रक्षा, साधन-भजन की रक्षा... जिस भी संकल्प या शुभ भाव से और हो सके तो वैदिक मंत्र संयुक्त, यह छोटा-सा धागा बाँध दिया जाय तो बड़ा काम करता है । है तो नन्हा-सा धागा परंतु आरोग्य में, संकल्प-सिद्धि में और सुरक्षित होने में भी यह मदद करता है ।

भविष्य पुराण में लिखा है :

सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् ।

सकृत्कृतेनाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।

इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।

यक्ष, गंधर्व, किन्नर तथा पिशाच आदि जो सूक्ष्म जगत की तुच्छ आत्माएँ हैं वे इस पर्व पर रक्षासूत्र धारण करनेवाले को विक्षेप नहीं करती हैं और हीन संकल्प, विरोधियों के संकल्प आदि उस पर ज्यादा असर नहीं कर सकेंगे तथा नीच वातावरण का प्रभाव उसके चित्त पर नहीं पड़ेगा । वर्षभर सुरक्षित करने का संकल्प करके, वैदिक मंत्र सहित शुभकामना व श्रद्धा से इस दिन रक्षासूत्र पहनें-पहनायें तो लाभ होता ही है । वैदिक मंत्र है :

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।

तेन त्वां अभिबध्नामि* रक्षे मा चल मा चल ।।

ऐसा करें संकल्प

मैं फलाना हूँ... फलानी हूँ ।इसमें हूँआत्मसत्ता के शाश्वत अस्तित्व या अमिट विद्यमानता का परिचायक है । रक्षाबंधन का धागा तो सूत का है लेकिन उसमें संकल्प हूँकी सत्ता से है । मैं बहन हूँअथवा मैं अमुक हूँऔर मेरा भाई ऐसा... फलाना मेरा ऐसा... उसका मंगल हो ।

शुभ संकल्प स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं, कार्य में सफलता देते हैं । शांत होकर जब आप संकल्प करते हैं तो हूँमें से उठा हुआ स्फुरणा अकाट्य हो जाता है । महापुरुषों की दृष्टि और आशीर्वाद या शांतमना बुजुर्गों के आशीर्वाद फलते हैं ।

लक्ष्मीजी ने भगवान को अपने पास लाने के जिस महान प्रयोजन से उक्त रक्षासूत्र दानवों के सम्राट बलि को बाँधा था, उसी प्रयोजन से मैं (बहन) भाई को रक्षासूत्र बाँधती हूँ । हे रक्षासूत्र ! तू मेरे भाई की रक्षा करना ।ऐसा संकल्प करके बहन भाई को रक्षासूत्र बाँधे और अपने-अपने हितैषी को तदनुरूप संकल्प करके बाँधें । अर्थात् अनित्य शरीर, अनित्य संसार को जाननेवाले अपने नित्य नारायणस्वरूप मैंको, जो नर-नारी का अयन है उस आत्मा को जानने-पाने का प्रयोजन होना चाहिए ।

साधक है तो संकल्प करे कि हे गुरुदेव ! असाधन से मेरी रक्षा कीजिये ।भक्त है तो भक्ति के मार्ग से न गिर जाऊँ, मेरी रक्षा कीजिये !सत्संगी है तो कहीं कुसंग के आँधी-तूफान में धकेला न जाऊँ, मेरी रक्षा कीजिये ।...इस प्रकार रक्षासूत्र में अपना-अपना संकल्प एक-दूसरे को देकर मनुष्य-मनुष्य का पोषक हो जाता है ।

गुरुपूनम के बाद यह नारियली पूनम आती है । गुरुपूनम को जो नियम-व्रत मिला उसमें लड़खड़ाते एक महीने का तो नियम पूरा किया लेकिन अब हमारे जीवन में भगवद्भक्ति, साधन, ज्ञान का प्रकाश रहे और हम कहीं फिसलें नहीं, गुरुदेव ! हमारी रक्षा करें ।’ - इस भाव से साधक मन-ही-मन गुरु को राखी बाँध देते हैं और गुरुजी हिम्मत दे के व उपासना की नयी रीतें बताकर उनको सुरक्षित करने का वातावरण बना देते हैं ।

* शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय अभिबध्नामि के स्थान पर रक्षबध्नामि कहे ।

भद्राकाल के बाद ही राखी बँधवायें। जैसे शनि की क्रूर दृष्टि हानि करती है, ऐसे ही शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी नुकसान करता है । रावण ने भद्राकाल में शूर्पणखा से रक्षासूत्र बँधवा लिया, परिणाम यह हुआ कि उसी वर्ष में उसका कुलसहित नाश हुआ । भद्रा की कुदृष्टि से कुल में हानि होने की सम्भावना बढ़ती है। अतः भद्राकाल में रक्षासूत्र ( राखी ) नहीं बंधवानी चाहिए ।

  • भद्राकाल समय : 11 अगस्त 2021  सुबह 10:38 से 8:52 तक भद्राकाल है अत: इसके बाद रात्रि 8.52 से 9.59 तक ही राखी बाँधे -बँधवायें ।

 

  • [Rishi Prasad - August 2019 - Issue-319